2019 के आखिर में आई कोविड महामारी ने पूरी दुनिया के स्वास्थ्य पर न सिर्फ प्रतिकूल प्रभाव डाला है, बल्कि लोगों को मानसिक तौर पर भी काफी परेशान किया है। हेल्थ मैग्जीन लैंसेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे देश, जिन्होंने कोविड खत्म करने देश के अंदर कड़े प्रतिबंध लगाए वहां रहने वाले लोगों का मानसिक स्वास्थ्य उन देशों की तुलना में खराब पाया गया, जिन देशों ने कोविड को कम करने की कोशिश की।
टोरंटो। कोविड 19 (Covid 19) के दौरान लोगों का शारीरिक स्वास्थ्य तो खतरे में पड़ा ही, मानसिक स्वास्थ्य पर भी इस बीमारी ने बड़ा असर डाला है। दरअसल, मानसिक स्वास्थ्य पर बीमारी के असर से ज्यादा कड़ी पाबंदियों का असर पड़ा है। पब्लिक हेल्थ मैग्जीन 'द लैंसेट' में यह रिसर्च छपा है। इसमें कहा गया है कि जिन देशों में कड़ी पाबंदियां लगाई गईं, वहां रहने वाले लोगों का मानसिक स्वास्थ्य उन देशों के लोगों की तुलना में खराब पाया गया, जिन देशों में महामारी को खत्म करने की दिशा में कदम उठाए।
2020 से 2021 के बीच 15 देशों का सर्वे
‘द लैंसेट पब्लिक हेल्थ' में छपे इस अध्ययन के मुताबिक कनाडा में ‘साइमन फ्रेजर यूनिवर्सिटी' के शोधकर्ताओं के नेतृत्व वाली एक टीम ने अप्रैल 2020 से जून 2021 के बीच 15 देशों दो सर्वे किए। इसमें में देशों को दो कैटेगरी में बांटा गया। एक कैटेगरी में उन देशों को रखा गया, जिन्होंने कोविड-19 को खत्म करने की कोशिश की और दूसरी कैटेगरी में उन्हें शामिल किया गया, जिनका उद्देश्य देश में संक्रमण का प्रसार रोकना या कम करना था।
महामारी खत्म करने वाले देश :
महामारी खत्म करने की कोशिश करने वाले देशों की लिस्ट में ऑस्ट्रेलिया, जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया को शामिल किया गया।
असर : दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देशों ने तेज और टागेटेड एक्शन लिया। अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर रोक लगाई, जिससे कोरोना वायरस संक्रमण का प्रकोप वहां कम दिखा। इससे संक्रमण से मौत के मामले कम सामने आए और इससे लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव भी कम पड़ा।
रोकने की दिशा में काम करने वाले देश
संक्रमण रोकने या कम करने वाले देशों की सूची में कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, नीदरलैंड, नॉर्वे, स्पेन, स्वीडन और ब्रिटेन को रखा गया।
असर : कनाडा, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे संक्रमण को फैलने से रोकने की कोशिश करने वाले देशों ने यात्रा प्रतिबंधों में ढिलाई दिखाई, जबकि सोशल डिस्टेंसिंग, समारोह पर रोक लगाने और लॉकडाउन की नीति पर जोर दिया। इन कदमों से सामाजिक संबंध सीमित हो गए, जो मनोवैज्ञानिक समस्याओं का कारण बने।
जहां अंतरराष्ट्रीय यात्रा रुकी, वहां के लोग खुश
अध्ययन में शामिल साइमन फ्रेजर यूनिवर्सिटी' की मनोविज्ञान की एसोसिएट प्रोफेसर लारा अकनिन कहती हैं कि महामारी को खत्म करने की कोशिश करने वाले देशों ने कड़े कदम उठाए, लेकिन सच्चाई यह है कि अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर प्रतिबंध लगाने से देश के अंदर मौजूद लोग आजादी का अनुभव कर पाए। इससे उनका मानसिक स्वास्थ्य बेहतर रहा और वे महामारी के बीच भी अपनों के साथ खुशी का अनुभव करते रहे। इनका कहना है कि वैश्चिक महामारी से निपटने के तरीकों में मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।
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