Exclusive Interview: क्यों हो रहा क्लाइमेंट चेंज, कैसे करें बचाव? क्लाइमेट साइंस विशेषज्ञ डॉ. राजीवन की राय

क्लाइमेट चेंज इस समय तेजी से हो रहा है और लोगों को अब एहसास भी हो रहा है कि मौसम में बदलाव हो रहा है। इस सवाल पर डॉ. एम राजीवन ने कहा कि पिछले 20-30 वर्षों के दौरान अवेयरनेस बढ़ी है। सच कहा जाए तो क्लाइमेट चेंज की वजह हम सभी हैं। हमारी वजह से ही यह हो रहा है।

Exclusive Interview Dr M Rajeevan. देश-दुनिया में कितनी तेजी से मौसम में बदलाव हो रहा है, यह हम सभी देख रहे हैं। रोजाना की लाइफ में भी क्लाइमेट चेंज का असर देखा जा रहा है और इसका प्रभाव भी आम लोगों की जिंदगी पर पड़ रहा है। हालांकि अभी भी लोग क्लाइमेंट चेंज को लेकर ज्यादा अवेयर नहीं हैं। कैसे हो रहा है मौसम में बदलाव, क्यों यह हालात हुए, कौन इससे सबसे ज्यादा पीड़ित है, आगे क्या होने वाला है, क्लाइमेट चेंज के बदलाव से खुद को कैसे सुरक्षित रखे? यह कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब सभी जानना चाहते है। इन्हीं महत्वपूर्ण सवालों का जवाब देने के लिए एशियानेट डॉयलाग इस बार में हमारे साथ हैं क्लाइमेट साइंस एक्सपर्ट और भारत सरकार के पूर्व सचिव डॉ. एम राजीवन।

हमारी वजह से हो रहा क्लाइमेट चेंज
क्लाइमेट चेंज इस समय तेजी से हो रहा है और लोगों को अब एहसास भी हो रहा है कि मौसम में बदलाव हो रहा है। इस सवाल पर डॉ. एम राजीवन ने कहा कि पिछले 20-30 वर्षों के दौरान अवेयरनेस बढ़ी है। सच कहा जाए तो क्लाइमेट चेंज की वजह हम सभी हैं। हमारी वजह से ही यह हो रहा है। कल-कारखाने, धुआं उगलने वाली इंडस्ट्रीज, पेट्रोल-डीजल का प्रदूषण और इन सभी के साथ ग्लोबल वार्मिंग का असर है। यह सब कारण मिलकर ही क्लाइमेंट चेंज की वजह बन रहे हैं। हमने पेरिस में एक समझौता किया है जिसमें ग्रीन हाउस गैसों को कम करने के बारे में सहमति बनी है। कार्बन डाई ऑक्साइड एक बार हवा में रीलीज हो गया तो 60 से 70 साल तक उसका असर रहता है। इसलिए हम कोई भी एक्शन लें उसका असर तुरंत नहीं दिखेगा। इसके लिए हमें इंतजार करना होगा। अगर हम कम से कम प्रदूषण करेंगे तो इसका दोगुना असर होगा। वहीं पॉपुलेशन की बात करें तो भारत की आबादी बहुत ज्यादा है लेकिन प्रति व्यक्ति प्रदूषण के मामले में हम पीछे हैं। यूएस और यूके जैसे देशों में प्रति व्यक्ति प्रदूषण फैलाने के आंकड़ा बहुत ज्यादा है। 

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सबको मिलकर करना होगा प्रयास
डॉ. राजीवन कहते हैं कि यदि भारत यह चाहे कि वह अकेले प्रयास करके बदलाव लो सकता है तो मानकर चलें कि इसका असर कम होगा। क्लाइमेट चेंज को रोकने के लिए सभी देशों को एक साथ काम करना है। प्रति व्यक्ति ज्यादा प्रदूषण करने वाले देशों को बड़े प्रयास करने होंगे। साथ ही सभी देश कलेक्टिव प्रासेस करेंगे तभी इससे बचा जा सकता है। अगर भारत प्रदूषण फैलाता है तो उसका असर पूरे ग्लोब पर होगा। अमेरिका ऐसा करता है तो भी उसका असर पूरे ग्लोब पर होगा। इसलिए भारत प्रदूषण कम करने की कोशिश करता है तो दूसरे देशों को भी ऐसा करना होगा। भारत ने कमिटमेंट की है और वह पूरे भी कर रहा है। लोगों में जागरुकता बढ़ रही है। कोशिश भी की जा रही है लेकिन मेरा मानना है कि यह अभी भी कम है। हमें और भी बड़े प्रयास करने होंगे।

बढ़ रहा समुद्र का जलस्तर
डॉ. राजीवन ने कहा कि जरूरत इस बात की है हमें बड़े प्रयास करने होंगे। विकास के साथ कम प्रदूषण को लेकर भी काम करना होगा। हम सब कुछ करना चाहते हैं लेकिन लगता है कि अभी फुल कमिटमेंट की कमी है। सभी देशों के समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। यह सिर्फ भारत की ही बात नहीं बल्कि दुनिया भर में समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। भारत के कई राज्य भी इससे प्रभावित हुए हैं। भारत के कोस्टल एरिया को देखें, यहां समुद्र का जलस्तर बढ़ने से समस्या हुई है। पांडिचेरी का उदाहरण देखें वहां पूरा बीच ही पानी में समा गया। साउथ के सभी राज्य आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल इससे प्रभावित हैं। केरल में सबसे ज्यादा सी-कोस्ट हैं, जो समुद्र का जलस्तर बढ़ने से समस्याग्रस्त हो गए हैं। केरल में जनसंख्या ज्यादा है और समुद्र के किनारे खत्म हो रहे हैं तो लोग कैसे इन जगहों पर जा सकेंगे। समुद्र का पानी बाहर आता है तो यह खेती के लिए भी नुकसादायक है। केरल को सी लेवल राइज को लेकर ज्यादा सतर्क होने की आवश्यकता है।

फ्लैश फ्लड और क्लाउड बर्स्ट का कारण
आजकल फ्लैश फ्लड और क्लाउड बर्स्ट जैसी नई-नई चीजें सुनने को मिल रही हैं। कुछ साल पहले तक यह नहीं सुनाई देता था। इस पर डॉ. एम राजीवन ने कहा कि यह दोनों कुछ और नहीं लेकिन बहुत ज्यादा बारिश, भारी बारिश के ही नाम है। ऐसी बारिश कोई नई बात नहीं है लेकिन जिस तरह से इसकी फ्रीक्वेंसी बढ़ी है, वह चिंता का विषय है। जब क्लाउड बहुत ज्यादा बनते हैं और 1 घंटे से ज्यादा समय तक बारिश होती है तो इसे फ्लैश फ्लड या क्लाउड बर्स्ट का नाम दिया जाता है। यह ग्रैविटी की वजह से होता है। ज्यादा बादल बनेंगे तो ज्यादा बारिश होगी। दूसरा कारण है कि अब बहुत की कम समय में बहुत ज्यादा बारिश हो जाती है। अब घंटे भर में 15 मिलीमीटर बारिश हो जाती है। यह समस्या है और क्लाइमेट चेंज की वजह से ही ऐसा हो रहा है। यह ज्यादार पहाड़ी क्षेत्रों में होता है। यह उत्तराखंड के साथ ही केरल सहित बेंगलुरू और चेन्नई जैसे शहरों में भी हो रहा है।

वार्निंग सिस्टम कितना कारगर
हाल ही में केरल में वार्निंग सिस्टम को लेकर कुछ शिकायतें भी सामने आई हैं। इस बारे में डॉ राजीवन ने कहा कि आईएमडी का फोरकास्ट 10 साल पहले उतना इफेक्टिव नहीं था जितना अब है। पिछले 10 साल में आईएमडी की फोरकास्ट काफी कारगर रही है। फोरकास्टिंग पहले से इंप्रूव हुई है लेकिन आज भी यह चैलेंज की तरह है। खासकर केरल जैसे छोटे राज्य के लिए यह चुनौतीपूर्ण है। केरल में मछुआरों के लिए आईएमडी की फोरकास्ट अब अच्छी है। इसे बहुत अच्छा तो नहीं कहा जा सकता लेकिन यह इंप्रूव हो रहा है। 

क्या है साइक्लोन का कारण
पिछले 10 वर्षों में साइक्लोन की बात करें तो यह भी कंसर्न का सब्जेक्ट है। दुनिया के सभी समुद्र गर्म हो रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ऐसा हो रहा है। इंडियन ओसीन की बात करें तो यह ज्यादा गर्म हो रहा है। इसकी वजह से भारत के कोस्टल एरिया पर असर पड़ रहा है। इन कोस्टल एरिया में बहुत ज्यादा लोग रहते हैं जिसकी वजह से समस्या ज्यादा बड़ी है। यह ग्लोबल वार्मिंग का ही असर है।

क्लाइमेट चेंज के कैसे करें बचाव
क्लाइमेंट चेंज से बचाव को बारे में डॉ एम राजीवन ने कहा कि इसके लिए सभी देशों को संयुक्त प्रयास करने होंगे। सभी देशों को मिलकर संयुक्त प्रयास करना होगा। कोई एक देश इसके लिए अकेले कुछ नहीं कर सकता है। भारत ने अगले 20-30 सालों में 50 प्रतिशत प्रदूषण कम करने की योजना बनाई है। इसके अलावा भी कई प्रयास किए जा रहे हैं। हम सोलर एनर्जी की ओर भी जा रहे हैं। हालांकि यह काफी नहीं है। सिर्फ इतना करने से ही ग्लोबल वार्मिंग या क्लाइमेट चेंज से नहीं बचा जा सकता है।

हालात को स्वीकार करना होगा
क्लाइमेट चेंज रोकने के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं वह काफी नहीं हैं। डॉ. राजीवन ने कहा कि हमें आज के वास्तविक हालात को अडॉप्ट करना होगा। अडॉप्टेशन कैसे किया जाए, इस बारे में डॉ राजीवन ने बताया कि यह थोड़ा मुश्किल काम है लेकिन हमें यह सीखना होगा कि इन हालातों से कैसे बचें। जो कम्युनिटी प्रभावित हो रही हैं, उन्हें यह विकल्प सीखना होगा। आप यह देखें की कोस्टल एरिया में भी बहुत सारा कंस्ट्रक्शन हो रहा है। साइक्लोन आएगा और यह सब ढह जाएगा। हमें इसके बारे में भी सोचना चाहिए। हम बहुत कुछ सीखकर लोगों को बचा सकते हैं। हमारे हाथ में यही है कि लोगों को कैसे बचाया जाए। नई टेक्नोलॉजी की वजह से फोरकास्टिंग इंप्रूव हुई है। अगर आपका फोरकास्ट सही है तो आप लोगों को समय से निकाल सकते हैं।

भूस्खलन से कैसे बचा जाए
डॉ. राजीवन ने कहा कि फ्लैश फ्लड से बच पाना काफी बड़ा चैलेंज है। फ्लैश फ्लड पहाड़ी एरिया में होते हैं। हमारे पास तकनीकी है। रेडियो है, व्हाट्सअप है जिससे हम मैसेज दे सकते हैं कि कुछ घंटों के लिए लोग बाहर न निकलें। हम इसी तरह के काम कर सकते हैं। जहां तक भस्खल की बात है तो यह प्रकृति की बात है। भूस्खलन की भविष्यवाणी की जा सकती है लेकिन यह मुश्किल है। केरल में हमने देखा कि हैवी रेन की वजह से भूस्खलन हो रहा है। हम भारी बारिश की चेतावनी दे सकते हैं। तब हमें भूस्खलन वाले स्थानों पर जाने से बचना चाहिए। लैंडस्लाइड की भविष्यवाणी की जा सकती है, हम लोगों को बाहर निकाल सकते हैं। बिल्डिंग्स का तो कुछ नहीं कर पाएंगे लेकिन लोगों की जान बचाई जा सकती है। 1993 में उड़ीसा में साइक्लोन आया जिसमें 10 हजार लोग मारे गए। उसके बाद दो साइक्लोन और आए लेकिन लोगों की जानें कम गईं। यह फोरकास्ट और सुरक्षा के उपाय पहले करने की वजह से संभव हो पाया। केरल जैसे राज्य में बाढ़ की स्थिति पर डॉ. राजीवन ने कहा कि केरल में फ्लड मैपिंग को लेकर अच्छा काम किया है। इसे और भी बेहतर बनाने की जरूरत है। फ्लड मैपिंग होनी चाहिए ताकि बारिश के समय राहत और बचाव कार्य बेहतर किए जा सकें। फ्लड मैपिंग के साथ ही लैंड स्लाइड मैपिंग भी जरूरी है।

सरकार के अलावा कॉमन मैन क्या करे
भारी बारिश हो, साइक्लोन हो, लैंड स्लाइड हो या बादल फटने जैसी घटना हो, इस दौरान सरकार या एजेंसियां जो करती हैं, इसके अलावा आम आदमी को क्या करना चाहिए। इस सवाल के जवाब में डॉ राजीवन ने कहा कि आम आदमी को सबसे पहले फोरकास्ट पर विश्वास करना चाहिए। सभी लोग जानकारी होने के बाद भी बाहर निकलते हैं, बच्चों को स्कूल भेजते हैं। यह परंपरा चली आ रही है। यह सच है कि कई बार फोरकास्ट सही नहीं होता लेकिन ज्यादातर मामलों में यह सही होता है। यदि आप फोरकॉस्ट पर विश्वास करते हैं तो ज्यादा सुरक्षित होंगे बजाय इसके कि आप फोरकास्ट पर विश्वास न करें। 

देश में डिजॉस्टर मैनेजमेंट बेहतर
देश के हर भाग में डिजास्टर मैनेजमेंट बेहतर है। फोरकास्ट के बाद सरकार और एजेंसिया बचाव का प्रासेस शुरू कर देतीं हैं। लोगों को उन पर विश्वास करना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए। देश के कई राज्यों का आपदा प्रबंधन बहुत बेहतर काम कर रहा है। लोगों को बचाना ज्यादा महत्वपूर्ण है। उड़ीसा का उदाहरण ले लीजिए वे बहुत बेहतर काम कर रहे हैं। गुजरात हो या तमिलनाडु या फिर केरल सभी राज्यों ने सीखकर प्लानिंग की है। केरल ने भी 2018 के बाद से बेहतर काम किया है। मेरा मानना है कि लर्निंग प्वाइंट ज्यादा जरूरी है। इसके लिए ट्रेनिंग ज्यादा जरूरी है। क्लाइमेट चेंज होने के बाद डिजास्टर मैनेजमेंट में इंवेस्ट करना ज्यादा जरूरी हो गया है।

आम आदमी की जागरूकता 
सभी लोग क्लाइमेट चेंज को लेकर अवेयर हैं लेकिन अभी भी प्लास्टिक जलाने जैसी बातें भारी तादात में देखने को मिलती हैं। इस पर डॉ. राजीवन ने कहा कि हां पिछले 10 सालों में बहुत ज्यादा अवेयरनेस बढ़ी है। सरकार ने कई सारे कैंपेन चलाए, सोशल मीडिया से भी लोग जागरूक हुए। स्कूलों में भी क्लाइमेट चेंज के बारे में बताया जाता है। इस प्रकार देखें तो अवेयरनेस काफी बढ़ी है। लेकिन फिर भी कहूंगा कि यह काफी नहीं है। लोगों को प्लास्टिक यूज न करे के बारे में पता है फिर भी प्लास्टिक यूज किया जाता है, जलाया जाता है तो यह जानकारी लोगों को देनी चाहिए। मैं किसी सरकार पर ब्लेम नहीं कर रहा हूं कि इसका मैनेजमेंट बेहतर होना चाहिए।

क्या है सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट
देश में खासकर बड़े शहरों में कचरा का निस्तारण करना समस्या बना हुआ है। हमारे पास नीतियां हैं, लोग हैं, संस्थाएं हैं, संसाधन हैं फिर भी हमारा मैनेजमेंट काफी खराब है। आप अमेरिका जैसे शहरों को देखें वहां सोलिड वेस्ट मैनेजमेंट काफी बेहतर है। यहां भी ऐसा किया जा सकता है। आप देश के सूरत और इंदौर शहरों को देख सकते हैं। उनके पास कचरा निस्तारित करने का सबसे अच्छा मैनेजमेंट है। कोरोनो के बाद सोलिड वेस्ट मैनेजमेंट की बहुत ज्यादा जरूरत हो गई है क्योंकि लोग सर्जिकल मास्क कहीं भी फेंक देते हैं और नया यूज करते हैं।

कॉमन मैन को कैसे करें जागरूक
क्लाइमेट चेंज या सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के बारे में आम लोगों को कैसे जागरूक किया जाए, इस प्रश्न के जवाब में डॉ. राजीवन ने कहा कि मीडिया के माध्यम से टीवी, रेडियो, मोबाइल से सभी लोगों को मैसेज दिया जाना चाहिए। अवेयरनेस बढ़ाने का काम होना चाहिए। कई एनजीओ भी हैं जो जागरूकता पैदा करने का काम कर रहे हैं। मेरा मानना है कि सबसे ज्यादा बच्चों को अवेयर करना चाहिए क्योंकि वे घर जाकर अपने पैरेंट्स को भी जागरूक करेंगे।

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