मुंबई के आजाद मैदान में चर्चित हैं यशस्वी की कई कहानियां, पिता ने कहा बेटा फाइनल जिता के आना

विश्व चैम्पियन बनने की दहलीज पर खड़ी भारत की अंडर 19 टीम के सितारे यशस्वी जायसवाल उत्तर प्रदेश के भदोही के रहने वाले हैं। क्रिकेट में नाम कमाने मुंबई आये यशस्वी की अब ‘गोलगप्पा ब्वाय’ के नाम से पहचान बन गई है।

Asianet News Hindi | Published : Feb 6, 2020 2:01 PM IST

नई दिल्ली.  विश्व चैम्पियन बनने की दहलीज पर खड़ी भारत की अंडर 19 टीम के सितारे यशस्वी जायसवाल उत्तर प्रदेश के भदोही के रहने वाले हैं। क्रिकेट में नाम कमाने मुंबई आये यशस्वी की अब ‘गोलगप्पा ब्वाय’ के नाम से पहचान बन गई है। अपना घर छोड़कर आये यशस्वी के पास न रहने की जगह थी और ना खाने के ठिकाने। मुफलिसी के दौर में रात में गोलगप्पे बेचकर दिन में क्रिकेट खेलने वाले यशस्वी इस बात की मिसाल बन गए हैं कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है। ऐसे में उनके सरपरस्त बने कोच ज्वाला सिंह ने उसे अपनी छत्रछाया में लिया और यही से शुरू हुई उसकी कामयाबी की कहानी। अब तक अंडर-19 विश्व कप में खेले गए पांच मैच में उसने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ नाबाद 105 रन ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ 62, न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ नाबाद 57, जापान के ख़िलाफ़ नाबाद 29 और श्रीलंका के ख़िलाफ़ 59 रन बनाए।

दोस्तों को भी खिलानी पड़े गोलगप्पे
यशस्वी जायसवाल को अपने दोस्तों को भी गोलगप्पे खिलाने पड़ते थे। रामलीला के दौरान उनकी कमाई बढ़ जाती थी। 200 से 300 रुपय कमाने के लिए उन्होंने अपनी उम्र से बड़े लड़कों के साथ भी क्रिकेट खेला। इस तरह उनको हफ्ते भर के गुजारे के लिए पैसे मिल जाते थे। कई बार उनके दोस्त भी उनकी दुकान पर पानी पुरी खाने आते थे। ऐसे समय पर उन्हें शर्मिंदगी भी महसूस होती थी। जायसवाल के साथी खिलाड़ी अपने साथ अच्छा खान लेकर आते थे, पर उन्हें तो अपना खाना खुद ही बनाकर खुद ही खाना पड़ता था। 

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परिवार को याद कर आता था रोना 
यशस्वी के लिए इस टेंट में एक चुनौती नहीं थी। नास्ता किसी और के भरोसे करना पड़ता था। दोपहर और रात का खाना खुद बनाना पड़ता था। कई बार दोस्त नाश्ता कराने के समय मजाक भी बनाते थे, पर यशस्वी ने कभी भी पलटकर गुस्से में जवाब नहीं दिया। उनका कहना है कि इसमें उन लड़कों की कोई गलती नहीं थी, आखिर वो कभी भी भूखे पेट नहीं सोए, उन्होंने कभी भी टेंट में रात नहीं गुजारी। यशस्वी को टेंट में सोते समय कई बार घर की याद आती थी। ग्राउंड में कोई शौचालय भी नहीं था। यशस्वी जो टॉयलेट यूज करते थे वो रात में बंद हो जाता था। 

मुंबई के आजाद मैदान में यशस्वी की कहानियां चर्चित हो चुकी थी। इसके बाद कोच ज्लावा सिंह ने उन्हें अपनी देखरेख में लिया। यहीं से उनका करियर बदल गया और जायसवाल ने लगातार रन बनाए। उन्हें सही परवरिश मिली और खेल निखरता गया। पिछले पांच सालों में उन्होंने 49 शतक ठोके हैं और अंडर-19 क्रिकेट में अपनी पहचान बनाई है। जायसवाल अब मुंबई में एक छोटी से चॉल में रहते हैं।

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