मोरबी पुल की सुरक्षा कर रही ओरेवा के पास लाइफगार्ड या नाव तक नहीं थे, 10 प्वाइंट में जानें और क्या लापरवाही की

Gujarat Assembly Election 2022: गुजरात विधानसभा चुनाव के बीच बीते 30 अक्टूबर को मोरबी जिले में झूला पुल टूटने की दुखद घटना की फोरेंसिक रिपोर्ट आ गई है। इसे सरकारी वकील विजय जानी ने मंगलवार, 22 नवंबर को कोर्ट में प्रस्तुत किया। 

Ashutosh Pathak | Published : Nov 22, 2022 10:54 AM IST / Updated: Nov 22 2022, 04:48 PM IST

गांधीनगर।  Gujarat Assembly Election 2022: मोरबी में पुल की सुरक्षा कर रही ओरेवा के पास लाइफ गार्ड या नाव तक नहीं थे, 10 प्वाइंट में जानें और क्या लापरवाही की मोरबी। गुजरात के मोरबी जिले में बीते 30 अक्टूबर की शाम माच्छू नदी पर बना झूला पुल यानी हैंगिंग ब्रिज अचानक टूट गया था। बताया गया कि घटना के दौरान पुल पर 300 से अधिक लोग मौजूद थे, जिसमें 130 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। इसके अलावा सौ से अधिक लोग घायल हुए, जिसमें बहुत से लोगों को गंभीर चोटें आईं और इन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। दावा किया गया कि यह पुल कई महीनों से मरम्मत के लिए बंद किया गया था और जब खोला गया, तब यह बड़ा हादसा हो गया। 

विपक्ष समेत कई गैर सरकारी संगठनों की ओर से दावा किया गया कि इसमें मैनेजमेंट और अफसरों ने लापरवाही बरती। साथ ही मरम्मत कार्य को लेकर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे। पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए 9 लोगों को घटना के अगले ही दिन गिरफ्तार कर लिया था। इसमें पुल का रखरखाव करने वाली कंपनी ओरेवा ग्रुप के लोग भी शामिल थे। इसके अलावा, स्थानीय नगर पालिका के अधिकारियों पर भी लापरवाही बरतने और भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाया जा रहा है। इस मामले में गवर्नमेंट एडवोकेट विजय जानी की ओर से फोरेंसिंक जांच रिपोर्ट मंगलवार, 22 नवंबर को कोर्ट में दाखिल की गई। आइए 10 प्वाइंट में समझते हैं रिपोर्ट में क्या कहा गया है। 

घटना वाले दिन तीन हजार से अधिक टिकट जारी हुए 
ओरेवा ग्रुप ने घटना वाले दिन यानी 30 अक्टूबर 2022 को पुल पर जाने के लिए 3 हजार 165 टिकट जारी किए थे। बता दें कि पुल पर जाने के लिए टिकट जारी किया जाता था। हालांकि, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कंपनी ने सभी टिकट तो नहीं बेचे, मगर मरम्मत कार्य के बाद इस पुल की भार वहन क्षमता का आंकलन नहीं किया गया और भीड़ को मनमाने तरीके से जाने दिया। इस पुल को करीब सौ साल पहले बनाया गया था। 

पुल में लगे केबल जंग खाए हुए थे 
रिपोर्ट के मुताबिक, मरम्मत कार्य में लापरवाही बरती गई। पुल में जो केबल लगे थे, उसमें जंग लगा था, जिससे उसके एंकर टूट गए। केबल को एंकर से जोड़ने वाले बोल्ट भी ढीले थे। पुल शुरू करने से पहले इसकी एक जांच हुई थी, जिसमें इन बिंदुओं को उठाते हुए यह कहा गया कि पुराने केबल नए फर्श का भार नहीं उठा सकते हैं।  

जिन कर्मचारियों को रखा गया वे प्रफेशनल्स नहीं थे 
विजय जानी ने अब तक गिरफ्तार किए गए सभी नौ लोगों की जमानत पर सुनवाई के दौरान कहा। ओरेवा ग्रुप ने जिन लोगों का काम पर रखा वे इसके योग्य नहीं थे और न ही वे प्रफेशनल्स थे। गार्ड और टिकट कलेक्टर दिहाड़ी मजदूर थे। भीड़ को नियंत्रित कैसे किया जाना चाहिए, इसकी जानकारी उन्हें नहीं थी। ओरेवा ग्रुप घड़ी बनाने वाली कंपनी अजंता द्वारा संचालित किया जाता है। इस कंपनी के किसी बड़े अधिकारी को अब तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। 

हादसे से निपटने के लिए कंपनी के पास सुरक्षा संसाधन नहीं थे 
रिपोर्ट के अनुसार, गार्डों को सुरक्षा प्रोटोकॉल या पुल पर कितने लोगों को अनुमति दी जानी चाहिए, इसके बारे में भी नहीं बताया गया। विजय जानी ने बताया कि ओरेवा ग्रुप खासकर सिक्योरिटी के लिए जिम्मेदार था, मगर लापरवाही की हद यह थी कि उनके पास किसी हादसे की स्थिति से निपटने के लिए और लोगों को बचाने के लिए लाइफगार्ड या नाव तक नहीं थी। 

पुल दोबारा खोलने के चार दिन बाद गिर गया 
विजय जानी के अनुसार, मोरबी में माच्छू नदी पर बना झूला पुल दोबारा खोले जाने के चार दिन बाद ही टूट गया। कांट्रेक्ट की शर्तों के अनुसार इसे मरम्मत के बाद 8 से 12 महीनों तक बंद रखा जाना था, लेकिन सात महीने बाद ही यानी 26 अक्टूबर को गुजराती नव वर्ष पर इसे स्थानीय नागरिक निकाय द्वारा खोलने की अनुमति दे दी गई, जबकि तब कोई फिटनेस प्रमाण पत्र भी नहीं चेक किया गया। 

पुल को खोला नहीं जाना था 
यही नहीं, पिछले हफ्ते हाईकोर्ट में नगर पालिका ने इस घटना की जिम्मेदारी ली और अपने शपथ पत्र में स्वीकार किया कि इसे खोला नहीं जाना चाहिए था। इस बारे में कार्रवाई करते हुए एक अधिकारी को सस्पेंड कर दिया गया है। इसके अलावा हाईकोर्ट ने खुद 6 अन्य विभागों को नोटिस जारी किया है। 

नगर पालिका ने की चूक 
हाईकोर्ट ने हादसे से जुड़ी जानकारी के बारे में हलफनामा दायर करने में देरी करने पर नगर पालिका से नाराजगी भी जताई। हाईकोर्ट ने कहा कि नगर पालिका एक सरकारी निकाय है और इसकी चूक की वजह से 135 लोगों की जान चली गई। 

टेंडर की शर्तें भी पूरी नहीं की गईं 
यही नहीं, हाईकोर्ट ने नगर पालिका के अधिकारियों से यह भी पूछा कि इस मामले में कानूनी प्रक्रिया को पूरा क्यों नहीं किया गया। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि इस बारे में कोई टेंडर जारी नहीं हुआ और राज्य ने उदारता दिखाते हुए कंपनी को पुल के रखरखाव की मंजूरी दे दी। कोर्ट ने यह भी पूछा कि जून 2017 के बाद कंपनी किस आधार पर पुल का संचालन कर रही थी। यह कांट्रेक्ट 2008 में अगले सात साल यानी 2017 तक के लिए ही जारी किया गया था और बाद में इसे रिन्यू यानी नवीनीकरण नहीं किया गया। ऐसे में मार्च 2022 में एक बार फिर 15 साल के लिए एक नए समझौते पर हस्ताक्षर कैसे किए गए।  

आरोपियों पर कार्रवाई की निगरानी करती रहनी होगी 
बहरहाल, यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हाईकोर्ट को समय-समय पर सुनवाई करते रहने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह एक बड़ी त्रासदी है। इसमें बरती गई तमाम लापरवाहियों तथा ऐसा करने वाले तमाम आरोपियों पर कार्रवाई की निगरानी करते रहनी होगी। 

पीड़ितों को मुआवजे की भी निगरानी 
गुजरात सरकार ने इस मामले की जांच के लिए पांच सदस्यीय समिति का गठन किया है। गुजरात राज्य मानवाधिकार आयोग ने हाईकोर्ट को बताया है कि उसके अध्यक्ष और एक अन्य सदस्य भी हादसे की जांच कर रहे हैं। आयोग इस बात की निगरानी भी कर रहा है कि पीड़ितों को सही तरीके से समय पर मुआवजा दिया जा रहा है या नहीं। 

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