वापसी के लिए छटपटा रही BJP, पहली बार सत्ता मिली तो फिक्स नहीं कर पाई CM, 3 बार हुई अदला-बदली

दिल्ली में विधानसभा चुनाव का आगाज 1993 में हुआ था। इसके बाद से अभी तक छह चुनाव हो चुके हैं और सातवें चुनाव की सियासी बिसात बिछ चुकी है।  

Asianet News Hindi | Published : Jan 7, 2020 10:48 AM IST

नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव की औपचारिक घोषणा हो गई है। दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों के लिए 8 फरवरी को वोट डाले जाएंगे और नतीजे 11 फरवरी को आएंगे। इसी के साथ दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने की सियासी जंग तेज हो गई है। दिल्ली में विधानसभा चुनाव का आगाज 1993 में हुआ था। इसके बाद से अभी तक छह चुनाव हो चुके हैं और सातवें चुनाव की सियासी बिसात बिछ चुकी है।  

दिल्ली में 1993 से लेकर अब तक छह विधानसभा चुनाव हुए हैं। इनमें से एक बार बीजेपी, तीन बार कांग्रेस और दो बार आम आदमी पार्टी सत्ता पर काबिज होने में कामयाब रही है। बीजेपी को पांच साल के कार्यकला में राज्य में तीन सीएम बनाने पड़े तो कांग्रेस की शीला दीक्षित 15 साल तक एक छत्रराज करने में सफल रही हैं। वहीं, अरविंद केजरीवाल दिल्ली की सत्ता पर तीसरी बार काबिज होने के लिए अपने विकास कार्यों की दुहाई दे रहे हैं। हालांकि पहली बार में अरविंद केजरीवाल महज 52 दिन ही सीएम रहे हैं, लेकिन दूसरी पारी में पांच साल का कार्यकाल पूरा करने में सफल रहे हैं। 

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पांच साल में बीजेपी को बनाने पड़े 3 मुख्यमंत्री 

दिल्ली में विधानसभा चुनाव का आगाज 1993 में हुआ। इससे पहले दिल्ली चंडीगढ़ की तरह केंद्र शासित प्रदेश हुआ करता था, जहां विधानसभा नहीं हुआ करते थे। दिल्ली में पहले चुनाव में बीजेपी कमल खिलाने में कामयाब रही थी। 1993 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली की कुल 70 विधानसभा सीटों में बीजेपी 47.82 फीसदी वोट के साथ 49 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। कांग्रेस को 34.48 फीसदी वोट के साथ 14 सीटें मिली थीं। इसके अलावा 4 सीटें जनता दल और तीन सीटें निर्दलीय के खाते में गई थी। 

बीजेपी को प्रचंड जीत दिलाने का सेहरा मदनलाल खुराना के सिर सजा था। मदनलाल खुराना मुख्यमंत्री बने लेकिन 26 फरवरी 1996 को उन्हें अपने पद से हटना पड़ा और पार्टी ने उनकी जगह साहेब सिंह वर्मा को सत्ता की कमान सौंपी। हालांकि साहेब सिंह वर्मा को भी बीजेपी ने चुनाव से ऐन पहले हटाकर 12 अक्टूबर 1998 को सुषमा स्वराज को सीएम बना दिया। सुषमा स्वराज के नेतृत्व में ही बीजेपी को करारी हार का मुंह देखना पड़ा था। 

सुषमा स्वराज से आगे निकलकर छा गईं शीला दीक्षित 
दिल्ली में दूसरी बार विधानसभा चुनाव 1998 में हुआ। बीजेपी की ओर से चेहरा सुषमा स्वराज तो कांग्रेस की ओर से शीला दीक्षित थीं। दिल्ली का चुनाव इस तरह से दो महिलाओं के बीच हुआ और इस जंग में शीला दीक्षित बीजेपी की सुषमा स्वराज पर भारी पड़ीं। 1998 में दिल्ली की कुल 70 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस 47.76 फीसदी वोट के साथ 52 सीटें जीतने में कामयाब रहीं। वहीं, बीजेपी को 34.02 फीसदी वोट के साथ 15 सीटें मिलीं। इसके अलावा तीन सीटें अन्य को मिलीं। 

दिल्ली में बीजेपी को 34 सीटों का नुकसान हुआ तो कांग्रेस को 38 सीटों को सियासी फायदा मिला। दिल्ली में कांग्रेस की जीत का सेहरा शीला दीक्षित के सिर सजा और इसके बाद शीला ने कभी पलटकर नहीं देखा। 

शीला के आगे फिर फेल हुई बीजेपी 
दिल्ली में 2003 में तीसरी बार विधानसभा चुनाव हुए। बीजेपी ने शीला दीक्षित के खिलाफ मदनलाल खुराना पर दांव खेला, लेकिन वो अपना करिश्मा नहीं दिखा सके। 2003 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली की कुल 70 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस 48.13 फीसदी वोट के साथ 47 सीटें जीतने में कामयाब रही और बीजेपी 35.22 फीसदी वोट के साथ 20 सीटें ही जीत सकी। इसके अलावा तीन सीटें अन्य को मिलीं। इस बार भी कांग्रेस की जीत का श्रेय शीला दीक्षित को मिला और वह एक बार फिर मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहीं। 

शीला का कमाल, फिर मुरझाया कमल 
दिल्ली में चौथी बार विधानसभा चुनाव 2008 में हुए। इस चुनाव में भी शीला दीक्षित सब पर भारी पड़ीं। बीजेपी ने शीला दीक्षित के खिलाफ विजय कुमार मल्होत्रा पर दांव खेला लेकिन वो भी कमल खिलाने में कामयाब नहीं रहे। 2008 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली की कुल 70 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस 40.31 फीसदी वोट के साथ 43 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। बीजेपी को 36.34 फीसदी वोटों के साथ 23 सीट पर संतोष करना पड़ा और तीन सीटें अन्य को मिलीं। 

केजरीवाल का शुरू हुआ दौर, तबाह हो गई कांग्रेस 
दिल्ली में पांचवी बार विधानसभा चुनाव 2013 में हुए। इस चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के अलावा तीसरे राजनीतिक दल के तौर पर आम आदमी पार्टी उतरी। अन्ना आंदोलन से निकले अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के सियासी समीकरण को बिगाड़कर रख दिया। 2013 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली की कुल 70 विधानसभा सीटों में से बीजेपी 33 फीसदी वोटों के साथ 31 सीटें जीतने में कामयाब रही। 

वहीं, अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में उतरी आम आदमी पार्टी ने 29.5 फीसदी वोट के साथ 28 सीटें जीती और कांग्रेस को 24.6 फीसदी वोटों से साथ महज 8 सीटें ही मिलीं। इस तरह से दिल्ली में किसी को भी बहुमत नहीं मिला। ऐसे में आम आदमी पार्टी को कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया और अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे. हालांकि, केजरीवाल ने 49 दिन तक सीएम रहने के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव से ऐन पहले सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। 

आप के तूफान में तिनके की तरह उड़ी बीजेपी कांग्रेस 
दिल्ली में छठी बार 2015 में विधानसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में केजरीवाल बीजेपी और कांग्रेस दोनों पर भारी पड़े। दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से आम आदमी पार्टी को 67 सीटें मिलीं तो बीजेपी को महज तीन सीटें ही मिल सकी। वहीं, कांग्रेस दिल्ली में खाता भी नहीं खोल सकी। दिल्ली में प्रचंड जीत के बाद अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने। 

 2019 में सातवां चुनाव

दिल्ली में सातवीं विधानसभा चुनाव का आगाज हो गया है। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी एक बार फिर सत्ता में वापसी के लिए लिए हाथ पांव मार रही है तो बीजेपी अपने दो दशक के सत्ता के वनवास को खत्म करने की कवायद कर रही है। वहीं कांग्रेस अपने बीते 15 साल के विकास के सहारे एक बार फिर वापसी का सपना संजो रही है। हालांकि दिल्ली में कांग्रेस का चेहरा रहीं शीला दीक्षित के बिना चुनावी मैदान में उतरना होगा और पार्टी के लिए मुश्किल चुनाव माना जा रहा है। 


बताते चलें कि 1952–1956 तक दिल्ली में अंतरिम विधानसभा थी। इस दौरान कांग्रेस के चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव और गुरुमुख निहाल सिंह मुख्यमंत्री रहे। 

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