सुखबीर बादल की सीट से रिपोर्ट: बॉर्डर के पास चक्क बलूच गांव, यहां आबादी से ज्यादा लोगों पर शराब तस्करी के केस

यह गांव सुखबीर बादल के विधानसभा क्षेत्र जलालाबाद में आता है। बादल दावा करते हैं कि उन्होंने खूब काम कराए। इसमें दोराय भी नहीं है। क्योंकि ढांचागत सुविधाएं तो नजर आती हैं। लेकिन दिक्कत यह है कि लोगों का सामाजिक और आर्थिक स्तर को कैसे ऊंचा उठाया जाए, इस दिशा में ज्यादा काम नहीं हुआ। 

मनोज ठाकुर, जलालाबाद। हां जी, मैं कच्ची शराब निकालता हूं। इसे बेचता हूं। क्या करूं। मेरे पास काम नहीं है। मुझे अपना परिवार चलाना है। इसलिए पैसा चाहिए। कमाई का कोई जरिया नहीं। दो ही विकल्प हैं। बच्चों को भूख से बिलबिलाते देखूं या फिर अवैध शराब का काम करूं। मैंने दूसरा विकल्प चुना है। मेरे दादा ने शराब निकालने का काम शुरू किया था। फिर मेरे पिता निकालते रहे। अब मैं इसी धंधे में हूं। यह कहना है कि चक्क बलूच मालम गांव में रहने वाले दर्शन सिंह (43) का। बड़ी साफगोई से स्वीकार करते हैं कि वह अवैध शराब निकलते हैं। साथ ही वजह भी साफ कर देते हैं। क्योंकि रोजगार नहीं है। 

यह गांव पाकिस्तान से 10 किलोमीटर की दूरी पर भारत की सीमा पर है। गांव में कच्ची शराब निकालने का काम पुश्तैनी है। यह भी कह सकते हैं कि यह इनका कुटीर उद्योग है। गांव की सारी अर्थव्यवस्था अवैध शराब पर टिकी है। गांव के लोग खतरनाक इतने है कि पुलिस भी वहां रेड डालने से डरती है। रेड डालने के लिए एक बार डीएसपी गांव में आ गए। ग्रामीणों ने उन पर जानलेवा हमला बोल दिया। डीएसपी बच तो गए, हमले में नाक टूट गई। 

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समृद्ध पंजाब की बदरंग तस्वीर दिखाता है ये गांव
पंजाब के वास्तविक हालात से रूबरू होने के लिए एशियानेट न्यूज हिंदी लगातार इस तरह के गांवों से रिपोर्ट कर रहा है, जो आमतौर पर सुर्खियों से परे रहते हैं। 2 बजे का समय था। हम इस गांव में पहुंचे तो एक दुकान पर काफी लोग मिले। पहले तो उन्होंने कैमरा बंद करा दिया। वह यह देखना चाह रहे थे कि हम पुलिस या खुफिया विभाग से तो नहीं हैं। जब उन्हें विश्वास हो गया तो वह बातचीत को तैयार हुए। कुछ ने कैमरे पर बोला तो कुछ ऑफ कैमरा ही बातचीत कर रहे थे। क्या पंजाब ऐसा भी है। बातचीत से यह निकल कर आया। समझ में आया कि इस तरह के गांव समृद्ध पंजाब की बदरंग तस्वीर के वह किरदार हैं, जो सहज ही सोचने पर विवश करते हैं कि क्या ऐसा अभी भी होता है? 

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दिल्ली बहुत दूर है, चंडीगढ़ को परवाह नहीं
'चक्क बलूच मालम' गांव से चंडीगढ़ दूर है, दिल्ली तो बहुत ही दूर। हां, नजदीक है लाहौर। दर्शन सिंह कहते हैं कि दिल्ली हमारे बारे में सोचता नहीं, चंडीगढ़ को परवाह नहीं और लाहौर कोई हमें जाने नहीं देता। हम यहां बॉर्डर पर नरकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। मैं बेटे को इससे अलग रखना चाहता हूं, मगर बेरोजगार बेटा एक ना एक दिन कच्ची शराब के धंधे में फंसेगा ही।

गुजारा करने के लिए धंधा करना मजबूरी बन गया
गांव के हरपाल सिंह 68 ने बताया कि उसकी तीन पीढ़ियां अवैध शराब निकालती आई हैं। घर में ही उसने भट्टी लगा रखी है। जिस पर वह कच्ची शराब तैयार करता है। वह 50 रुपए बोतल शराब बेचता है। दिन में 7 से 8 शराब की बोतल आराम से बेच देता है। इससे मिले पैसे से उसका गुजरा चलता है। उसने बताया कि उसका दादा भी यह काम करता था। पिता ने शराब निकाली। अब वह निकाल रहा है। मेरे पास कोई रोजगार नहीं है। कोई जमीन नहीं है। जहां मैं अनाज उगाकर अपने बच्चों का पेट पाल सकूं। मेरा बेटा 10वीं पास है। आज तक कोई रोजगार नहीं मिला। मैं चाहता हूं, वह इस काम में ना आए। लेकिन मैं उसे ज्यादा दिन शराब निकालने से रोक नहीं सकता। क्योंकि एक ना एक दिन वह इस धंधे में आएगा जरूर। आखिर गुजारा चलाने के लिए कुछ पैसे तो चाहिए ही। 

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सरकार गांव की तरफ ध्यान नहीं देती
गांव निवासी बलविंदर सिंह (54) ने बताया कि उन्हें पता है- यह गलत काम है। लेकिन कौन जानबूझ कर बदनामी लेता है। मजबूरी है। यदि सरकार हमें नौकरी दें तो वह क्यों शराब की तस्करी करेंगे। कुछ काम तो होना ही चाहिए। गांव निवासी मंगत सिंह (45) ने बताया कि सरकार इस गांव की ओर ध्यान नहीं देती है। उन्होंने बताया कि इस गांव में ही नहीं, अवैध शराब बनाने और बेचने का काम आसपास के गांवों में भी होता है। यहां तस्करी लोगों की जीवन यापन का जरिया है। 

गांव में शराब की नहीं, हथियार भी मिलते हैं
गांव के बाहर ही चाय की दुकान चला रहे एक युवक हरजोत सिंह गिल (32) ने बताया कि यहां आपको जो चाहिए वह सब मिल सकता है। शराब ही नहीं, यहां चिट्टा, भुक्की, अफीम, स्मैक और यहां तक की हथियार भी। बलविंदर ने बताया कि पता है शराब निकालना गलत काम है। लेकिन क्या करें? इसके सिवाय उनके पास चारा ही क्या है? आखिर पेट को दो जून की रोटी तो चाहिए ही। 

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पुलिस भी अपना हिस्सा लेकर चली जाती है 
गांव निवासी बचन सिंह (68) ने बताया कि पुलिस यहां आती है, अपना हिस्सा लेकर चली जाती है। उसने बताया कि 80 प्रतिशत लोग शराब निकालने का काम करते हैं। लोग यहां आते हैं, खुद ही शराब लेकर चले जाते हैं। उसने बताया कि क्योंकि अभी चुनाव है, इसलिए यहां अर्धसैनिक बल लगातार रेड मार रहे हैं। इस वजह से शराब का काम अभी बंद कर दिया है। उन्होंने ऑफ कैमरा बताया कि चुनाव में तो शराब की तस्करी ज्यादा होती है। यहां से नेताओं के लोग ही शराब खरीद कर ले जा रहे हैं। चुनाव के दिन तो उनके चार पैसे कमाने के होते हैं। बचन सिंह ने बताया कि यदि किसी के ऊपर शराब निकालने या तस्करी का मामला दर्ज हो भी जाए तो क्या फर्क पड़ता है। उसे 15 दिन जेल में रहना पड़ता है। वापस आने के बाद वह फिर से इस काम में पड़ जाता है। 

एक बार पर्चा दर्ज हुआ तो हमेशा तस्कर बन जाते हैं 
गांव के युवक सतनाम सिंह (28) ने बताया कि जिस पर एक बार तस्करी का पर्चा दर्ज हो गया तो वह पक्का ही तस्कर बन जाता है। क्योंकि बाद में यदि वह यह काम छोड़ना भी चाहता है तो पुलिस उसे छोड़ने ही नहीं देती। उसे बार-बार उठाकर ले जाती है। उसने बताया कि समस्या यह है कि यहां रोजगार ना होने की वजह से हर कोई खाली है। मैं खुद यहां पूरा-पूरा दिन खाली बैठा रहता हूं, मेरे गांव में कम से कम 50 युवा ऐसे हैं, जिन्होंने एस्टेट (स्टेट इलिजिबिलिटी टेस्ट फॉर टीचर) पास कर रखा है। लेकिन उन्हें नौकरी ही नहीं मिली। अब वह क्या करेंगे। तनाव में आकर नशा करेंगे। फिर खुद शराब निकालने का काम भी शुरू कर देंगे।

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नेताओं ने कुछ नहीं किया, सिर्फ कहते आ रहे हैं
यहां के 27 साल के युवक रमन ने बताया कि उसे पढ़ने के बाद भी आज तक नौकरी नहीं मिली है। उन्होंने बताया कि वह बाहर नहीं जा सकते। रमन ने कहा कि यहां से घर छोड़ कर जाएं कहां? सतनाम सिंह ने बताया कि यहां इंडस्ट्री लगनी चाहिए। जिसमें युवाओं को रोजगार मिले। नेता कहते तो हैं, यहां इंडस्ट्री लगाएंगे, लेकिन आज तक इस दिशा में कुछ नहीं किया। उन्होंने बताया कि अब नेता कहते हैं कि एक मौका दें, लेकिन क्यों मौका दें। यह पार्टियां इतनी पुरानी हैं, अब तक क्या किया? अकाली दल और कांग्रेस सभी एक जैसे हैं। 

किसी ने गांव का मुख्यधारा में लाने की कोशिश नहीं की 
यह गांव सुखबीर बादल के विधानसभा क्षेत्र जलालाबाद में आता है। बादल दावा करते हैं कि उन्होंने खूब काम कराए। इसमें दोराय भी नहीं है। क्योंकि ढांचागत सुविधाएं तो नजर आती हैं। लेकिन दिक्कत यह है कि लोगों का सामाजिक और आर्थिक स्तर को कैसे ऊंचा उठाया जाए, इस दिशा में ज्यादा काम नहीं हुआ। खासतौर पर उन गांवों में जो बॉर्डर के साथ लगते हैं। यहां सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में काम होना चाहिए। इस दिशा में ध्यान दिया जाना चाहिए था। पर शायद यहां कराए गए कामों की ज्यादा चर्चा नहीं होती, इस सोच की वजह से नेताओं ने मालम जैसे गांवों को उनके हालात पर छोड़ दिया है। पर सवाल यह है कि आज जिस समस्या से मालम गांव दो चार हो रहा है, क्या यह समस्याएं अपना दायरा नहीं बढ़ाएगी। और यदि यह बढ़ते हुए दूसरे इलाकों में भी आ गई तो फिर क्या होगा? चुनाव में इस बार नेताओं को यह भी सोचना चाहिए।

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