पंजाब चुनाव: ECI से बलवीर राजेवाल को झटका, संयुक्त समाज मोर्चा को नहीं मिली मान्यता, निर्दलीय लड़ेंगे कंडीडेट

बलबीर सिंह राजेवाला ने कहा कि भाजपा और आम आदमी पार्टी ने एक साजिश के तहत उन्हें सिंबल से वंचित रखा है। हमने 25 दिसंबर को आवेदन किया था। उनसे जो औपचारिकता पूरी करने के लिए बोला गया था, वह 7 जनवरी को उन्होंने पूरी कर दी।

चंडीगढ़। संयुक्त समाज मोर्चा पार्टी (Sanyukta Samaj Morcha) को चुनाव आयोग (ECI) ने रजिस्टर्ड नहीं किया गया है। इस वजह से मोर्चा को अब सिंबल नहीं मिल सकेगा। ऐसे में अब मोर्चा के सभी उम्मीदवार निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे। हालांकि उनके पास एक विकल्प है कि वह गुरनाम सिंह चढूनी (Gurnam Singh Chaduni) की संयुक्त संघर्ष पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन मोर्चा के सीनियर नेता बलबीर सिंह राजेवाला (Balbir Singh Rajewala) इसके लिए तैयार नहीं हैं। हालांकि, मोर्चा के कुछ उम्मीदवार चाहते हैं कि गुरनाम सिंह की पार्टी के निशान पर चुनाव लड़ा जाए। इसे लेकर मोर्चा में थोड़ा विवाद भी है। लेकिन, राजेवाला की बात मोर्चे में कोई टालता नहीं है, इसलिए तय किया गया कि उम्मीदवार निर्दलीय पर ही चुनाव लड़ेंगे। 

भाजपा और आप ने सिंबल देने से वंचित रखा: राजेवाल
इधर, बलबीर राजेवाला ने कहा कि भाजपा और आम आदमी पार्टी ने एक साजिश के तहत उन्हें सिंबल से वंचित रखा है। हमने 25 दिसंबर को आवेदन किया था। उनसे जो औपचारिकता पूरी करने के लिए बोला गया था, वह 7 जनवरी को उन्होंने पूरी कर दी। इसके बाद भी उन्हें आश्वासन दिया जाता रहा कि रजिस्ट्रेशन हो जाएगा। अब ऐन मौके पर उन्हें सिंबल देने से इंकार कर दिया गया है। इसके पीछे भाजपा की भूमिका है। क्योंकि भाजपा नहीं चाहती कि मोर्चा पार्टी के तौर पर पंजाब में अपनी पहचान बनाए। 

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मोर्चे की लोकप्रियता से आप भी परेशान
उनका कहना था कि आम आदमी पार्टी को मोर्चा से सीधा असर पड़ रहा है। इसलिए आम आदमी पार्टी भी नहीं चाहती कि मोर्चा राजनीति पार्टी के तौर पर पंजाब में अपनी पैठ बनाए। इससे आम आदमी पार्टी पंजाब में कमजोर होती है। आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा ने तो बकायदा सवाल भी उठाया था कि मोर्चा को क्यों और कैसे मान्यता दी जा रही है? इससे ही पता चल रहा है कि आम आदमी पार्टी मोर्चे की लोकप्रियता से कितना परेशान है।

चुनाव आयोग से एक जैसा सिंबल मांगा है
इसलिए सभी ने चुनाव आयोग पर दबाव बनाया है। लेकिन हम इससे डरने या घबराने वाले नहीं हैं। हमने चुनाव आयोग से निवेदन किया कि एक जैसा सिंबल पार्टी उम्मीदवारों को दे दिया जाए। उम्मीद है कि यह मिल जाएगा। ट्रैक्टर के सिंबल पर भी अभी संशय है। हमने चारपाई का भी सिंबल मांगा है। देखते हैं, जो मिलता है- उस पर चुनाव लड़ लेंगे। इससे हम परेशान नहीं है। क्योंकि किसानों को पता है कि मोर्चा पर चोरों तरफ से हमला होना ही है, हम इसके लिए तैयार हैं। मतदाता हमारे साथ हैं। इस वक्त पंजाब में सिर्फ एक आवाज आ रही है। पंजाब में संयुक्त मोर्चा की सरकार बनेगी। 

मोर्चा को ज्यादा नुकसान नहीं होगा
पंजाब के राजनीतिक समीक्षक वीरेंद्र सिंह भारत ने बताया कि इससे मोर्चा को थोड़ा असर तो पड़ सकता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि ज्यादा दिक्कत आएगी। यह सही है कि यदि सिंबल होता तो मोर्चा को आसानी होती। लेकिन, ऐसा नहीं है कि सिंबल ना होने से मोर्चा अपनी पकड़ मतदाता पर खो देगा। क्योंकि मोर्चा के मतदाता का इससे कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। वीरेंद्र भारत ने कहा कि हां एक दिक्कत आ सकती है। यदि पंजाब में यदि किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता तो मोर्चा से जो उम्मीदवार जीत जाते हैं। तब उनकी भूमिका बड़ी हो जाती है। क्योंकि इससे तोड़फोड़ की संभावना बढ़ जाती है।  यदि मोर्चा को मान्यता मिल जाती तो तब इसकी टूट की संभावना ना के बराबर हो जाती है। क्योंकि तब दल बदल कानून के तहत उनकी सदस्यता रद्द भी हो सकती है। 

मोर्चा के प्रति गांवों में रुझान
वीरेंद्र भारत ने बताया कि मोर्चा इस स्थिति का भी भुनाने की कोशिश करेंगे। वह मतदाता के बीच जाकर यह बात उठा रहे हैं कि उन्हें दल के तौर पर मान्यता नहीं दी जा रही है। इसका भी उन्हें लाभ मिल सकता है। क्योंकि मोर्चा के प्रति पंजाब के लोगों खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में अच्छा रुझान है। इसलिए मोर्चा का इससे ज्यादा दिक्कत नहीं होने वाली है। उलटा इस स्थिति का वह फायदा उठाने की कोशिश ही करेंगे। जिसका कुछ लाभ मोर्चा का मिल भी सकता है। 

राजेवाल की पंजाब में व्यक्तिगत पकड़
जहां तक बलबीर सिंह राजेवाला का सवाल है, वह अपनी जगह सही हैं। क्योंकि यदि चढूनी के सिंबल पर चुनाव लड़ा जाता है तो गुरनाम सिंह चढूनी की पार्टी को पंजाब में मान्यता मिलती है। तब पंजाब की राजनीति में चढूनी को बलबीर राजेवाला की तुलना में ज्यादा तवज्जो मिलेगी। बलबीर राजेवाल की पंजाब में अपनी व्यक्तिगत पकड़ है। इसलिए वह नहीं चाहेंगे कि इसका श्रेय कोई दूसरा ले। वह चाहे उनका गठबंधन का साथी ही क्यों न हो?

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