डेरा समर्थक पंजाब चुनाव में अपनी ताकत दिखाने के लिए बेताब है। गुरमीत भी इस मौके का फायदा उठाने की कोशिश में हैं। वह लगातार अपनी राजनीतिक विंग के साथ बैठक कर रहा है। मतदान से पहले वह किसे समर्थन देना है, इसकी घोषणा कर सकता है। जानकारों का कहना है कि इतना तो तय है कि, डेरा कांग्रेस को समर्थन नहीं देगा।
चंडीगढ़. रेप और हत्या जैसे मामलों में सजायाफ्ता डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम आखिर कैसे पंजाब चुनाव में इतना महत्वपूर्ण किरदार बन गया? विवादास्पद होने के बाद भी वह पंजाब चुनाव में प्रभावशाली क्यों है? इस सवाल पर पंजाबी ट्रिब्यून के पूर्व पत्रकार बलविंदर सिंह ने बताया कि डेरे पंजाब विधानसभा की 117 सीटों में से 93 को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं। 47 सीट ऐसी है, जहां डेरा समर्थक मतदान कर बड़ा किसी भी प्रत्याशी कि किस्मत का फैसला कर सकते हैं।
पंजाब की सियासत में डेरों का खास असर
पंजाब में डेरा पर शोध करने वाले पूर्व हिंदुस्तान के पूर्व सीनियर पत्रकार राजकुमार भारद्वाज ने बताया कि पंजाब में 2.12 करोड़ मतदाता है। यहां के लगभग 25 प्रतिशत लोग डेरों से जुड़े रहे हैं। प्रदेश के 12 हजार 558 वेां में 1.13लाख शाखाएं हैं।
आखिर पंजाब में डेरे क्यों हैं ताकतवर
डेरे ताकतवर क्यों है? इस सवाल के जवाब में राजकुमार भारद्वाज बताते हैं, वास्तव में, ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से लोग डेरों से जुड़ते हैं।गांव में सवर्ण जाति के सिख पिछड़ी और दलित समुदाय के लोगों को गुरुद्वारे में आने से रोकने की कोशिश करते हैं। अपनी पहचान की खातिर यह लोग डेरों से जुड़ जाते हैं। पंजाब में क्योंकि धर्म और आस्था के प्रति लोगों में बड़ा रुझान है। सिख धार्मिक तौर पर ज्यादा सक्रिय रहते हैं। उनकी देखा देखी में दूसरे समुदाय भी उतना ही सक्रिय होना चाहते हैं। इसलिए वह डेरों के साथ जुड़ कर धार्मिक तौर पर सक्रिय रहते हैं। नशा एक प्रमुख वजह है। इसके साथ ही गरीबी की वजह से भी लोग डेरों के साथ जुड़ जाते हैं। सबसे बड़ी वजह तो यह है कि डेरो के साथ जुड़ कर लोग खुद को मजबूत और संगठित करने की कोशिश करते हैं। उनकी कोशिश रहती है कि यदि एकजुट रहेंगे तो रोजमर्रा की दिक्कत नहीं आएगी। डेरो के माध्यम से जुड़ने में उन्हें लगता है कि वह धार्मिक रूप से एकजुट हो रहे हैं। इस तरह की सोच डेरो को पंजाब में मजबूती प्रदान करती है।
डेरों में भक्ति के साथ राजनीति का भी बड़ा वर्चस्व
डेरों को लेकर लोगों के मन में भक्ति है और यहां हर जाति और धर्म के लोग आते हैं। लेकिन दलित और पिछड़े वर्ग सबसे कमजोर हैं जो आर्थिक रूप से मजबूत नहीं हैं। पंजाब में डेरों के अस्तित्व का मुख्य कारण सामाजिक असमानता है। सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में पंजाब में जाट सिखों का वर्चस्व है। दलित कुल जनसंख्या 2011 के अनुसार 31.8 प्रतिशत थी जो कि 2021 आते आते 34.6 प्रतिशत हो गई हैं, जो किसी भी राज्य में सबसे अधिक है, लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। ऐसे सामाजिक ताने-बाने में पंजाब के भीतर के डेरों ने दलित चेतना पैदा करने का काम किया। शिविरों ने दलित समुदाय की शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल की जिम्मेदारी भी संभाल कर इस समुदाय को जोड़ा।
जाम ए इंशा पिलाने वाला राम रहीम ऐसे बना ताकतवर
डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत रामरहीम जैसे जैसे ताकतवर बनते गए, वैसे वैसे वह खुद का पंजाब में अपने आप को बड़ा दिखाने की कोशिश में जुट गया। राजनेता उसके डेरे में आने लगे। वह अब गुरू से कुछ और बड़ा होने की सोचने लगा। इस क्रम में उसने मई 2007 में उस पर आरोप लगा कि उसने दसवें गुरु गोबिंद सिंह जैसी पोशाक पहनी है। इस पर पंजाब में खूब विवाद हुआ। सिखों ने विरोध प्रदर्शन किया। इधर डेरा समर्थक गुरमीत के पक्ष में प्रदर्शन करने लगे। रामरहीम ने तब एक विशेष पेय, जाम ए इंशा पिलाने का कार्यक्रम शुरू कर दिया। सिखों ने इसे भी अपनी धार्मिक भावनाओं के विपरीत माना। इस तरह से एक ओर जहां सिखों में गुरमीत का विरोध जोर पकड़ रहा था, दूसरी ओर उसके समर्थक भी पंजाब में बढ़ते जा रहे थे। वर्षों से खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे गैर सिख समुदाय डेरा सच्चा सौदा के साथ जुड़ कर अपनी सामाजिक हैसियत मजबूत करने की कोशिश में थे।
राम रहीम को मिली थी जेड प्लस सुरक्षा
आतंकवाद और पंजाब पर शोध करने वाले डॉक्टर हरबंस सिंह ने बताया कि डेरा समर्थकों व सिखों के बीच चल रहे विवाद का फायदा खालिस्तान समर्थकों ने उठाया। इकनूर खालसा फोर्स, खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स के साथ खालिस्तान कमांडो फोर्स जैसे आतंकी संगठनों ने रामरहीम की हत्या करने की कोशिश की। दो फरवरी 2008 को राम रहीम पर जानलेवा हमला हुआ। इसमें 11 लोग जख्मी हुए। भारत सरकार ने उसकी सुरक्षा के लिए जेड प्लस सुरक्षा उपलब्ध करा दी। इसी साल 20 जून को मुंबई में एक माल में डेरा समर्थकों व सिखों के बीच झड़प हो गई। इसमें एक सिख प्रदर्शनकारी की मौत हो गई।
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गुरू कम और खुद को भगवान बताने लगा था राम रहीम
गुरमीत जितना विवादों में आ रहे थे, उतने ही उसके समर्थक बढ़ते चले गए। उसने अपना लाइफ स्टाइल बदल दिया। अब वह गुरू कम और खुद को भगवान साबित करने की कोशिश में जुट गया। उनके समर्थक भीकट्टर होने लगे। यह भी एक वजह है कि गुरमीत के जेल की सजा होने को भी उसके समर्थक षड़यंत्र करार देते हैं। वह यह जानने के लिए तैयार नहीं है कि रामरहीन ने यह गुनाह किए हैं। अब उन्हें लगता है कि यदि वह एकजुट होकर अपनी वोट की ताकत दिखा दे तो उनके गुरू को जो सजा मिली है, वह इससे बच सकता है।
अकाली दल या भाजपा समर्थन दे सकता है डेर
डेरा समर्थक पंजाब चुनाव में अपनी ताकत दिखाने के लिए बेताब है। गुरमीत भी इस मौके का फायदा उठाने की कोशिश में हैं। वह लगातार अपनी राजनीतिक विंग के साथ बैठक कर रहा है। मतदान से पहले वह किसे समर्थन देना है, इसकी घोषणा कर सकता है। जानकारों का कहना है कि इतना तो तय है कि, डेरा कांग्रेस को समर्थन नहीं देगा। आम आदमी पार्टी के साथ भी डेरा का ज्यादा तालमेल नहीं है। इसलिए अकाली दल या भाजपा की ओर डेरा जा सकता है। पूर्व पत्रकार बलविंदर सिंह का कहना है कि ऐसा लगता है कि डेरा भाजपा और अकाली दल को समर्थन देगा। जहां भाजपा उम्मीदवार मजबूत है, वह भाजपा को और जहां अकाली दल का उम्मीदवार मजबूत है वहां अकाली दल को समर्थन दे सकता है।
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