
एके सिंह
गाजीपुर: जमानियां सीट से 1991 में शारदा चौहान ने विधानसभा चुनाव लड़ा था। शारदा चौहान गाजीपुर के राजनीतिक इतिहास में चुनाव लड़कर जीतने वाली पहली महिला रहीं। शारदा चौहान ने कल्याण सरकार में योजना एवं परिवहन मंत्रालय का पदभार भी संभाला था। उस दौर में महिलाओं की सक्रिय राजनीति करना कठिन था।
जमानियां सीट पर दर्ज की फतह
आपने खास इंटरव्यू में शारदा चौहान ने बताया कि उनके पिता वायु सेना में सैन्य अधिकारी थे। उनकी शिक्षा दीक्षा देश में अलग-अलग हिस्सों में जहां - जहां उनके पिता जी की तैनाती रही, वहां से उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की। शारदा चौहान ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से बीएससी कर कानून की पढ़ाई कर इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत करने लगी। उन्होंने आगे बताया कि कालेज के दिनों से हीं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ी रहीं। 1991 के चुनाव से पूर्व तत्कालीन बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं अटल बिहारी वाजपेयी व सुंदर सिंह भंडारी के कहने पर उन्होनें विधानसभा चुनाव लड़ने का मन बनाया।
शारदा चौहान ने पार्टी के आलाकमान को गाजीपुर के जमानियां सीट से चुनाव लड़ने की जानकारी दी। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने महिला होने के नाते गाजीपुर के सदर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की सलाह दिया। लेकिन, उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से प्रतिकूल माहौल वाले जमानियां सीट से चुनाव लड़ने की बात कहते हुए भोजपुरी में कहा कि ' पत्थर परे दूब जमाइब ' 1991 के विधानसभा चुनाव में शारदा चुनाव ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी आरएडी के रविंद्र जायसवाल से दो हजार के मतों के अंतर से जीत हासिल की। शारदा चौहान को कुल बाइस हजार वोट मिले थे। वहीं उनके विरोधी रविंद्र जायसवाल को बीस हजार मत मिले थे। उन्होंने यह भी बताया कि 1952 के बाद पूर्वांचल से किसी भी महिला को मंत्री बनने का सौभाग्य नहीं मिला था। कल्याण सरकार में योजना एवं परिवहन मंत्री बनाया गया। इसके बाद भी वह दो विधानसभा चुनाव में लड़ी थी, लेकिन जनादेश उनके हक में नहीं रहा।
मूलतः गाजीपुर के सादात खुटहीं की रहने वाली हैं शारदा
शारदा चौहान गाजीपुर के सादात खुटहीं गांव के मूलत: रहने वाली है। उनका गांव जखनियां विधानसभा क्षेत्र में आता है। जो परीसिमन के आधार पर उस समय भी आरक्षित सीट था। ऐसे में उन्होने जमानियां सीट से चुनाव लड़ने का मन बनाया। उन्होने यह भी बताया कि 1991 के बाद कई महिलाएं देश की गाजीपुर की राजनीति में सक्रिय है। यह देखकर उन्हें खुशी मिलती है। ज्यादा से ज्यादा महिलाओं में राजनीति में कुछ कर गुजरने का जज्बा पैदा हुआ है। जो काबिले तारीफ है।
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