
Javed Akhtar Biography: जावेद अख्तर को बचपन से ही फिल्मों का शौक था। जब वे पहली कक्षा में गए तो टीचर ने उनसे पूछा कि वे चिड़ियाघर जाना चाहते हैं, फिल्म देखन तो जावेद ने बसंत बिहार टॉकीज में फिल्म देखना चुना था। उस समय उन्होंने आग मूवी देखी थी। वे इससे इतना प्रभावित हो गए थे कि बस हीरो बनना चाहते थे। इसके बाद वे जब ग्रेजुएशन करने के लिए कॉलेज में आए तो घर पर सभी खूब पढ़े लिखे थे, तो इस परंपरा को कायम रखते हुए मैंने भी लिटरेचर पढ़ना शुरु किया। दिन भर मन पढ़ने में ही लगा रहता था।
जावेद अख्तर ने कोमल नाहटा के पॉडकास्ट में बताया कि वे खूब नॉवेल भी पढते थे। इसके बाद वे उस पर फिल्म के बारे में भी सोचने लगते थे, यदि इस कहानी पर मूवी बनाई जाए तो उसके सीन क्या होंगे। उन्होंने खुद कहा कि ये 15-16 साल से उन्हें बीमारी लग गई। वे उस समय अपने मित्रों से कहते थे कि मैं ये पढ़ाई नौकरी करने के लिए नहीं कर रहा हूं, ये तो मैग्जीन में जो सेलेब्रिटी का एजुकेशन स्टेटस छपता है ना, ज्यादातर के में लिखा होता...अधिकतर शिक्षा घर पर हुई...इस स्टेटस को बदलने के लिए ग्रेजुएशन कर रहा हूं। पढ़ाई के बाद मैंने तय कर लिया था कि गुरुदत्त या फिर राज कपूर का असिस्टेंट बन जाउंगा। फिर हीरो या डायरेक्टर बन जाउंगा, लेकिन मुंबई आने के 7-8 दिन बाद ही गुरुदत्त साहब की मौत हो गई। फिर 5-6 साल तक वे आरके स्टूडियो ही नहीं जा पाए।
जावेद अख्तर आए तो हीरो बनने के लिए थे, लेकिन पहला ब्रेक उन्हें कमाल अमरोही ने दिया, वो भी स्क्रिप्ट लिखने में मदद करने का। वो उस समय शंकर हुसैन बना रहे थे। इस के बाद इसी फिल्म के सेट पर संजीव कुमार से उनकी दोस्ती हो गई थी। इसके बाद कमाल अमरोही के पास 50 रु महीने की नौकरी मिल गई। हालांकि इससे पहले वे मुंबई में खार रेलवे स्टेशन पर सीढियों के नीचे सोया करते थे। उन्होंने हंसते हुए कहा कि मैं अकेला ही नहीं सोता था, दो-चार कुत्ते भी हमारे साथ ही सोते थे।
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सलीम- जावेद ने "ज़ंजीर", "दीवार", "शोले", "मिस्टर इंडिया" जैसी सुपरहिट फिल्में लिखीं हैं। उन्हें "साज़", "बॉर्डर", "लगान" के लिए कई प्रतिष्ठित अवार्ड मिल चुके हैं।