Sunny Deol के 20 सबसे घातक डायलॉग, इन पर बन रही खूब रील

Published : Apr 19, 2025, 04:16 PM ISTUpdated : Apr 19, 2025, 05:13 PM IST

सनी देओल के डायलॉग्स हमेशा से ही दर्शकों के दिलों में जगह बनाते आए हैं। गदर 2 समेत कई फिल्मों के उनके दमदार डायलॉग्स आज भी लोगों की जुबान पर हैं। आइए जानते हैं उनके कुछ सबसे यादगार डायलॉग्स के बारे में।

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Sunny Deol Best Dialogues : सनी देओल की जाट थिएटर में जमी हुई है। इसे रिलीज हुए 10 दिन हो गए हैं, हमेशा की तरह इसके सनी के डायलॉग ने दर्शकों पर असर छोड़ा है। 

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यहां हम गदर 2 एक्टर के सबसे  धांसू 15 डायलॉग के बारे में आपतो बता रहे हैं, जिसपर खूब रील्स बनाई जाती हैं।

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जाट ( 2025)
“ओय…ये ढाई किलो के हाथ की ताकत, पूरा नॉर्थ देख चुका है, अब साउथ देखेगा. ये हाथ उठेगा न, तो पूरा इंडिया गूंज उठेगा…सॉरी बोल.”

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घातक (1996)

काशी- आ रहा हूं रुक, अगर सातों एक बाप के हो तो रुक, नहीं तो कसम गंगा मइय्या की, घर में घुस कर मारूंगा, सातों को मारूंगा, एक साथ मारूंगा...

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घातक (1996)

काशी- ये मज़दूर का हाथ है कात्या, लोहा पिघलाकर उसका आकार बदल देता है ! ये ताकत खून-पसीने से कमाई हुई रोटी की है…. मुझे किसी के टुकड़ों पर पलने की जरूरत नहीं है। 

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गदर: एक प्रेम कथा (2001)
तारा सिंह- अशरफ अली! आपका पाकिस्तान ज़िंदाबाद है, इससे हमें कोई ऐतराज़ नहीं लेकिन हमारा हिंदुस्तान ज़िंदाबाद था, ज़िंदाबाद है और हमेशा ज़िंदाबाद रहेगा ! 

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घातक (1996)

काशी- हलक़ में हाथ डालकर कलेजा खींच लूंगा…हरामख़ोर.. उठा उठा के पटकूंगा !  चीर दूंगा, फाड़ दूंगा साले !

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गदर: एक प्रेम कथा (2001)

तारा सिंह- किन हिंदुस्तानियों को गोली से उड़ाएंगे आप लोग, हम हिंदुस्तानियों की वजह से आप लोगों का वजूद है… दुनिया जानती है कि बंटवारे के वक्त हम लोगों ने आपको 65 करोड़ रु दिए थे तब जाकर आपके छत पर तिरपाल आई थी। बरसात से बचने की हैसियत नहीं और गोलीबारी की बात कर रहे हो..

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बॉर्डर

मेजर कुलदीप सिंह-  'मत भूलो मैंने फौज में कमीशन लेते वक्त एक कसम खाई थी, इस धरती की कसम खाई थी हमने…. जिसमें मेरा बचपन खेल के जवानी में तब्दील हुआ… उस हिमालय की कसम भी खाई थी, उन 120 करोड़ हिन्दुस्तानियों की सुरक्षा की कसम भी खाई थी……

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बॉर्डर (1997)

मेजर कुलदीप सिंह- मथुरादास जी, आप खुश हैं कि आप घर जा रहे हैं…. मगर जो ये बेहूदा नाच आप अपने भाइयों के सामने कर रहे हैं.. वो अच्छा नहीं लगता. आपकी लीव मंज़ूर हुई है क्योंकि आपके घर में प्रॉब्लम है…. दुनिया में किसे दिक्कत नहीं है ? ज़िंदगी का दूसरा नाम ही प्रॉब्लम है... बताओ! अपने भाइयों में कोई ऐसा भी है जिसकी विधवा मां आंखों से देख नहीं सकती और उसका इकलौता बेटा रेगिस्तान की धूल में खो गया है.... कोई ऐसा भी है जिसकी मां की अस्थियां इंतजार कर रही हैं कि उसका बेटा जंग जीतकर आएगा और उन्हें गंगा में बहा देगा, किसी का बूढ़ा बाप अपनी जिदगी की आखिरी घड़ियां गिन रहा है और हर दिन मौत को ये कहकर टाल देता है कि मेरी चिता को आग देने वाला, दूर बॉर्डर पर बैठा है... अगर इन सब ने अपनी प्रॉब्लम्स का बहाना देकर छुट्‌टी ले ली तो ये जंग कैसे जीती जाएगी ? बताओ ! मथुरादास.. इससे पहले कि मैं तुझे गद्दार करार देकर गोली मार दूं.. भाग जा यहां से

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दामिनी (1993)

गोविंद- चिल्लाओ मत, नहीं तो ये केस यहीं रफा-दफा कर दूंगा. न तारीख़ न सुनवाई, सीधा इंसाफ…वो भी ताबड़तोड़….

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दामिनी (1993)

गोविंद- चड्‌ढा, समझाओ.. इसे समझाओ. ऐसे ख़िलौने बाजार में बहुत बिकते हैं, मगर इसे खेलने के लिए जो जिगर चाहिए न, वो दुनिया के किसी बाजार में नहीं बिकता, मर्द उसे लेकर पैदा होता है…. और जब ये ढाई किलो का हाथ किसी पर पड़ता है न तो आदमी उठता नहीं, उठ जाता है।

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घायल (1990)

अजय मेहरा- इस चोट को अपने दिल-ओ-दिमाग़ पर कायम रखना…. कल यही आंसू क्रांति का सैलाब बनकर, इस मुल्क की सारी गंदगी को बहा ले जाएंगे….

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घायल (1990)

अजय मेहरा- अच्छा कर रहे हो इंस्पेक्टर, बहुत अच्छा कर रहे हो तुम... बहुत तरक्की मिलेगी तुम्हे, मेडल्स मिलेंगे.... अरे भागकर कहां जा रहे हो बात सुनो मेरी ! आई विल ड्रैग यू टू द कोर्ट

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घायल (1990)

अजय मेहरा- झक मारती है पुलिस. उतारकर फेंक दो ये वर्दी और पहन लो बलवंतराय का पट्‌टा अपने गले में… अंधेर नगरी है ये. बस. ऐसे गरीब, कमज़ोर लोगों पर दिखाओ अपनी मर्दानगी…. वर्दी का रौब. इन्हीं हाथों को बांध सकती हैं तुम्हारी हथकड़ियां. बलवंतराय के नहीं. जाकर दुम हिलाना उसके सामने… तलवे चाटना. बोटियां फेंकेंगे बोटियां…

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ज़िद्दी (1997)

देवा- चिल्लाओ मत इंस्पेक्टर, ये देवा की अदालत है, और मेरी कोर्ट में अपराधियों को ऊंचा बोलने की इजाज़त नहीं है….

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ज़िद्दी (1997)

देवा- जिस वकील को मारने के लिए तूने अपने आदमी भेजे थे वो अशोक प्रधान.. देवा का बाप है, अगर दोबारा तूने ऐसी ग़लती की तो तेरा वो हश्र करूंगा कि तुझे अपने हाथों से अपनी ज़िंदगी फिसलती हुई नज़र आएगी।

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जाट ( 2025 ) 
“एक सॉरी के लिए मैंने हाथ उठाया तो सोचो लड़कियों की इज्ज़त के लिए मैं क्या कर सकता हूं”

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जाट ( 2025 ) 
अम्मा मैं किसान हूं, जाट हूं, तेरा मेरा रिश्ता खू़न का नहीं, मिट्टी का है…

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जाट ( 2025) 
जान की कीमत जानकर भी जान जोखिम में डालने वाला जाट हूं मैं…..

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