बॉलीवुड के पॉपुलर विलेन प्रेम चोपड़ा 90 साल के हो गए हैं। 23 सितम्बर 1935 को लाहौर में पैदा हुए प्रेम चोपड़ा की मानें तो उनके जन्म के बाद उनकी मां ज्यादा खुश नहीं थीं। उन्होंने अपनी बायोग्राफी 'प्रेम नाम है मेरा...प्रेम चोपड़ा' में इसकी वजह बताई है।
प्रेम चोपड़ा का जन्म लाहौर की कृष्णा गली नं. 5 में हुआ था। उनके पिता रनबीर लाल अकाउंटेंट जनरल के ऑफिस में बतौर अकाउंट ऑफिसर काम करते थे और मां रूपा रानी घरेलू महिला थीं। प्रेम चोपड़ा से पहले उनके दो बड़े भाइयों कैलाश और विश्वा का जन्म पहले ही हो चुका था।
प्रेम चोपड़ा के जन्म से उनकी मां ज्यादा खुश क्यों नहीं थीं?
प्रेम चोपड़ा ने अपनी बायोग्राफी में लिखा है कि दो बेटों के पैदा होने के बाद उनकी मां बेटी की आस लगाए बैठी थीं। लेकिन तीसरी बार भी उन्हें बेटा हुआ। चोपड़ा लिखते हैं, "दाई मां ‘बेटा हुआ है’ की खुशखबरी के साथ बाहर आईं। बिटिया ना होने की वजह से मां खासी उल्लासित नहीं थीं। लेकिन उन्होंने अपनी आस का दामन नहीं छोड़ा। मेरे जन्म के बाद दो बेटे और हुए रवींद्र और ब्रह्मा।"
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स्वतंत्र भारत में पैदा हुई प्रेम चोपड़ा की बहन
प्रेम चोपड़ा लिखते हैं कि 1947 में विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ गया। अंबाला में उनकी बुआ थीं, जहां पूरे परिवार ने आश्रय लिया। तीसरे हफ्ते में उनके पिता को शिमला में नौकरी मिल गई तो सब वहां शिफ्ट हो गए। 1951 में उनकी बहन का जन्म हुआ, जो उनसे उम्र में 15 साल छोटी हैं। प्रेम चोपड़ा के मुताबिक़, जब उनकी मां का निधन हुआ, तब उनकी बहन सिर्फ 9 साल की थी। पांचों भाइयों ने अंजू की परवरिश बेटी की तरह की है।
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IAS-IPS बनना चाहते थे प्रेम चोपड़ा
प्रेम चोपड़ा ने अपनी किताब में लिखा है कि वे बचपन में IAS या IPS बनने का सपना देखते थे। जबकि उनके पिता चाहते थे कि वे डॉक्टर बनें। क्योंकि आर्थिक तंगी के चलते वे अपना यह सपना पूरा नहीं कर पाए थे। इसी के चलते उन्होंने प्रेम चोपड़ा को साइंस सब्जेक्ट दिलाया था। हालांकि, प्रेम चोपड़ा फ़िल्में खूब देखते थे और नाडिया और जान क्वास की मारधाड़ वाली फ़िल्में उन्हें बेहद पसंद थीं। इसके चलते उनके अंदर के कलाकर ने करवट ली और वे नाटकों में काम करने लगे।
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जब प्रेम चोपड़ा ने बदल लिया सब्जेक्ट
मैट्रिक पास करने के बाद प्रेम चोपड़ा ने कॉलेज में दाखिला लिया और 6 महीने में ही समझ गए कि साइंस उनके बस का नहीं है। उन्होंने पिता से गुजारिश कर साइंस छोड़ आर्ट में दाखिला लिया। इस दौरान वे नाटकों में काम करते थे और धीरे-धीरे फिल्मों की ओर उनका रुझान हो गया। मुंबई में कड़े संघर्ष के बाद उन्हें पहली फिल्म 'तांगेवाली' (1955) मिली। लेकिन उन्हें पहचान 1964 में आई 'वो कौन थी' से मिली, जिसमें उन्होंने पहली बार विलेन का रोल किया था। इसके बाद वे फिल्मों के सबसे बड़े खलनायकों में शामिल हो गए।