Chandrayaan 3. बुधवार का दिन हर हिन्दुस्तानी के लिए खास रहा। चंद्रयान 3 का विक्रम लैंडर जैसे ही चंद्रमा पर उतरा तो देश का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। यह सब हकीकत में हुआ, लेकिन कल्पना में तो भारत सालों पहले ही चांद पर पहुंच चुका है।
एंटरटेनमेंट डेस्क. बुधवार का दिन सभी भारतीय के लिए खास रहा। चंद्रयान 3 (Chandrayaan 3) का विक्रम लैंडर चांद पर उतरा और भारत के हर नागरिक के लिए ये प्राउड मूमेंट बना। इसरो का महत्वाकांक्षी चांद पर पहुंचने का प्रोग्राम भारत के पहले प्रयास का प्रतीक बना, जो हकीकत में सफल साबित हुआ। लेकिन कल्पना में, भारत आधी सदी पहले ही चंद्रमा की सतह पर पहुंच गया था और वो भी लैंडर्स और रोवर्स के साथ नहीं बल्कि अंतरिक्ष यात्रियों के साथ, जिसका नेतृत्व किसी और ने नहीं बल्कि एक्टर दारा सिंह (Dara Singh) ने किया था। हम यहां बात कर रहे फिल्म चंद पर चढ़ाई (Chand Par Chadayee) की, जिसमें दिखाया गया था कि कैसे अंतरिक्ष यात्री चांद पर पहुंचे थे।
फिल्म चांद पर चढ़ाई की कहानी
1967 में, नील आर्मस्ट्रांग के चंद्रमा पर कदम रखने से दो साल पहले फिल्म प्रोड्यूसर टीपी सुंदरम ने चांद पर चढ़ाई नाम से एक साइंस फिक्शन फिल्म बनाई थी। चांद पर एक भारतीय मिशन से जुड़ी इस फिल्म में बॉलीवुड एक्टर दारा सिंह के साथ अनवर हुसैन और पद्मा खन्ना ने काम किया था। फिल्म में दारा सिंह ने अंतरिक्ष यात्री आनंद की भूमिका निभाई थी, जो अपने साथी भागु (भगवान) के साथ चांद पर पहुंचता है। यहां पहुंचने के बाद उन्हें मॉन्स्टर्स, एलियंस और रोबोटों का सामना करना पड़ता है। यह दूसरी तरह की यात्रा दिखाने वाली पहली भारतीय फिल्मों में से एक थी। उस समय सिनेमा में स्पेशल इफैक्ट्स की स्थिति को देखते हुए यह एक अलग प्रोजेक्ट था। बता दें कि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर एवरेज रही थी।
चांद पर चढ़ाई, जो रिलीज हुई थी अंग्रेजी में
चांद पार चढ़ाई जिसे अंग्रेजी में ए ट्रिप टू द मून के नाम से रिलीज किया गया था, ने न सिर्फ चांद पर लैंडिंग का अधिकार प्राप्त किया बल्कि 21वीं सदी के कई महत्वपूर्ण आविष्कारों की भी भविष्यवाणी की थी। फिल्म में पद्मा खन्ना के कैरेक्टर सिमी को स्काइप के समान वीडियो कॉल पर अपने लीडर से बात करते हुए दिखाया गया था। फिल्म में आधुनिक प्रिंटर, स्कैनर और डिजिटल कैमरे जैसे उपकरण भी दिखाए गए थे और इंटरनेट के इन्वेंशन से एक साल पहले इलेक्ट्रॉनिक मेल भी दिखाया गया था। अफसोस की बात है कि फिल्म के लेखक जिन्होंने वैज्ञानिकों से सालों पहले इस अद्भुत इन्वेंशन की कल्पना की थी, को स्क्रीन पर क्रेडिट तक नहीं दिया गया था।
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