द्वापर युग में एक बार महालक्ष्मी का त्यौहार आया। हस्तिनापुर में गांधारी ने नगर की सभी स्त्रियों को पूजा का निमंत्रण दिया, लेकिन कुंती से नहीं कहा। गांधारी के 100 पुत्रों ने बहुत सी मिट्टी लाकर एक हाथी बनाया और उसे खूब सजाकर महल में बीचों बीच स्थापित किया।
सभी स्त्रियां पूजा के थाल लेकर गांधारी के महल में जाने लगी। इस पर कुंती बड़ी उदास हो गई। जब पांडवों ने कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि- मैं किसकी पूजा करूं? अर्जुन ने कहा मां, तुम पूजा की तैयारी करो मैं तुम्हारे लिए जीवित हाथी लाता हूं।
ऐसा कहकर अर्जुन इन्द्र के यहां गए और अपनी माता के पूजन हेतु ऐरावत हाथी को ले आए। कुंती ने उसकी पूजा की। जब यह बात अन्य महिलाओं को पता चली तो वे भी ऐरावत की पूजा करने कुंती के पास आ गई। इस तरह महालक्ष्मी व्रत पूर्ण हुआ।