मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद नहीं लेना पड़ता दूसरा जन्म, शिवजी करते हैं इस स्थान की रक्षा
उज्जैन. काशी उत्तर प्रदेश के प्रमुख शहरों में से एक है। यहां स्थित काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग प्रमुख 12 ज्योतिर्लिंगों में सातवे स्थान पर आता है। ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए वर्ष भर यहां भक्तों का सैलाब उमड़ता है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है व दूसरा जन्म नहीं लेना पड़ता।
कैसे पहुंचे?
वाराणसी में दो रेलवे जंक्शन है- वाराणसी जंक्शन और मुगल सराय जंक्शन। यह दोनों रेलवे जंक्शन शहर से पूर्व की ओर 15 किमी की दूरी पर स्थित है। यह स्टेशन दिल्ली, आगरा, लखनऊ, मुम्बई और कोलकाता सीधे जुड़े हुए हैं।
वाराणसी के लिए राज्य के कई शहरों जैसे- लखनऊ, कानपुर और इलाहबाद आदि से बसें आसानी से मिल जाती है।
वाराणसी में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो देश के प्रमुख शहरों दिल्ली, लखनऊ, मुम्बई, खजुराहो और कोलकाता आदि से सीधी उड़ानों के द्वारा जुड़ा है।
काशी की महिमा: अनेक धर्म ग्रंथों में काशी की महिमा के बारे में बताया गया है। शिवपुराण के अनुसार प्रलयकाल में जब समस्त संसार का नाश हो जाता है, उस समय भी काशी अपने स्थान पर रहती है। प्रलयकाल आने पर भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार काशी में प्राण त्याग करने से जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाती है।
इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1777 में काशी विश्वनाथ मंदिर का पूर्णत: जीर्णोद्धार कराया।
यह मंदिर 30 वर्ग फीट में निर्मित हुआ। इसकी चोटी (शीर्ष ) 51 फीट है। इस मंदिर में पांच पंडप भी अहिल्याबाई ने ही बनवाए थे।
1853 में पंजाब के राजा रणजीत सिंह ने 22 टन सोने से मंदिर के शिखरों को स्वर्णमंडित करवाया था।
यहां प्रचलित कथाओं के अनुसार काशी के प्राचीन मंदिर को औरंगजेब ने नष्ट कर दिया था। बाद में फिर से इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था।
काशी के कई घाट बहुत प्रसिद्ध हैं। इनमें दशाश्वमेध घाट, मणिकार्णिका घाट, हरिश्चंद्र घाट और तुलसी घाट आदि शामिल हैं। इन घाटों का विशेष महत्व है।
महाभारत में काशी का उल्लेख है। यहां के राजा काशिराज की तीन पुत्रियां थीं। अंबा, अंबालिका और अंबिका। इनका स्वयंवर होने वाला था, तब भीष्म ने इन कन्याओं का अपहरण कर लिया था। महाभारत युद्ध में काशिराज ने पांडवों का साथ दिया था।