गरीबी के बाद भी महान गणितज्ञ बना था बिहार का यह लाल, पटना कॉलेज को बदलना पड़ा था नियम

पटना (Bihar) । कहते हैं प्रतिभा किसी पहचान की मोहताज नहीं होती है और न ही उसे मंजिल तक पहुंचने से कोई रोक सकता है। जी हां कुछ ऐसा ही सिद्ध कर दिखाया था महान गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह ने, जिन्होंने लगन और बुद्धि की वजह से उच्च शिक्षा प्राप्त की। बताते हैं कि पढ़ाई के दौरान उनकी इस प्रतिभा को देखते हुए पटना विश्वविद्यालय ने अपना नियम तक उनके लिए बदल दिया था। डॉ एनएस नागेंद्रनाथ (जिन्होंने सीवी रमण के साथ काम किया था) ने उन्हें एक साल में बीएससी और एक साल में एमएससी की परीक्षा में बैठने की अनुमति दी थी। जिसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका गए और फिर देश का नाम रोशन किए। हालांकि वह 40 साल से मानसिक बीमारी सिजोफ्रेनिया से पीड़ित थे और साल 2019 में उनका निधन हो गया। मगर, लोग आज भी उन्हें याद करते हैं।

(बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। चुनावी हलचल के बीच हम अपने पाठकों को 'बिहार के लाल' सीरीज में कई हस्तियों से रूबरू करा रहे हैं। इस सीरीज में राजनीति से अलग उन हस्तियों के संघर्ष और उपलब्धि के बारे में बताया जा रहा है जिन्होंने न सिर्फ बिहार बल्कि देश दुनिया में भारत का नाम रोशन किया। आज की हस्ती बिहार के महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह हैं।)

Asianet News Hindi | Published : Sep 9, 2020 8:44 AM IST / Updated: Sep 11 2020, 07:01 PM IST
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गरीबी के बाद भी महान गणितज्ञ बना था बिहार का यह लाल, पटना कॉलेज को बदलना पड़ा था नियम

वशिष्ठ नारायण सिंह का जन्म बिहार के बसंतपुर गांव में 2 अप्रैल 1942 को हुआ था। वह गलत पढ़ाने पर गणित के अध्यापक को बीच में ही टोक दिया करते थे। इसकी जानकारी होने पर जब प्रधानाचार्य ने उन्हें अलग बुला कर परीक्षा ली, तो उन्होंने सारे सवालों के सही जवाब दिए।

 (फाइल फोटो)

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कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन एल. केली ने सबसे पहले डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह की प्रतिभा को पहचाना था। वे उन्हें आर्यभट्ट की परंपरा का गणितज्ञ कहा करते थे। 
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कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन एल. केली उन्हें अमेरिका गए और कोलंबिया के इंस्टीट्यूट ऑफ मैथेमैटेक्सि में पढ़ाया था। बताते हैं कि उनकी कहानी अमेरिका के महान गणितज्ञ जॉन नैश से मिलती जुलती है, जिनके ऊपर हॉलीवुड में एक शानदार मूवी बनी है- अ ब्यूटीफुल माइंड।
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1969 में नासा का अपोलो मिशन लॉन्च हुआ था। तब पहली बार इंसान को चांद पर भेजा गया था। लेकिन, मिशन के दौरान कुछ देर के लिए 31 कंप्यूटर बंद हो गए थे। उस वक्त वशिष्ठ नारायण ने गणित लगाकर हिसाब निकाला। बाद में जब बंद कंप्यूटर चालू हुए तो वशिष्ठ नारायण सिंह और कंप्यूटर का कैलकुलेशन बिल्कुल एक समान था। उन्होंने आइंस्टीन के सापेक्षता सिद्धांत को चुनौती दी थी।
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वशिष्ठ की शादी 1973 में वंदना रानी सिंह के साथ हुई। वह अपनी पत्नी के साथ अमेरिका चले गए थे। बताते हैं कि कुछ समय बाद उन्हें वशिष्ठ की मानसिक बीमारी के बारे में पता चला, जिसके बाद उन्होंने तलाक ले लिया।
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वशिष्ठ नारायण साल 1971 में भारत लौट आए थे। इसके बाद उन्होंने पहले आईआईटी कानपुर, बॉम्बे, और फिर आईएसआई कोलकाता में नौकरी की थी।
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एक बार वशिष्ठ नारायण अपने भाई के साथ रहने के लिए पुणे जा रहे थे। लेकिन, अचानक ट्रेन से गायब हो गए। उन्हें खूब तलाशा गया, मगर नहीं मिले। चार साल के बाद अपनी पूर्व पत्नी के गांव के पास मिले। तब से घरवाले इन नजर रख रहे थे और इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया। जिसके बाद वह चर्चा में आए।
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पटना के कुल्हड़यिा कॉम्पलेक्स में अपने भाई के एक फ्लैट में गुमनामी का जीवन बिताते रहे और पिछले साल 14 नवंबर 2019 को उनका निधन हो गया था। महान गणितज्ञ के अंतिम समय तक किताब, कॉपी और पेंसिल ही उनके सबसे करीब रहें। 
(फाइल फोटो)

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