राजद में रहते हुए रघुवंश प्रसाद से ज्यादा फायदे की उम्मीद नहीं की जा सकती थी। लेकिन, उनके जाने से नुकसान का अंदाजा लगाया जा सकता है। मंच और पोस्टर पर रघुवंश के रहने भर से ही राजद की छवि समाजवादी हो जाती थी। आलोचकों के तर्क कुंद पड़ जाते थे, क्योंकि रघुवंश पर कभी भ्रष्टाचार या गुंडागर्दी का आरोप नहीं लगा था। यही नहीं, कार्यकर्ताओं के दिल से जातिवाद की जटिलता ढीली पड़ जाती थी।