ये हैं 7वीं बार CM बनने की चाह रखने वाले नीतीश कुमार,जानिए-कैसे लालू-पासवान जैसे सूरमाओं के बीच बना ली पहचान

पटना (Bihar) । बिहार में इस समय नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) का नाम सबसे ज्यादा लिया जा रहा है, क्योंकि वे सातवीं बार सीएम बनने का सपना संयोए जनता के बीच पूरी दमदारी से उतरे हैं। उनके साथ बीजेपी (BJP) और वीआईपी(VIP), हम जैसी पार्टी हाथ मिलाए खड़ी हैं। वहीं, उनके विरोध में लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) की पार्टी आरजेडी (RJD) है। हालांकि लालू रांची जेल में बंद हैं। लेकिन, उनके बेटे तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) मोर्चा संभाले हुए हैं। दूसरी ओर लोजपा के संस्थापक राम विलास पासवान (Ram Vilas Paswan)  का कुछ दिन पहले निधन हो गया, जिनकी विरासत उनके बेटे चिराग पासवान (Chirag Paswan) संभाल रहे हैं। बताते चले कि अक्सर लोग यह बातें करते हैं कि बिहार में लालू प्रसाद यादव, राम विलास पासवान और शरद यादव जैसे नेताओं के सामने नीतीश कुमार ने अपना सिक्का कैसे जमा लिया। जी हां आज हम आपको बिग पॉलिटिकल फेस में यही कहानी बताने जा रहे हैं। 
 

Asianet News Hindi | Published : Oct 19, 2020 12:18 PM IST / Updated: Oct 20 2020, 01:45 PM IST

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ये हैं 7वीं बार CM बनने की चाह रखने वाले नीतीश कुमार,जानिए-कैसे लालू-पासवान जैसे सूरमाओं के बीच बना ली पहचान

बिहार के 6 बार सीएम बने नीतीश कुमार का जन्म 1 मार्च 1951 को पटना के बख्तियारपुर गांव में हुआ। उनके पिता कविराज राम लखन सिंह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और कांग्रेस से जुड़े थे। लेकिन, जब उन्हें चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला तो वह जनता पार्टी का हिस्सा बन गए थे। 

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बैचलर ऑफ इन इंजीनियरिंग करने के बाद नीतीश कुमार 1974 से 1977 तक चले जेपी आंदोलन में बढ़-चढ़ कर अपनी भागीदारी निभाई थी। इसमें राम विलास पासवान, लालू प्रसाद यादव और शरद यादव भी सक्रिय थे, जिनकी तिकड़ी साल 1990 का दशक आते-आते पटना से लेकर दिल्ली तक अपनी धाक जमा चुकी थी।
 

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नीतीश कुमार भी जेपी आंदोलन में शामिल पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा के करीबी थे। 26 साल की उम्र में नीतीश पहली बार 1977 के विधानसभा चुनाव हरनौत सीट से जनता पार्टी के टिकट पर लड़े थे। लेकिन, हार गए। साल 1980 में हरनौत से ही जनता पार्टी (सेक्युलर) के टिकट चुनाव लड़ें। मगर, जीत न सकें।

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बताते हैं कि नीतीश कुमार लगातार दो हार के बाद उन्होंने राजनीति छोड़ने का मूड बना लिया था। वो सरकारी ठेकेदार बनना चाहते थे, इसके लिए प्रयास भी शुरू किए थे, किंतु ऐसा नहीं हुआ और 1985 में तीसरी बार फिर हरनौत सीट से लोकदल ने उन्हें टिकट दे दिया। हालांकि इस बार 21 हजार से ज्यादा वोटों से जीत गए थे।

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साल 1985 में पहली बार विधायक बनने के बाद नीतीश 1989 के लोकसभा चुनाव में बाढ़ से जीतकर लोकसभा पहुंचे। उसके बाद 1991 में लगातार दूसरी बार यहीं से लोकसभा चुनाव जीते। नीतीश 6 बार लोकसभा के सांसद रहे हैं। तीसरी बार 1996, चौथी बार 1998, 5वीं बार 1999 में लोकसभा चुनाव जीते।

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नीतीश कुमार पहली बार लोकसभा में पहुंचने पर केंद्रीय राज्यमंत्री बनाए गए थे। उन्हें भूतल परिवहन और रेलवे मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई थी। लेकिन, गैसल में हुई एक ट्रेन दुर्घटना के बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा से दिया और कृषि मंत्री बने थे। 

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नीतीश ने अपना आखिरी लोकसभा चुनाव 2004 में लड़ा था। उस चुनाव में नीतीश बाढ़ और नालंदा दो जगहों से खड़े हुए थे। हालांकि, बाढ़ सीट से वो हार गए और नालंदा से जीत गए। ये नीतीश का आखिरी चुनाव भी था। इसके बाद से नीतीश ने कोई चुनाव नहीं लड़ा है।

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2000 के विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी या गठबंधन को बहुमत नहीं मिला। तब वो अटल सरकार में कृषि मंत्री थे। चुनाव के बाद भाजपा के समर्थन से पहली बार 3 मार्च 2000 को बिहार के मुख्यमंत्री की शपथ ली थी। हालांकि, बहुमत नहीं होने के कारण उन्हें 7 दिन में इस्तीफा देना पड़ा था और राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं। नवंबर 2005 में नीतीश दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। इस बार भाजपा-जदयू गठबंधन के पास बहुमत था। अगले साल नीतीश पहली बार विधान परिषद के सदस्य बने।

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नवंबर 2005 से लेकर अब तक नीतीश लगातार बिहार के सीएम रहे हैं। हालांकि, मई 2014 से फरवरी 2015 के बीच जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री रहे हैं। 2018 में नीतीश तीसरी बार विधान परिषद के सदस्य बने हैं और 2024 तक रहेंगे। उन्होंने 1995 के बाद कोई विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा है। 
 

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