खेलने की उम्र में पढ़ाई से बड़े-बड़ों को कर दिया हैरान, कम उम्र में IIT के प्रोफेसर बने; पर निकाल दिए गए तथागत

पटना (Bihar) । बिहार में एक से बढ़कर एक हैरान करने वाले प्रतिभाशाली हैं। तथागत अवतार तुलसी ( Tathagata Avatar Tulsi ) भी इन्हीं में से एक हैं। तथागत ने अपनी प्रतिभा से महज 9 साल की उम्र में हाईस्कूल, 12 साल में नेट और 22 की उम्र में देश के सबसे यंग प्रोफेसर (Young professor) बनकर दुनिया को हैरान कर दिया था। उनका नाम गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड (Guinness Book of Record) और लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड (Limca Book of Record) में भी दर्ज है। तथागत जब आठ साल के थे तब नियम की वजह से उन्हें कक्षा 6 की परीक्षा देने की इजाजत नहीं मिली थी। लेकिन, काफी अनुरोध पर स्कूल प्रशासन ने परीक्षा में बैठने की अनुमति दी। स्कूल के वार्षिकोत्सव में के दिन परिणाम सुनाया गया, जिसमें उनका नाम नहीं था। बाद में स्कूल ऑथिरिटी ने बताया कि तथागत ने न सिर्फ क्लास में टॉप किया है बल्कि पूरे स्कूल में टॉप किया है। मगर, अंडर एज होने की वजह से उन्हें प्रमोट नहीं कियाया जा सकता।

(बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। चुनावी हलचल के बीच हम अपने पाठकों को 'बिहार के लाल' सीरीज में कई हस्तियों से रूबरू करा रहे हैं। इस सीरीज में राजनीति से अलग राज्य की उन हस्तियों के संघर्ष और उपलब्धि के बारे में जानकारी दी जाएगी जिन्होंने न सिर्फ बिहार बल्कि देश दुनिया में भारत का नाम रोशन किया। ये हस्तियां खेल, सिनेमा, कारोबार, किसानी और ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र से जुड़ी हैं। आज तथागत की कहानी।)

Asianet News Hindi | Published : Sep 21, 2020 12:07 PM IST / Updated: Sep 24 2020, 01:04 PM IST
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खेलने की उम्र में पढ़ाई से बड़े-बड़ों को कर दिया हैरान, कम उम्र में IIT के प्रोफेसर बने; पर निकाल दिए गए तथागत


परिवार के लोग बताते हैं कि 6 साल की उम्र से ही तथागत गणित के बड़े सवाल बिना पेन और पेंसिल के ही बड़ी आसानी से हल कर लेते थे। साल 1994 को जब मीडिया की सुर्खियों में आए तो तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद यादव ने अपने आवास पर निमंत्रित किया और पुरस्कार राशि और कंप्यूटर देने की घोषणा की। इन सब का तुलसी के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा।

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9 सितम्बर 1993 को तथागत तुलसी के 16वें जन्मदिन पर उनके पिताजी तुलसी नारायण ने प्रोफेसर स्टीफेन हाकिंग का प्रसिद्ध किताब गिफ्ट में दिया था।
 

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तुलसी के मुताबिक ये किताब देने के पीछे उनके पिताजी का मकसद ये था कि मैं बार-बार उनसे ब्रम्हांड, पृथ्वी, तारे के बारे में प्रश्न पूछ-पूछकर परेशान करता रहता था। हालांकि तुलसी ने ये किताब तीन दिन में पढ़ ली। इससे वह ब्लैक होल्स, आइंस्टीन थ्योरी आदि के बारे में जानने लगे। वे हमेशा वैज्ञानिक प्रश्नों के बारे में सोचते।

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तुलसी सातवीं क्लास की पढ़ाई नहीं करना चाहते थे। इसलिए वह सेल्फ स्टडी के बल पर सातवीं, आठवीं नौंवी और हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की। उनके पिता ने 10वीं क्लास की परीक्षा दिलाने के लिए सीबीएसई से अनुमति मांगी। लेकिन, इजाजत नहीं मिली। हालांकि दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के बाद उन्हें मौका मिल गया।

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तुलसी को 28 अप्रैल 1998 को पटना विश्वविद्यालय के एक ऑफिसियल इंटरव्यू के बाद डायरेक्ट बीएससी की परीक्षा देने की इजाजत मिल गई। लेकिन, वह तीनों साल की परीक्षा एक साथ देना चाहते थे। इसके लिए पटना उच्च न्यायालय की शरण में जाना पड़ा।

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कोर्ट ने योग्यता को देखते हुए ये नियम तोड़ा और वह 10 वर्ष की अवस्था में ग्रेजुएट बन गए। फिर जनवरी 1999 में एमएसी में एडमिशन लिए। इस बार बिहार के राज्यपाल श्री बीएम लाल ने एक साथ परीक्षा देने की अनुमति प्रदान किया, जिससे पहली बार कोई लड़का 11 साल की उम्र में परीक्षा पास किया।

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एमएससी करने के तुरंत बाद तुलसी का लक्ष्य नेट (National Eligibility Test) क्वालीफाई करने का था। यहां जूनियर फेलोशिप एंड लेक्चररशिप के लिए न्यूनतम उम्र सीमा 19 वर्ष थी। लेकिन, उनकी उम्र 12 वर्ष ही थी। हालांकि थोड़ी दिक्कत के बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तरफ से परीक्षा में बैठने की इजाजत मिल गई।  लेकिन ये इजाजत National Physical Laboratory (NPL) के इंटरव्यू कमेटी की पॉजिटिव रिकमेन्डेशन पर थी।  इसके चलते उन्होंने दिसम्बर 2000 में परीक्षा दी, जिसका परिणाम मई 2001 में निकला और इस तरह पहली बार कोई 12 साल का लड़का राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा पास की थी और छा गया।

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पीएचडी करने के तुरंत बाद यानि वर्ष 2010 में ही ये IIT मुंबई के प्रोफेसर बन गए थे। लेकिन, वहां का क्लाइमेट इनपर विपरीत असर कर रहा था जिस वजह से ये बीमार रहने लगे। बीमार रहने के दौरान 4 साल तक ये लगातार छुट्टी पर रहे और फिर पांचवें साल इन्होंने प्रबंधन को छुट्टी के लिए आवेदन दिया, लेकिन इसबार छुट्टी की मंजूर नहीं हुई। इसके बाद तुलसी ने संस्थान के निदेशक को IIT दिल्ली में तबादला करने के लिए आवेदन दिया ताकि वहां पढ़ाने के अतिरिक्त वे रिसर्च भी कर सकें। लेकिन, प्रबंधन ने एक्ट का हवाला देते हुए तबादले से इंकार कर दिया और फिर इन्हें नौकरी से टर्मिनेट कर दिया।

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