परिवार के राजनीति में आने का हमेशा करते थे विरोध, अंतिम वक्त में बेटे के लिए ये पद चाहते थे रघुवंश!

पटना। 74 साल की आयु में दिग्गज समाजवादी नेता रघुवंश प्रसाद सिंह (Raghuvansh Prasad Singh) का दिल्ली के अस्पताल में निधन हो गया था। वो काफी दिनों से एम्स में अपना इलाज करा रहे थे। रघुवंश समाजवादी विचारों के लिए सिर्फ राजनीति ही नहीं करते रहे। बल्कि उसे जीवंत भी किया। ऐसे दौर में जब दिग्गज वंशवाद की राजनीति को बढ़ावा देते रहे, रघुवंश हमेशा परिवारवाद की राजनीति के खिलाफ रहे। इसी चीज को लेकर अंतिम समय में लालू यादव के साथ चिट्ठी में उनके मतभेद भी सामने आ रहे हैं। हालांकि उनके इस्तीफे की एक वजह कुछ रिपोर्ट्स में बड़े बेटे की राजनीति में लॉन्चिंग भी बताई गई। 
 

Asianet News Hindi | Published : Sep 14, 2020 7:38 AM IST / Updated: Sep 14 2020, 01:37 PM IST
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परिवार के राजनीति में आने का हमेशा करते थे विरोध, अंतिम वक्त में बेटे के लिए ये पद चाहते थे रघुवंश!

कहा गया कि रघुवंश बड़े बेटे सत्यकाम (Satyakam) को जेडीयू (JDU) से एमएलसी बनवाना चाहते हैं। हालांकि चर्चाओं में कितनी सच्चाई है ये वक्त के साथ ही इसका पता चलेगा। बहरहाल, रघुवंश के तीन बच्चे हैं और तीनों ही राजनीति की बजाय फिलहाल नौकरी करते हैं। 

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सादगीभरा जीवन जीने वाले रघुवंश मूल रूप से बिहार के वैशाली जिले के हैं। उनका जन्म 6 जून 1946 को हुआ था। राजनीति में आने से पहले रघुवंश शिक्षक हैं। उनकी पत्नी का नाम जानकी देवी है। उनका निधन हो चुका है। उनके दो बेटे इंजीनियर हैं। एक बेटा दिल्ली में ही रहकर नौकरी करता है जबकि दूसरा हाँगकाँग में है। रघुवंश की बेटी टीवी पत्रकार हैं। 

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राजनीतिक कार्यक्रमों में शायद ही लोगों ने रघुवंश के परिवार (Raghuvansh Prasad Singh Family) को देखा हो। न्यूज 18 से एक इंटरव्यू में राजनीति से परिवार की दूरी के सवाल पर रघुवंश बाबू ने कहा था, "आज जिस हालत में हम अभी पड़े हैं, अपने बच्चों को भी उसी में धकेल देते ये सही नहीं होता। ये भी कोई भला जिंदगी है पूरे जीवन भर त्याग, त्याग और सिर्फ त्याग।" 

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रघुवंश प्रसाद जेपी आंदोलन में खूब सक्रिय हुए राजनीति की ओर लगातार बढ़ते गए। जेपी, लोहिया और कर्पूरी ठाकुर के राजनीतिक विचार से काफी प्रभावित थे। कर्पूरी के बाद लालू (Lalu Yadav) के करीब आए और उनकी राजनीति में उनकी ताकत बने। 

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कहते हैं कि लालू का राजनीतिक कद बनाने में रघुवंश का बहुत बड़ा योगदान था। दोनों का साथ 32 साल तक अटूट रहा। इस दौरान लालू के कई करीबी उनका साथ छोड़कर अलग हुए, लेकिन रघुवंश डटे रहे। हालांकि लालू से कई मुद्दों पर नाराजगी भी जताते रहे। 

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2019 में वैशाली में आरजेडी उम्मीदवार के रूप में चुनाव हार गए। आरोप है कि लालू परिवार के आरजेडी में सक्रिय होने के बाद रघुवंश हाशिये पर चले गए। उनसे राय मशविरा भी नहीं किया जाता था। आखिरी वक्त में रघुवंश ने पहली बार अपनी नाराजगी सार्वजनिक की। 

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पिछले हफ्ते एम्स में इलाज के दौरान उन्होंने लालू को इस्तीफा दिया। बाद में उनकी एक और चिट्ठी सामने आई जिसमें पहली बार लालू यादव पर परिवारवाद की राजनीति और विधारों से समझौता कर लेने का आरोप लगाया। इसके बाद 13 सितंबर को उनका निधन हो गया। 

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