गोपाल यादव बताते हैं कि साल 1990 में घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई, खाने को घर में अनाज तक नहीं था। तब उन्होंने सरकारी नौकरी के लिए हाथ-पांव मारना शुरू किया। इसी दौरान वे पोस्टल विभाग की नौकरी के लिए संत माइकल स्कूल में इंटरव्यू देने गए लेकिन वहां के अधिकारी ने उनकी फाइल उठा कर फेंक दी।