बिहार के इस लड़के ने 60 बार फेल होकर भी ले ली थी सरकारी नौकरी, लोग एक बार में ही टूट जाते हैं

पटना। किसी परीक्षा में एक दो बार फेल होने के बाद अच्छे अच्छों का हौसला टूट जाता है। लेकिन बिहार के एक लड़के की कहानी इससे बिल्कुल अलग और लगभग हैरान करने वाली है। ये लड़का एक दो बार नहीं बल्कि 60 बार फेल हुआ। मगर सरकारी नौकरी पाने की जिद ऐसी थी कि उसे लेकर ही माना। 

Anuj Shukla | Published : Jan 10, 2020 5:47 PM IST / Updated: Jan 11 2020, 12:29 PM IST
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बिहार के इस लड़के ने 60 बार फेल होकर भी ले ली थी सरकारी नौकरी, लोग एक बार में ही टूट जाते हैं
ये कहानी बिहार में मधुबनी के सुभाष गुप्ता की है। सुभाष इस वक्त भारतीय रेलवे में सेक्शन ऑफिसर के पद पर तैनात हैं। लेकिन ये मुकाम पाने के लिए सुभाष ने पहाड़ जैसा धीरज दिखाया। उन्हें सरकारी नौकरी चाहिए थी। इसके लिए सुभाष करीब पांच दर्जन प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठे। जिसमें बैंकिंग, रेलवे और कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षाएं शामिल थीं। हालांकि तमाम कोशिशों के बावजूद आखिर में निराशा ही हाथ लगती थी। सुभाष के पिता छोटी दुकान चलाते थे और मां घर संभालती थीं। बचपन से पढ़ाई लिखाई में काफी होशियार थे तो मां बाप को लगता था कि बेटा कुछ बनकर सपने पूरा करेगा।
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सुभाष के घरवालों को लगता था कि बुद्धिमान और मेहनतकश सुभाष पढ़ लिखकर कोई बढ़िया नौकरी करेंगे और घर परिवार का नाम रौशन करेंगे। सुभाष को अच्छे कॉलेज में दाखिला भी दिलवाया गया। 12वीं के बाद उन्होंने बीटेक की पढ़ाई खत्म की।
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पढ़ाई लिखाई के दौरान ऐसा वक्त भी आया जब सुभाष के पिता का निधन हो गया। घर में सबकुछ अस्त व्यस्त नजर आने लगा। पिता के निधन के बाद सुभाष ने ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई का खर्च निकाला। लेकिन सुभाष का संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ था।
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इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद भी सुभाष को कोई ढंग की नौकरी नहीं मिल रही थी। उन्हें चेन्नई जाकर एक और कोर्स करना पड़ा। हालांकि इस कोर्स के बाद भी जो नौकरी मिली उसमें महज 7 हजार रुपये तक की सैलरी थी। सुभाष ने कुछ दिन नौकरी की मगर ये उनका सपना नहीं था। वो सबकुछ छोड़छाड़ कर घर आ गए।
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घर वापस आकर सुभाष कोचिंग पढ़ाने लगे। यहीं उन्होंने तय किया कि वो सरकारी नौकरी करेंगे। इसके लिए उन्होंने बैंकिंग और रेलवे आदि प्रतियोगी परीक्षाओं के पैटर्न को समझा। सुभाष कई प्रतियोगी परीक्षाएं देते रहे और फेल होते गए। लेकिन कभी हौसला नहीं टूटने दिया। आखिर में उनका सिलेक्शन रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड एनटीपीसी में हो गया और उन्हें वो मुकाम मिल गया जिसकी उन्हें तलाश थी।
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सुभाष की कहानी किसी भी छात्र के लिए प्रेरक है।
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