यहां आम की फसल देखकर मां-बाप तय करते हैं अपने बच्चों की शादी, घर-घर में है कार, ऐसे पूरे होते हैं इनके सपने

वैशाली ( Bihar)। बिहार के हरलोचनपुर सुक्की गांव की मिट्टी वैसे तो हर फसल के लिए उपयुक्त है। लेकिन, यहां के किसानों की खुशहाली आम के बागों पर निर्भर करती है। कुल 2200 एकड़ रकबा वाले गांव की दो हजार एकड़ जमीन पर केवल आम के बाग हैं। यहां आम की फसल देखकर किसान अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और बेटे-बेटी की शादियां तय करते हैं। वे बताते हैं कि तीन-चार साल के भीतर गांव में आम पर निर्भर किसानों के 40-45 बेटियों के हाथ पीले किए हैं। किसान अपनी आर्थिक जरूरतों को देखते हुए तीन-चार साल के लिए बागों को व्यापारियों को देकर अग्रिम पैसे ले लेते हैं।

Asianet News Hindi | Published : Jun 13, 2020 10:34 AM IST / Updated: Jun 13 2020, 04:05 PM IST

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यहां आम की फसल देखकर मां-बाप तय करते हैं  अपने बच्चों की शादी,  घर-घर में है कार,  ऐसे पूरे होते हैं इनके सपने


हरलोचनपुर सुक्की गांव की यह खुशहाली आजादी के पहले नहीं थी। नून नदी के किनारे बसे इस गांव में बाढ़ हर साल किसानों के सपने बहा ले जाती थी। जमीन पर पांव जमाने लायक जगह भी नहीं बचती थी। फसलें मारी जाती थीं। 

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साल 1940 में गांव के बड़े-छोटे जोत वाले किसानों ने बाढ़ से फसल की बर्बादी को देखते हुए आम के पौधे लगाने का निर्णय लिया। देर-सबेर और किसानों ने भी यही किया। आम से आमदनी के लिए उन्हें 10 वर्षों का इंतजार करना पड़ा, लेकिन साल 1950 के बाद यहां के लोगों की किस्मत बदल गई।

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करीब 70 सालों से इस गांव को आम के बाग ही पाल-पोस रहे हैं। गांव में सम्पन्नता और रौनक है तो आम की वजह से। शायद ही कोई ऐसा परिवार है, जिसके दरवाजे पर कार न हो। 

 

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हरलोचनपुर सुक्की गांव आम का इको फ्रेंडली गांव है। जहां बागों में विभिन्न वेरायटी के पेड़ हैं। यहां मालदह, सुकुल, बथुआ, सिपिया, किशनभोग, जर्दालु आदि कई प्रकार के आम होते हैं। यह गांव लेट वेरायटी वाले आमों का मायका भी कहा जाता है।

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हरलोचनपुर सुक्की गांव के आम पश्चिम बंगाल व यूपी सहित देश के कई भागों में भेजे जाते हैं। ये आम बिहार के अन्य जिलों में भी जाते हैं। इसके लिए किसानों को मेहनत नहीं करनी पड़ती। व्यापारी खुद आकर आम के बाग खरीद लेते हैं और अच्छी कीमत देकर बागों को खरीद लेते हैं।

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हर साल नए-नए उपाय कर आम के मंजरों (बौर) को बचाया जाता है। किसान कीड़े से बचाने के लिए पेड़ के तने पर चूने का घोल लगवाते हैं। मिट्टी की जांच होती है और बागों की सिंचाई कराई जाती है। आम में लगने वाले दूधिया और छेदिया रोगों से बचाव के लिए छिड़काव किया जाता है। पानी में गोंद घोलकर भी डालते हैं।
 

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एक एकड़ में 90 पौधे लगाए जाते हैं। एक तैयार पेड़ में चार क्विंटल तक फल आते हैं। अगर मौसम ने अच्छा साथ नहीं दिया तो भी औसतन ढ़ाई से तीन क्विंटल फल हर पेड़ पर आते हैं। इस गांव के जितने रकवे में आम के बाग हैं, उनमें करीब सात लाख टन तक उत्पादन होता है।

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