दादासाहेब फाल्के से निशान-ए-इम्तियाज तक, दिलीप कुमार के नाम है सबसे ज्यादा अवॉर्ड जीतने का वर्ल्ड रिकॉर्ड

मुंबई। भारतीय सिनेमा के दिग्गज एक्टर दिलीप कुमार (Dilip Kumar) का बुधवार सुबह 98 साल की उम्र में निधन हो गया। दिलीप साहब लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उन्हें कई बार हॉस्पिटल में भी भर्ती करना पड़ा था। दिलीप कुमार को पिछले एक महीने में दो बार अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। दिलीप कुमार का असली नाम मोहम्मद यूसुफ खान था और उनके नाम सबसे ज्यादा अवॉर्ड्स जीतने का गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड भी है। 

Asianet News Hindi | Published : Jul 7, 2021 3:56 AM IST / Updated: Jul 07 2021, 10:12 AM IST
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दादासाहेब फाल्के से निशान-ए-इम्तियाज तक, दिलीप कुमार के नाम है सबसे ज्यादा अवॉर्ड जीतने का वर्ल्ड रिकॉर्ड

अपने पांच दशक लंबे करियर में दिलीप साहब ने कई अवॉर्ड्स जीते थे। इसमें 8 फिल्मफेयर अवॉर्ड्स (बेस्ट एक्टर), एक फिल्मफेयर का लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड, नेशनल फिल्म अवॉर्ड, पद्मभूषण, पद्म विभूषण, दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड और पाकिस्तान सरकार द्वारा दिया जाने वाला सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज भी शामिल हैं। 

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फिल्मफेयर अवॉर्ड्स की बात करें तो दिलीप कुमार को पहला सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का अवॉर्ड 1954 में फिल्म दाग के लिए मिला था। इसके बाद 1956 में फिल्म आजाद के लिए, 1957 में फिल्म देवदास के लिए, 1958 में फिल्म नया दौर के लिए, 1961 में फिल्म कोहिनूर के लिए, 1965 में फिल्म लीडर के लिए, 1968 में फिल्म राम और श्याम के लिए और 1983 में शक्ति के लिए मिला था। 

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दिलीप कुमार को 1991 में पद्मभूषण, 1994 में दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड, लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड, 1998 में निशान-ए-इम्तियाज, 2008 में लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड, 2015 में पद्मविभूषण अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें  2014 में किशोर कुमार सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। 

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दिलीप कुमार का जन्म पाकिस्तान के पेशावर स्थित किस्सा ख्वानी बाजार एरिया की हवेली में 11 दिसंबर, 1922 को हुआ था। उनकी मां आयशा बेगम और पिता लाला गुलाम सरवर खान थे। दिलीप के 12 बहन-भाई थे। दिलीप कुमार ने नासिक के देवलाली स्थित बार्नेस स्कूल से अपनी पढ़ाई की थी। 

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1938 में दिलीप कुमार का परिवार पेशावर से पुणे के पास देवलाली आ गया था। यहां दिलीप कुमार के पिता लाला गुलाम सरवर ने फल बेचने का कारोबार शुरू किया था। कुछ दिन कारोबार करने के बाद 1942 में वे मुम्बई शिफ्ट हो गए थे।
 

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1942 में जब दिलीप कुमार के पिता को फल के बिजनेस में बड़ा घाटा हुआ तो घर खर्च चलाने के लिए दिलीप कुमार को पुणे की एक कैंटीन में काम करना पड़ा। इस कैंटीन में उन्होंने 7 महीने तक नौकरी की। 

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कहते हैं कि कैंटीन में काम करते वक्त ही उस दौर की एक्ट्रेस देविका रानी की नजर दिलीप कुमार पर पड़ी। दिलीप को देखते ही देविका रानी ने उन्हें फिल्मों का ऑफर दे दिया। हालांकि तब दिलीप कुमार ने ये ऑफर ठुकरा दिया था।

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इसके बाद देविका रानी ने दिलीप कुमार को काफी समझाया लेकिन वो टस से मस नहीं हुए। हालांकि बाद में वो सिर्फ इस शर्त पर देविका रानी के साथ काम करने को तैयार हुए कि वो एक्टिंग नहीं, बल्कि बतौर राइटर काम करेंगे। शुरुआत में दिलीप साहब अपनी उर्दू भाषा पर पकड़ होने की वजह से स्टोरी राइटिंग और स्क्रिप्टिंग का काम किया करते थे। 

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उस समय बॉम्बे टॉकीज की मालकिन रहीं एक्ट्रेस देविका रानी ने दिलीप कुमार को उनका नाम मोहम्मद युसूफ खान से दिलीप कुमार रखने के लिए कहा था। इसके बाद देविका ने उन्हें फिल्म ज्वार भाटा में कास्ट किया, जो 1944 में रिलीज हुई थी। 
 

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फिर देविका रानी ने दिलीप कुमार को 1 हजार रूपए महीने की तनख्वाह का ऑफर दिया। चूंकि 40 और 50 के दशक में ये बहुत बड़ी रकम होती थी। ऐसे में दिलीप कुमार फिल्मों में एक्टिंग करने के लिए तैयार हो गए थे।

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दिलीप कुमार ने करियर की शुरुआत भले ही 1944 में फिल्म 'ज्वार भाटा' से की थी लेकिन उनकी ये फिल्म असफल रही थी। उनकी पहली हिट फिल्म 'जुगनू' (1947) थी। इसके बाद दिलीप कुमार ने शहीद, मेला, अंदाज, दाग, नया दौर, मुगल-ए-आजम, राम और श्याम, गोपी, बैराग, क्रांति, विधाता, मशाल, कर्मा और सौदागर जैसी कई अहम फिल्मों में काम किया। 

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