बिजनेस डेस्क। भारत में युवाओं को क्रेज कारोबार और स्टार्टअप की ओर तेजी से बढ़ रहा है। यह दुनियाभर में तीसरे नंबर पर पहुंच गया है। पहले नंबर पर अमरीका और दूसरे नंबर पर चीन है। हालांकि, मंदी और महंगाई के प्रभाव से कम हुई फंडिंग की परेशानी भारतीय स्टार्टअप सेक्टर पर भी आ रही है। ऐसे में स्टार्टअप सेक्टर में यूनिकॉर्न यानी जिनकी वैल्युएशन 1 अरब डॉलर या इससे अधिक है, वे अब भी फंडिंग के लिए मनपसंद विकल्प बने हुए हैं। ऐसे में निवेशक कॉकरोच स्टार्टअप में इन्वेस्ट को मौका दे रहे हैं और इसकी मांग बढ़ती जा रही है। आइए तस्वीरों के जरिए जानते हैं कि क्या है कॉकरोच स्टार्टअप और यह कैसे काम करता है।
कॉकरोच की तरह ही कॉकरोच स्टार्टअप भी बेपरवाह होते हैं। वे इकोसिस्टम या वेंचर्स के हालात में बदलाव की परवाह नहीं करते।
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इनमें यह निर्धारित करने की क्षमता होती है कि पैसा कहां खर्च करना है और कहां नहीं करना है। कॉकरोच स्टार्टअप बाजार के स्थिति और निवेश के हालात बदलने के बाद भी बना रहता है।
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दरअसल, इसका बड़ा कारण है इनमें विपरित परिस्थितियों में भी खर्च में कटौती करके कारोबार बढ़ाने की क्षमता होती है।
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हालांकि, यह जानना अहम है कि इसे कॉकरोच स्टार्टअप क्यों कहते हैं। दरअसल, कॉकरोच करोड़ों साल से पृथ्वी पर रहते आ रहे हैं।
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ये किसी भी परिस्थिति को सहन कर सकते हैं। कॉकरोच तो बिना सिर के भी एक हफ्ते तक जिंदा रह सकता है। मरने की वजह भी पानी की कमी होती है।
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ऐसे में कॉकरोच स्टार्टअप भी कम सैलरी, कम खर्च और कम बजट वाले व्यवसाय, कारोबार या स्टार्टअप होते हैं। मुश्किलों में भी इनका ग्रोथ रेट कम नहीं होता बल्कि, बढ़ता है।
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यह ठीक उसी तरह से होता है कॉकरोच की जनसंख्या तेजी से बढ़ती रहती है। कॉकरोच स्टार्टअप बाजार के हालात में बदलाव के साथ खुद को बदलना बेहतर तरीके से जानते हैं।
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इसमें कैश फ्लो पॉजिटिव बनने की संभावना होती है। ऐसे मे अगर इनके पास दमदार प्रॉडक्ट या सेवा है तो इनका कारोबार मंदी से लेकर परमाणु हमले तक के कहर झेल सकता है।
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कॉकरोच स्टार्टअप का ध्यान हमेशा रेवेन्यू ग्रोथ बढ़ाने पर होता है। इनका प्रॉडक्ट या सर्विस मुश्किल परिस्थितियों में भी रेवेन्यू ग्रोथ कर सकता है।
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कॉकरोच स्टार्टअप किसी तरह की हड़बड़ी दिखाए बिना नकदी बर्बादी करके मार्केट का प्रिय या फेवरेट बनने की होड़ में शामिल नहीं होते हैं।