आजाद भारत के 10 IPS: किसी ने जब्त कर ली PM की गाड़ी, एक ने सिर्फ 7 दिन की ड्यूटी में 'सरकार' से ले लिया पंगा

करियर डेस्क. देश की बागडोर अधिकारी के हाथ होती हैं। शासन योजनाएं बनाता है तो प्रशासन उसे जमीन पर उतारता है। कानून व्यवस्था को संभालने की जिम्मेदारी भी प्रशासन की होती है। आईएएस और आईपीएस अधिकारी अब भी राज्य और केंद्र की प्रशासनिक तंत्र की रीढ़ हैं। स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) के मौके पर हम देश के 10 ऐसे IPS अधिकारियों की कहानी बता रहे हैं जो अपनी सख्ती और बेमिसाल कामों के लिए आज भी याद किए जाते हैं। 

Asianet News Hindi | Published : Aug 2, 2021 2:14 PM IST

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आजाद भारत के 10 IPS: किसी ने जब्त कर ली PM की गाड़ी, एक ने सिर्फ 7 दिन की ड्यूटी में 'सरकार' से ले लिया पंगा

किरण बेदी
भारत की पहली महिला आईपीएस किरण बेदी हैं। उनका जन्म पंजाब के अमृतसर में 9 जून 1949 को उनका जन्म हुआ। उन्हें सख्त और एक सुपर कॉप अधिकारी के रूप में जाना जाता है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, किरण बेदी को क्रेन बेदी भी कहा जाता है। कहा जाता है कि जब वह दिल्ली ट्रैफिक पुलिस प्रमुख थी। तो उन्होंने क्रेन से प्रधानमंत्री की गाड़ी को भी जब्त कर लिया था।

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के विजय कुमार
के विजय कुमार 1975 बैच के आईपीएस अधिकारी थे। साल 2004 में चंदन तस्कर वीरप्पन को घेर कर उसे उसके अंजाम तक पहुंचाने वालों में के विजय कुमार का नाम शुमार है। वीरप्पन प्रसिद्ध व्यक्तियों की हत्या तथा अपहरण के बल पर अपनी मांग रखने के लिए भी कुख्यात था। 1987 में उसने एक वन्य अधिकारी की हत्या कर दी। 
 

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मनु महाराज
2005 बैच के आईपीएस अधिकारी मनु महाराज की पहचान तेजतर्रार पुलिस अधिकारी की रही है। उन्होंने पटना के एसएसपी समेत कई अहम जिम्मेदारियों को संभाला है। मनु महाराज ने अलग-अलग जिलों कई कार्रवाई को खुद ही लीड किया।  उनकी एके-47 के साथ कार्रवाई के लिए जाते हुए तस्वीर भी काफी वायरल हुई थी। गया जिले में तैनाती के दौरान उन्होंने नक्सलियों के खिलाफ कई ऑपरेशन को अंजाम दिया। मनु महाराज सड़क को देर रात निकल पड़ते थे। 
 

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नवनीत सिकेरा 
1996 बैच के आईपीएस अधिकारी और यूपी पुलिस के आईजी नवनीत सिकेरा अक्सर सुर्खियों में रहते हैं। यूपी में कानून व्यवस्था को मजबूत करने में इनके किए गए कामों के बारे में आज भी लोग बात करते हैं। नवनीत सिकेरा की गितनी देश के सख्त और दबंग आईपीएस अधिकारियों में होती है। 
 

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राजेन्द्र चतुर्वेदी
एसपी राजेन्द्र चतुर्वेदी अपने काम के लिए प्रसिद्ध थे। डकैत फूलन देवी का सरेंडर करवाने में इन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी। फूलन देवी से पहले उन्होंने मलखान सिंह का भी सरेंडर कराया था। ऐसा कहा जाता है कि फूलन देवी के सरेंडर के लिए उन्होंने जमानत के दौर पर अपने बेटे को सौंपने की बात कही थी।   

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शिवदीप वामन लांडे
महाराष्ट्र के अकोला जिले के परसा गांव में एक किसान परिवार में जन्मे लांडे 2006 बैच के IPS अफसर हैं। बिहार कैडर के अधिकारी लांडे की पहली नियुक्ति मुंगेर जिले के नक्सल प्रभवित जमालपुर में हुई थी। अपनी कार्यशैली के कारण वो सुर्खियों में रहते हैं। कई बार उनका ट्रांसफर किया जा चुका है। कहा जाता है कि वो जितने सख्त हैं उतने सरल भी हैं वो अपनी सैलरी का कुछ हिस्सा दान करते हैं। 
 

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सोनिया नारंग
सोनिया नारंग 2002 बैच की कर्नाटक की चर्चित आईपीएस अधिकारी हैं। देवनगिरि की एसपी रहते हुए  सोनिया एक कद्दावर नेता को थप्पड़ मारकर सुर्खियों में आईं थीं। कहा जाता है कि एक मामले में वो सीएम से भी भिड़ गईं थीं। जब आईपीएस सोनिया का नाम 16 करोड़ के खदान घोटाले में नाम आया तो राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारे में हड़कंप मच गया था। बाद में  सोनिया ने मुख्यमंत्री के आरोपों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और खुलकर विरोध किया।

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सुप्रिया साहू
सुप्रिया 1991 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की अधिकारी हैं। नीलगिरि जिले में कलेक्टर के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान प्लास्टिक का उपयोग नहीं करने का उन्होंने कैंपेन चलाया था। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के लिए संयुक्त सचिव (एमआईबी) के रूप में काम कर चुकी हैं। 
 

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आशा गोपालन
आशा गोपलन को मध्यप्रदेश की सख्त IPS में गिनती होती है। 1987 में आईपीएस आशा गोपालन जबलपुर की एसपी हुआ करती थीं। उन्होंने भी शहर में अपराधियों-भ्रष्टाचारियों की नाक में इस हद तक दम कर दिया था। सात महीने के भीतर ही आशा को जबलपुर से ट्रांसफर कर सागर भेज दिया गया। उनके तबादले की सूचना मिलते ही जनता सड़कों पर उतर आई थी।

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संजुक्ता पराशर 
इन्हें आयरन लेडी ऑफ असम  के नाम से भी जाना जाता है। पराशर 2006  बैच की आईपीएस अफसर हैं। संजुक्ता पराशर ने बोडो उग्रवादियों के खिलाफ चलाए जा रहे ऑपरेशन में मुख्य रोल निभाया। उन्होंने 15 महीने के कार्यकाल में 16 आतकियों को मार गिराया और 64 से ज्यादा को गिरफ्तार किया था। उन्हें उदालगिरी में बोडो और बांग्लादेशियों के बीच हुई हिंसा को काबू करने के लिए उन्हें भेजा गया था।

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