LLB Questions: सिविल जज इंटरव्यू 10 सवाल बताएंगे फिल्मी नहीं होती वकालत, लाइफ में कितना जरूरी है कानून

करियर डेस्क. Judicial Interview Questions: सिविल जज इंटरव्यू (Civil Judge Interview) उतना ही कठिन है जितना कि यूपीएससी क्लियर करके कोई   जिसके IAS, IPS बन पाता है। जबकि देखा जाए तो जज बनना लोहे के चने चबाने जैसा है। जज बनने किसी भी कैंडिडेट को कठिन तैयारी करनी पड़ती है। यूपीएससी की परीक्षा की तरह जज बनने के लिए प्री, मेंस और इंटरव्यू को क्लियर करना होता है। उम्मीदवारों न्यायिक सेवा सिविल जज (जूनियर डिविजन) परीक्षा (PCS J ) पास करते हैं। इसके बाद इंटरव्यू होता है। सिविल जज इंटरव्यू के सवाल (Civil Judge Interview Questions) काफी टफ होते हैं। कैंडिडेट से भारतीय कानून (Indian Constitution Knowledge) की समझ, तर्कशक्ति और नजरिए के साथ हॉबी तक से जुड़े सवाल पूछते हैं।  

Kalpana Shital | Published : Jun 30, 2020 12:33 PM IST / Updated: Jun 30 2020, 10:06 PM IST
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LLB Questions: सिविल जज इंटरव्यू 10 सवाल बताएंगे फिल्मी नहीं होती वकालत, लाइफ में कितना जरूरी है कानून

जवाब.  कैंडिडेट कहा- नहीं, यह न्यायालय का विवेकाधिकार है कि वह अजमानतीय मामलों में जमानत दे या न दें। 

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जवाब- यूपी लोक सेवा आयोग की तरफ से आयोजित PCS (J) 2016 में 176वीं  रैंक हासिल करने वाली दीक्षा यादव ने इस सवाल का सामना किया और अपने जवाब पर अड़ गईं। उन्होंने कहा,  जी नहीं, मर्डर केस नहीं होगा और न ही क्ल्पेबल होमिसाइड होगा जवाब सुनते ही एक पैनल मेंबर बोल पड़ा- आप कैसी बात कर रही हैं। किसी के गर्भ में पल रहा बच्चा मर जाएगा और वो मर्डर केस नहीं होगा? आप कैसे कह सकती हैं कि यह मर्डर केस नहीं होगा?" 

 

दीक्षा ने रिप्लाई दिया कि सर यह मर्डर केस नहीं होगा। यह 'मिसकैरिज ' का मामला है। उसकी धाराओं के आधार पर ही केस दर्ज होगा, मर्डर के नहीं। इस जवाब से वे संतुष्ट नजर आए। वे कैंडिडेट का कॉन्फिडेंस टेस्ट कर रहे थे, जिसमें वो पास हुई।

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जवाब. ये सच है कि वकीलों की फीस बेहिसाब हो गई है, इस पर अंकुश लगाना चाहिए। मेडिकल, चार्टेड अकाउंट आदि सभी प्रोफेशनों में रिजनेबल अमाउंट रखा गया है। वकीलों की फीस के बारे में रूल रेगुलेशन होने चाहिए।   

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जवाब. ये होना चाहिए लेकिन यह नियम भी बार काउंसिल को ही बनाने होंगे। अपनी इच्छा से बहुत कम वकील ही गरीबों के मुफ्त केस लड़ते हैं। 
 

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जवाब.  बार एडवोकेट को कहते हैं वहीं बेंच जज को कहते हैं। एडवोकेट का जो ग्रुप होता है उसे बार कहा जाता है। जैसे "Bar Council of India" के बारे में तो सुना होगा। इसी तरह से हर एक राज्य का अपना बार होता है जो जिसे स्टेट बार काउंसिल कहा जाता है। बार काउंसिल एडवोकेट पर नजर रखता है। अगर कोई एडवोकेट कोई गलत काम करता है तो उसकी शिकायत बार काउंसिल में की जाती है। ये उस एडवोकेट पर कड़ी कार्रवाई करते हैं। कुछ गलत करने पर ये एडवोकेट के लाइसेंस तक रद्द कर सकता है। वहीं एक साथ सुनवाई करने वाले जजों को बेंच कहा जाता है।

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जवाब.  मप्र हाईकोर्ट सिविल जज परीक्षा-2019 में भोपाल की तनु गर्ग ने परीक्षा में 20वीं रैंक की थी। ये सवाल उनसे इंटरव्यू में पूछा गया था। तनु बहुत हंसमुख और खुशमिज़ाज हैं तो उनका जॉली नेचर देख अधिकारी हैरान थे तो उन्होंने पूछ ही लिया वो कैसे चोरी, डकैती, रेप और हत्या के मामले हैंडल करेंगी। इस पर तनु ने जवाब दिया आप कितने भी जॉली नेचर के हों, काम के वक्त आप चुटकुले नहीं सुनाते। मेरी कोर्ट विशेष रूप से सेक्सुअल हैरासमेंट के मामलो में खासी स्ट्रिक्ट रहेगी।

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जवाब.  यूपी लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सिविल जज एंट्रेंस एग्जाम पीसीएस जे 2018 में आजमगढ़ के प्रतीक त्रिपाठी ने दूसरे प्रयास में तीसरा स्थान प्राप्त किया था। उनसे इंटरव्यू में कई सवाल पूछे गए। उन्होंने इस सवाल का जवाब दिया-  मृत्युदंड हमारे संवैधानिक विधि के अनुसार वैध है। वर्तमान में कुछ देशों में इसे समाप्त किया गया है।

 

लेकिन हमारे देश में मृत्युदंड को विरले ही मामलों में ही दिया जाना संवैधानिक माना गया है। मेरे अनुसार आतंकवादी गतिविधियों से संबंधित अपराध तथा महिलाओं के प्रति गंभीर अपराध में मृत्युदंड दिया जाता है। वैधानिक ही अपराधों को कम किया जा सके। 

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जवाब. ऐसी वस्तु या साधन जिसके द्वारा न्यायालय के समक्ष किसी तथ्य को साबित या न साबित किया जाता है, वह साक्ष्य कहलाता है। यह दो प्रकार के होते हैं- मौखिक साक्ष्य और दस्तावेजी साक्ष्य। 

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जवाब.  क्वांटम मेरिट के सिद्धांत को संविदा अधिनियम की धारा 70 में बताया गया है। इस सिद्धांत के अनुसार 'कोई व्यक्ति यदि संविदा के अंतर्गत किसी कार्य को करता है तथा संविदा समाप्त होने पर व्यक्ति संविदा भंग करने वाले व्यक्ति का आशय अनुग्रहिक कार्य करने का ही नहीं। तब दूसरे पक्षकार को जितना काम उस व्यक्ति ने दिया हो उतनी राशि देनी होगी। अर्थ 'जितना काम उतना दाम' इसी को क्वांटम मेरिट का सिद्धांत कहते है। 
 

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