लोगों ने मजाक उड़ाया पत्थर भी मारे, मगर कभी नहीं टूटा हौसला; IRS बनकर ही मानी लड़की
ओडिसा. सिविल सर्विस के एग्जाम को लेकर देश भर में बच्चों में जुनून रहा है। पर एक दिव्यांग लड़की ने लाख तानों और मुश्किलों के बावजूद उस मुकाम को पा लिया जिसका लोग सपना देखते हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं ओडिसा की रहने वाली आईआरएस अफसर सारिका जैन की। आइए जानते हैं कि कैसे उन्होंने ये एग्जाम क्लियर किया और उनके संघर्ष की अनसुनी कहानी.........
Asianet News Hindi | Published : Dec 13, 2019 8:28 AM IST / Updated: Dec 13 2019, 02:09 PM IST
मुंबई के इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में डिप्टी कमिश्नर के पद पर तैनात एक पोलियोग्रस्त अफसर को देख हर कोई हैरान रह जाता है। पर लोग उस अफसर के संघर्ष और हौसले की दास्तान नहीं जानते। सारिका जैन ने हाल में अपनी कहानी शेयर की है जिसे सुन किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएं।
सारिका ने बताया कैसे उन्हें स्कूल में एडमिशन नहीं दिया गया, बच्चे उन्हें विकलांग होने के कारण चिढ़ाते थे पत्थर फेंक कर मारते थे। सारिका बताती हैं कि, मैं ओडिसा के एक छोटे से कस्बे काटावांझी से हूं।
हमारी ज्वाइंट फैमिली है। 2 साल की थी जब पोलियो हो गया था। मां-बाप तो उस समय ये भी नहीं जानते थे कि पोलियो होता क्या है? मुझे तेज बुखार में डॉक्टर के पास ले जाया गया तो डॉक्टर ने इंजेक्शन लगा दिया और उसके बाद आधा शरीर सुन्न पड़ गया जो कभी ठीक नहीं हुआ।
मैं डेढ़ साल तक कोमा में रही। मां-बाप मुझे डॉक्टर-हकीमों के पास लेकर भागते रहे और 4 साल की उम्र से मैंने चलना सीखा। पढ़ने की उम्र हुई तो मुझे किसी स्कूल में एडमिशन नहीं मिला। एक स्कूल में दाखिला हुआ भी तो स्कूल आते-जाते बच्चे मेरा मजाक उड़ाते और मुझपर पत्थर फेंक कर मारते थे। मैं नजरअंदाज करती रही और जैसे-तैसे कॉमर्स से ग्रेजुएशन कर लिया।
मैं पहले डॉक्टर बनना चाहती थी। मारवाड़ी परिवार से हूं अधिकतर परिवारों में ग्रेजुएशन के बाद लड़की की शादी करवा दी जाती है मुझपर भी दवाब बनाया गया। चार साल घर पर ही रहने के दौरान मुझे पता चला सीए की परीक्षा घर बैठे दे सकते हैं।
मैंने परीक्षा की तैयारी की और टॉप किया इसके बाद रास्ते खुल गए और मैं आगे की पढ़ाई के लिए शहर आ गई। शहर में कोचिंग ज्वाइन की वहां के टीचर भी मुझ पर गर्व महसूस करते थे।
एक बार यात्रा के दौरान सारिका को किसी से आईएएस एग्जाम के बारे में बता चला। उन्होंने बताया कि, मुझे पहले भी आईएएस अफसर के बारे में सुनने को मिलता था तब मुझे लगा कि मुझे अब आईएएस ही बनना है। हालांकि घरवाले खुश थे कि मैं सीए बन गई हूं इतना काफी है तो मैंने पापा से कहा मुझे IAS अफसर बनना है। वो चौंक गए बोले लड़की को भूत चढ़ गया है, बहकी-बहकी बातें कर रही है, ये एग्जाम इंटेलिजेंट लोगों के लिए होता है तुम नहीं कर पाओगी।
घरवालों के न मानने पर भी मैं अपने दम पर दिल्ली आई, कोचिंग की और 527 वीं रैंक के साथ 2013 में आईएएस क्लियर करके गांव लौटी। सब लोग खुश थे हमारी कैटेगरी के बच्चों को अग्नीपरीक्षा देनी पड़ती है जो चलती ही रहेगी क्योंकि हमें नॉर्मल नहीं समझा जाता।
आज सारिका मुंबई में डिप्टी कमिश्नर हैं उनके संघर्ष की कहानी सुन लोग उनके सम्मान में और झुक जाते हैं।