इस पुलिस कॉन्स्टेबल को ठोकेंगे सौ सलाम, जब जानेंगे गरीब बच्चों के लिए इनका काम

इस देश में ऐसे बच्चों की भारी संख्या है जो गरीबी के कारण शिक्षा हासिल नहीं कर पाते। कई सरकारी योजनाओं के बावजूद शिक्षा पाना गरीब बच्चों के लिए एक सपना ही रह जाता है। कई बच्चे तो गरीबी के चलते भीख मांगने पर मजबूर हो जाते हैं। ऐसे ही बच्चों के लिए राजस्थान पुलिस का एक कॉन्स्टेबल धर्मवीर जाखड़ मसीहा बन गया है। चूरू में ऐसे बच्चों की हालत को देख कर पहले जाखड़ ने उनकी झुग्गी बस्ती में ही उन्हें पढ़ाना शुरू कर दिया। इसके बाद उन्होंने 'अपनी पाठशाला' नाम से स्कूल की शुरुआत की।

Asianet News Hindi | Published : Nov 7, 2019 9:37 AM IST / Updated: Nov 07 2019, 04:51 PM IST

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इस पुलिस कॉन्स्टेबल को ठोकेंगे सौ सलाम, जब जानेंगे गरीब बच्चों के लिए इनका काम
अपनी पाठशाला की शुरुआत धर्मवाीर जाखड़ ने साल 2016 में सिर्फ पांच स्टूडेंट से की थी। आज इस स्कूल में करीब 450 बच्चे पढ़ रहे हैं। धर्मवीर का कहना है कि सरकारी स्कूल की कमी के चलते गरीब बच्चों के लिए शिक्षा पाना मुश्किल रहा है। उन्होंने जब स्कूल की शुरुआत की तो बहुत अच्छा रिस्पॉन्स मिला। तीन महिला कॉन्स्टेबल्स भी स्कूल के रोज-रोज के कामों के प्रबंधन में मदद करती हैं।
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स्कूल में आने वाले बच्चे कचरा बीनने और सफाई करने का काम करते हैं, ताकि अपने परिवार की मदद कर सकें। लेकिन फिर भी वे स्कूल आना नहीं छोड़ते। अब स्कूल में छठवीं कक्षा तक पढ़ाई हो रही है। धर्मवीर का कहना है कि जब वे देखते हैं कि कोई स्टूडेंट स्कूल नहीं आया है तो वे खुद उसके मां-पिता से जाकर मिलते हैं और बच्चों को स्कूल भेजने के लिए मोटिवेट करते हैं।
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धर्मवीर कहते हैं कि उन्हें बहुत दुख होता है जब वे किसी बच्चे को कचरा बीनते या भीख मांगते देखते हैं। उन्होंने कहा कि उनके स्कूल में पढ़ने वाले ऐसे कई बच्चे बहुत टैलेंटेड हैं और नई चीजों को सीखने में बहुत आगे रहते हैं। उन्होंने कहा कि स्कूल की स्थापना का उनका सपना पूरा नहीं हो पाता, अगर उनके दोस्तों ने मदद नहीं की होती। उन्होंने कहा कि अभी तक स्कूल के लिए उन्होंने सरकार से किसी भी तरह की मदद नहीं ली है।
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धर्मवीर कहते हैं कि उन्हें बहुत दुख होता है जब वे किसी बच्चे को कचरा बीनते या भीख मांगते देखते हैं। उन्होंने कहा कि उनके स्कूल में पढ़ने वाले ऐसे कई बच्चे बहुत टैलेंटेड हैं और नई चीजों को सीखने में बहुत आगे रहते हैं। उन्होंने कहा कि स्कूल की स्थापना का उनका सपना पूरा नहीं हो पाता, अगर उनके दोस्तों ने मदद नहीं की होती। उन्होंने कहा कि अभी तक स्कूल के लिए उन्होंने सरकार से किसी भी तरह की मदद नहीं ली है।
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धर्मवीर कहते हैं कि ऐसे बच्चे भी हैं जो अनाथ हैं और उन्हें कोई देखने वाला नहीं है। उन्होंने कहा कि मुझे यह महसूस होता है कि यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं उन बच्चों की देख-रेख करूं और उन्हें सही दिशा मिल सके। शिक्षा हासिल कर वे अपना बेहतर भविष्य बना सकते हैं। उन्होंने कहा कि मैं एक रेजीडेंशियल सकूल भी शुरू करना चाहता हूं, ताकि बच्चों को झुग्गी बस्तियों में नहीं रहना पड़े। धर्मवीर का कहना है कि दूर-दराज के इलाकों में ज्यादा से ज्यादा सरकारी स्कूल खोले जाने चाहिए। इससे गरीबों के बच्चों को पढ़ाई का मौका मिलेगा।
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धर्मवीर बताते हैं रोज दोपहर बाद बच्चों को स्कूल में बढ़िया पौष्टिक खाना दिया जाता है। बच्चों के लिए एक स्कूल वैन का भी प्रबंध किया गया है। इस स्कूल से निकलने वाले बच्चों को आगे की पढ़ाई के लिए प्राइवेट और सरकारी स्कूलों में दाखिला दिलाने का काम भी किया जा रहा है। धर्मवीर का कहना है कि स्कूल के संचालन में हर महीने डेढ़ लाख रुपए का खर्चा आता है। उन्हें बहुत कम फंड के साथ ही यह सब मैनेज करना पड़ता है। अभी स्कूल का खर्चा डोनेशन से ही चल रहा है और धर्मवीर लगातर ऐसी संस्थाओं से संपर्क करने में लगे रहते हैं, जहां से उन्हें आर्थिक मदद मिल सके।
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स्कूल में समय-समय पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है, जिसमें बच्चे भाग लेते हैं। ऐसे ही एक आयोजन में पुलिस अधिकारी बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए अतिथि के रूप में मौजूद हैं।
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पढ़ाई के बाद इनडोर गेम खेलते हुए अपनी पाठशाला के बच्चे।
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