जवाब: होम्योपैथी, जो भारत में लगभग दो सौ साल पहले आरंभ की गयी थी, आज यह भारत की बहुलवादी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। होम्योपैथी की खोज एक जर्मन चिकित्सक, डॉ. क्रिश्चन फ्रेडरिक सैमुएल हैनिमैन (1755-1843), द्वारा अठारहवीं सदी के अंत के दशकों में की गयी थी। यह “सम: समम् शमयति” या “समरूपता” दवा सिद्धांत पर आधारित एक चिकित्सीय प्रणाली है। यह दवाओं द्वारा रोगी का उपचार करने की एक ऐसी विधि है, जिसमें किसी स्वस्थ व्यक्ति में प्राकृतिक रोग का अनुरूपण करके समान लक्षण उत्पन्न किया जाता है, जिससे रोगग्रस्त व्यक्ति का उपचार किया जा सकता है।
भारत सरकार ने होम्योपैथी और आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्धा और सोवा रिग्पा, जिसे सामूहिक रूप से ‘आयुष’ के नाम से जाना जाता है, जैसे अन्य पारंपरिक प्रणालियों के विकास एवं प्रगति के लिए निरंतर प्रयास किए हैं। सरकार के निरंतर प्रयासों के कारण, केन्द्र और सभी राज्यों में होम्योपैथी का एक संस्थागत ढांचा स्थापित हुआ है।