आशुतोष को लगता था कि उनके मां-बाप की मेहनत के आगे उनकी मेहनत कुछ नहीं। इस प्रकार आशुतोष को घंटों साइकिल चलाकर गांव के छोटे से स्कूल आना-जाना और बगैर लाइट के लालटेन या दिए में पढ़ना साधारण सी बात लगती थी।
उनका माध्यम हमेशा हिंदी रहा पर इस बात का उन्हें कभी दुख नहीं था। वे एक कांफिडेंट स्टूडेंट थे जो मानता था कि अपने साथियों की तुलना में उन्होंने जिस स्थिति में पढ़ाई की है, वे उनसे कहीं बेहतर हैं।
आशुतोष ने पहली बार उच्च शिक्षा के लिए कानपुर में कदम रखा। यहां HBTI से उन्होंने बीटेक किया और नौकरी करने लगे। इस समय उनका आईएएस बनने का सपना कहीं पीछे छिप गया था।