धनुष तीर बेचने वाले मजदूर की बेटी बनी IAS अफसर, टूटे घर में इंटरव्यू लेने पहुंच गए थे मीडियावाले

Published : Feb 19, 2020, 04:27 PM ISTUpdated : Feb 19, 2020, 04:30 PM IST

केरल. मजदूरों की जिंदगी ही क्या है वे दिन-रात मेहनत कर दो वक्त की रोटी जुटा पाते हैं। उनके बच्चे बहुत बार उन्ही घरों में पल-बढ़ रहे होते हैं जहां वे काम कर रहे होते हैं। इनके सिर पर छत तक नहीं होती ऐसे में बच्चों को स्कूल भेजना पढ़ाना तो दूर की बात। ऐसे ही केरल का वायनाड एक आदिवासी इलाका है। ये इतना पिछड़ा इलाका है कि लोग यहां स्कूल और पढ़ाई लिखाई को जानते तक नहीं।  बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है। यहां बच्चे जंगलों में रहकर मां-बाप के साथ या तो टोकरी, हथियार बनाने में मदद करते हैं या मजदूरी करते हैं। इसी इलाके में एक मनरेगा मजदूर भी थे जिनकी बेटी ने गांव की पहली आईएएस अफसर बन इतिहास रच दिया। गरीबी में पली-बढ़ी इस लड़की ने अपने बुलंद हौसलों से पूरे देश में ख्याति पाई। IAS सक्सेज स्टोरी में आज हम श्रीधन्या सुरेश के संघर्ष की कहानी बता रहे हैं.....

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धनुष तीर बेचने वाले मजदूर की बेटी बनी IAS अफसर, टूटे घर में इंटरव्यू लेने पहुंच गए थे मीडियावाले
श्रीधन्या के पिता एक दिहाड़ी मजदूर हैं, जो गांव की बाजार में ही धनुष और तीर बेचने का काम करते हैं। इतने गरीब परिवार में जन्म लेने की वजह से श्रीधन्या को बचपन से ही बुनियादी सुविधाओं का अभाव रहा। उनके पिता ने मनरेगा में मजदूरी करके अपने बच्चों को पाला था और बेटी ने अफसर बनकर इतिहास रच दिया।
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कुरिचिया जनजाति से ताल्लुक रखने वाली श्रीधन्या के तीन भाई-बहन भी हैं। सबका गुजारा सिर्फ और सिर्फ पिता की आय पर निर्भर था। श्रीधन्या के पिता ने कहा, "हमारे जीवन में तमाम कठिनाइयां थीं, लेकिन हमने कभी भी बच्चों शिक्षा से समझौता नहीं किया। आज श्रीधन्या ने हमें वो अनमोल तोहफा दिया है जिसके लिए हम संघर्ष करते रहे। हमें उस पर गर्व है।" श्रीधन्या ने सेंट जोसेफ कॉलेज से जूलॉजी में स्नातक की पढ़ाई करने के लिए कोझीकोड का रुख किया था और कालीकट विश्वविद्यालय से पोस्ट-ग्रेजुएशन किया।
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पढ़ाई पूरी करने के बाद श्रीधन्या केरल में ही अनुसूचित जनजाति विकास विभाग में क्लर्क के रूप में काम करने लगी। कुछ समय वायनाड में आदिवासी हॉस्टल की वार्डन भी रही। एक आईएएस अधिकारी का रूतबा देखकर श्रीधन्या काफी प्रभावित हुई थीं और तबसे उन्होंने ठान ली कि वो भी अफसर बनकर ही दम लेंगी।
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कॉलेज के समय से उनकी सिविल सेवा में दिलचस्पी हो गई तो उन्होंने जानकारी जुटाई और लक्ष्य को साध लिया। इसके बाद उन्होंने यूपीएससी के लिए ट्राइबल वेलफेयर द्वारा चलाए जा रहे सिविल सेवा प्रशिक्षण केंद्र में कुछ दिन कोचिंग की। उसके बाद वो तिरुवनंतपुरम चली गई और वहां तैयारी की। इसके लिए अनुसूचित जनजाति विभाग ने क्षीधन्या को आर्थिक मदद भी की।
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और वो दिन भी आया जब श्रीधन्या ने सिविल सेवा परीक्षा में 2018 में 410 वीं रैंक हासिल की। पर उनकी मुश्किलें यही कम नहीं हुईं। मुख्य परीक्षा के बाद जब उनका नाम साक्षात्कार की सूची में आया, तो इसके लिए उन्हें दिल्ली जाना था पर पास में पैसे नहीं थे। वो बताती हैं कि, उस समय मेरे परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे कि मैं केरल से दिल्ली तक की यात्रा खर्च वहन कर सकूं। यह बात जब मेरे दोस्तों को पता चली, तो उन्होंने आपस में चंदा इकट्ठा करके चालीस हजार रुपयों की व्यवस्था कर दी, जिसके बाद मैं दिल्ली पहुंच सकी। बता दें कि श्रीधन्या ने तीसरे प्रयास में यह सफलता प्राप्त की थी।
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परीक्षा पास होने के बाद जैसे ही श्रीधन्या ने अपनी मां को फोन किया और यह जानकारी दी। इसके बाद कई मीडियाकर्मी मेरे उनके पहुंच गए। उनका घर बेहद खराब हालत में था। पूरा घर कच्चा था, टूटे-फूटे घर में ही सपरिवार श्रीधन्या का इंटरव्यू हुए। एक के बाद एक इंटरव्यू वो देती गईं। इतना ही नहीं कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी भी उनसे मिलने उनके घर पहुंची थीं।
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परीक्षा का रिज़ल्ट आने के बाद श्रीधन्या ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि ‘मैं राज्य के सबसे पिछड़े ज़िले से हूं। यहां से कोई आदिवासी आईएएस अधिकारी नहीं है, जबकि यहां पर बहुत बड़ी जनजातीय आबादी है। मुझे आशा है कि मेरी उपलब्धि आनेवाली पीढ़ी को इस क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए प्रेरित करेगी।’
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श्रीधन्या ने कहा,‘कोशिश और सफल होने की ज़िद ही आपको सफलता दिला सकती है।’एक दिहाड़ी मजदूर की बेटी ने सिविल सेवा परीक्षा क्लियर कर सबको चौंका दिया था। केरल में अपने समुदाय से ताल्लुक रखने वाली पहली महिला हैं जिसने यह परीक्षा पास की है। श्रीधन्या की इस क़ामयाबी को सराहते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट करके उन्हें बधाई दी थी।

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