दोस्त के नोट्स से पढ़ दर्जी का बेटा बना IAS अफसर, परिवार पालने बेचे अखबार पर कम नहीं हुआ संघर्ष
भोपाल. देश में सिविल सर्विस को लेकर छात्रों में बहुत क्रेज है। इसके लिए दिल्ली के मुखर्जी नगर में हर साल लाखों की तादाद में बच्चे तैयारी करते हैं। पर कुछ ऐसे गरीब बच्चे भी होते हैं जो कोचिंग नहीं जा पाते लेकिन अफसर बनने का सपना देखते हैं। ऐसे ही एक गरीब परिवार में पले बढ़े एक लड़के ने देश का बड़ा अधिकारी बनने का ख्वाब देखा। उसकी सफलता के रास्ते में बहुत सी मुसीबतें आईं लेकिन उसने अपने सपने को डिगने नहीं दिया। हम मध्यप्रदेश के जिले भिंड के निरीश राजबूत के संघर्ष की कहानी सुना रहे हैं। निरीश ने आईएएस बन परिवार का नाम रोशन किया। दर्जी के बेटे इस लड़के ने गरीबी में अखबार बेचने का काम किया। दोस्तों के नोट्स से पढ़ाई की और यूपीएससी की परीक्षा पास कर इतिहास रच दिया।
Asianet News Hindi | Published : Feb 15, 2020 7:04 AM IST / Updated: Feb 16 2020, 09:40 AM IST
मध्य प्रदेश के भिंड जिले के रहने वाले निरीश राजपूत बेहद गरीब परिवार से थे। उन्होंने ग्वालियर के सरकारी और साधारण से कॉलेज से पढ़ाई की। निरीश के पिता का नाम वीरेंद्र है जो कपड़े सिलने का काम कर परिवार का पेट पालते हैं। निरीश को शुरुआती के दिनों में नहीं पता था कि आखिर आईएएस अधिकारी कैसे बनते हैं लेकिन उन्हें ये जरूर पता था कि इसे पास करने के बाद भाग्य जरूर बदली जा सकती है। उन्हें खुद पर भरोसा था कि अगर वो मेहनत और एकाग्र होकर पढ़ाई करें तो जरूर इस परीक्षा को पास कर सकते हैं। इसके लिए निरीश ने गरीबी को एक बहाना नहीं बनने दिया।
महज 15 बाई 40 फीट के छोटे से मकान में नीरीश अपने 3 भाई-बहनों और माता-पिता के साथ रहते थे। वो बचपन से ही पढ़ाई में काफी होशियार थे। निरीश के दोनों भाई शिक्षक हैं उन्होंने छोटे भाई को काफी प्रोत्साहित किया। अपनी जमा पूंजी देकर उसकी पढ़ाई में मदद भी की।
नीरीश पढ़ाई में अच्छे थे उन्होंने 10वीं में 72 प्रतिशत अंक हासिल किए थे। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से उनके सामने फीस भरने का संकट था। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वो ग्वालियर आ गए, जहां उन्होंने सरकारी कॉलेज से बीएससी और एमएससी दोनों में पहला स्थान हासिल किया। यहां वो पढ़ाई के साथ-साथ पार्ट टाइम जॉब भी करते थे। इसलिए पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए नीरीश ने अखबार बांटने का काम किया। वो पिता के साथ सिलाई के काम में भी हाथ बंटाते थे। ( प्रतीकात्मक तस्वीर)
निरीश के संघर्ष की कहानी की बात करें तो अपने दोस्तों के नोट्स से पढ़ाई करते थे। वे बताते हैं कि, उनके एक दोस्त ने उत्तराखंड में नया कोचिंग इंस्टीट्यूट खोला था। निरीश को यहां पढ़ाने के लिए कहा गया। इसके बदले में निरीश से दोस्त ने वादा किया था कि बदले में उन्हें स्टडी मैटेरियल दिए जाएंगे। (प्रतीकात्मक तस्वीर)
दो साल बाद इंस्टीटयूट अच्छा प्रदर्शन करने लगी तो दोस्त ने निरीश को जॉब से निकाल दिया। इसके बाद वो बेहद टूट गए थे। दो साल तक निरीश अपनी पढ़ाई पर पूरी तरह से ध्यान नहीं दे पा रहे थे। अपने साथ हुए धोखे से उन्होंने सबक लिया और दिल्ली चले आए। ( प्रतीकात्मक तस्वीर)
नीरीश ने पार्ट टाइम जॉब के साथ यूपीएससी परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी थी। दिल्ली में कुछ ही समय में उनके दोस्त बन गए है। उनके पास अधिक पैसे नहीं थे ऐसे में वो अपने दोस्त के नोट्स से पढ़ाई करते थे। नीरीश रोजाना 18 घंटे पढ़ाई करते थे। जिसके बाद उन्हें ये सफलता हासिल हुई थी। नीरीश ने एक इंटरव्यू में बताया, 'मैंने किसी कोचिंग इंस्टीट्यूट का सहारा नहीं लिया, बल्कि दोसत के ही नोट्स और किताबों से तैयारी जारी रखी और आखिरकार मेरी मेहनत रंग लाई और मुझे 370वीं रैंक हासिल हुई। ( प्रतीकात्मक तस्वीर)
निरीश सिविल सर्विस की परीक्षा में उन्हें पहले ही तीन बार असफलता हासिल हुई थे ऐसे में चौथी बार में उन्हें सफलता हासिल हुई। उनका मानना था कि पिता को लोग मामूली टेलर न समझें उनका बेटा अधिकारी बन जाएगा तो उन्हें पूरे गांव में सम्मान मिलेगा। ऐेसे देश के बड़े अधिकारी बन उन्होंने अपने मां-बाप का नाम रोशन किया। निरीश पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के हाथों सम्मानित भी हो चुके हैं। निरीश के संघर्ष से बच्चों को प्रेरणा लेनी चाहिए। मुश्किलों और सुविधाओं के अभाव में भी अगर कुछ करने का जुनून हो तो रास्ते निकल ही आते हैं। ( प्रतीकात्मक तस्वीर)