'भरती रही नौकरियों के फार्म'....गर्भ में बच्चा लिए पढ़ाई करके मामूली स्कूल टीचर ऐसी बनी अफसर
नई दिल्ली. सफलता पाने का कोई शॉर्ट कट नहीं है। यह उसी को मिलती है जो लक्षय को पाने के लिए कड़ी मेहनत करता है। पूनम दलाल एक ऐसी महिला हैं जिन्होंने इस बात का उदाहरण प्रस्तुत किया है कि मेहनत, द्रढ़ता और इच्छा शक्ति से सफलता पाई जा सकती है। इस महिला की जिंदगी संघर्षों से भरी रही लेकिन उसने हार नहीं मानी। इनकी सफलता की कहानी मिडिल क्लास से ताल्लुक रखने वाली हर लड़की को आगे बढने की प्रेरणा देती है। नौ माह की गर्भवति होने पर भी वो पढ़ाई करती रहीं और नवजात बच्ची को छोड़ एग्जाम देने गईं। ये हैं महिला अफसर पूनम दलाल जो मामूली प्राइमरी शिक्षिका से अफसर की कुर्सी पर बैठीं। पूनम शिक्षक,बैंक PO, UPSC परीक्षा टॉपर- मेहनत, द्रढ़ता और इच्छा शक्ति की प्रतिमा हैं। IAS, IPS सक्सेज स्टोरी में हम आपको पूनम के संघर्ष की कहानी सुना रहे हैं।
Asianet News Hindi | Published : Apr 11, 2020 6:18 AM IST / Updated: Apr 11 2020, 12:12 PM IST
पूनम दलाल हरियाणा के झज्जर गांव के मध्यम वर्गीय परिवार से हैं। उनका जन्म दिल्ली में हुआ था और वही उनका बचपन गुजरा। 12वीं पास करने के बाद पूनम एक प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक के रूप में पढ़ाने लगी। शिक्षक होने के साथ साथ उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से बाहरी छात्र के रूप में अपना स्नातक भी पूरा किया।
स्नातक पूर्ण करने के बाद पूनम ने बैंक PO, SSC ग्रेजुएट लेवल आदि कई परीक्षाएं दी। पूनम इन सभी परीक्षाओं में सफल रही परंतु उन्होंने SBI PO की नौकरी स्वीकार की। उन्हें बहुत अफसोस है इस बात का की उनका मार्गदर्शन करने वाला कोई नहीं था और उन्हें UPSC परीक्षा देने के लिए 2015 तक इंतजार करना पड़ा।
प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका के तौर पर अपने करियर में ही उन्होंने प्रतिष्ठित संघ लोक सेवा आयोग परीक्षा पास करने की ठान ली। अगस्त 2015 में जब पूनम यूपीएससी की परीक्षा दी तो वह नौ माह की गर्भवती थीं। दिसंबर में जब मेन्स की परीक्षा में बैठीं तो उनका बच्चा महज़ तीन माह का था।
एसबीआई में 3 साल तक काम करने के बाद, साल 2006 में पूनम ने एसएससी ग्रेजुएट लेवल परीक्षा में राष्ट्रीय स्तर पर 7वां रैंक हासिल करते हुए आयकर विभाग में नए करियर की शुरुआत की और इस सफलता ने उनके अंदर यूपीएससी परीक्षा लिखने की ललक पैदा की।
2007 में पूनम दिल्ली की असीम दहिया के साथ शादी हो गई। कस्टम एक्साइज डिपार्टमेंट में कार्यरत उनके पति ने हमेशा उन्हें आगे बढ़ाने में उनका साथ दिया और कुछ बड़ा करने के लिए प्रोत्साहित करते रहे।
पूनम ने नौकरी के साथ-साथ अपनी पढ़ाई को भी जारी रखा। 28 साल की उम्र में उन्होंने यूपीएससी सीएसई में अपना पहला प्रयास दिया और उन्हें रेलवे (आरपीएफ) मिला। वह उस सेवा में शामिल नहीं हुई और सीईई 2010 में फिर से परीक्षा में बैठने का फैसला किया। उन्हें फिर से रेलवे ही मिला, लेकिन एक अलग सेवा (आईआरपीएस)। इसी बीच, उन्होंने हरियाणा पीएससी की परीक्षा पास करते हुए, साल 2011 में हरियाणा पुलिस में बतौर डीएएसपी शामिल हो गईं।
साल 2011 में, पूनम यूपीएससी की प्रीमिम्स परीक्षा में ही असफल हो गईं और उन्होंने यूपीएससी के लिए अपनी कोशिश को खत्म करने का निश्चय कर लिया क्योंकि अब उनकी उम्र भी उन्हें इस परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं देती।
वो कहते हैं न भाग्य भी मेहनत करने वालों का साथ देता है और कुछ ऐसा ही पूनम के साथ भी हुआ। साल 2011 में पैटर्न परिवर्तन से प्रभावित हुए उम्मीदवारों के आंदोलनों और याचिकाओं के कारण, सरकार ने 2011 में सिविल सेवा परीक्षा में बैठे सभी असफल लोगों के लिए एक और मौका देने का निश्चय किया। और पूनम को यूपीएससी की परीक्षा में एक बार फिर से बैठने का अवसर मिल गया।
पूनम के लिए यह अवसर एक बड़ी चुनौती के रूप में आया क्योंकि एक तो उनकी तैयारी काफी सालों पहले छूट चुकी थी और उपर से उन्हें 24*7 अपनी ड्यूटी में तैनात रहना पड़ता था। इसके अलावा वह उस समय 9 माह की गर्भवती भी थीं। लेकिन इन तमाम चुनौतियों के बावजूद पूनम हार नहीं मानी और सेल्फ स्टडी शुरू कर दी। फिर उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा में सफलता का परचम लहराते हुए अखिल भारतीय स्तर पर 308वां रैंक हासिल की थी।
अगर पूनम की सफलता पर गौर करें तो हमें यह देखने को मिलता है कि परिजनों की प्रेरणा और उनके सहयोग से कठिन परिस्थितियों में भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। पूनम कहती हैं कि ससुराल वालों के सपोर्ट की वजह से उन्हें सफलता मिली। वो लेखिका भी हैं और अपनी किताबें भी लॉन्च कर चुकी हैं।