लाल को काबिल बनाने किराए के 2 कमरों में बिता दी जिंदगी; जज्बा देखिए बेटा DSP बन गया

करियर डेस्क. कहते हैं सफलता किसी सुविधा की मोहताज नहीं होती है। इंसान के दिल में कुछ कर-गुजरने का जज्बा हो तो वह कोई भी मुकाम हासिल कर सकता है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है यूपी पुलिस में तैनात एक कांस्टेबल के बेटे ने। पिता ने भले ही खुद कष्ट में जिंदगी बिताई हो लेकिन कभी अपने बेटे की पढ़ाई में आर्थिक अभाव आड़े नहीं आने दिया। पिता के इसी  त्याग को बेटे ने अपना हौसला बनाया और एक दिन वो हासिल करके दिखा दिया जिसका उसके मां- बाप ने सपना देखा था। आज हम आपको बताने का रहे हैं मूल रूप से बलिया के रहने वाले DSP अमित सिंह की। अमित 2019 बैच के PPS अफसर हैं।

Asianet News Hindi | Published : Jul 23, 2020 6:55 AM IST
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लाल को काबिल बनाने किराए के 2 कमरों में बिता दी जिंदगी; जज्बा देखिए बेटा DSP बन गया

अमित मूलतः यूपी के बलिया के चांदपुर गांव के रहने वाले हैं। इनके पिता अनिल कुमार सिंह उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही हैं। वर्तमान में वह प्रतापगढ़ जिले के एसपी आफिस में तैनात हैं। दो भाई और दो बहनो में अमित दूसरे नंबर पर हैं।

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अमित बताते हैं "पापा की पोस्टिंग प्रयागराज में थी। उसी समय से हम लोग प्रयागराज में एक किराए के मकान में रहते हैं। मेरी स्कूलिंग प्रयागराज से ही हुई है। इंटरमीडिएट के बाद मैंने बीटेक किया और उसके बाद मैंने गुड़गांव की एक प्राइवेट कम्पनी में नौकरी कर ली।"

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"पापा का शुरू से ही सपना था कि उनका अपना भी घर हो तो अच्छा है। लेकिन अहम चारों भाई बहन की पढ़ाई के आगे उन्होंने कभी अपने सपनो को हकीकत में बदलने की कोशिश ही नहीं की। वह पुलिस में थे इसलिए हमारे साथ कम ही रह पाते थे। लेकिन वह जब भी घर आते थे हम लोगों का हौसला बढ़ाते थे। मेरे दिल को शुरू से ये बात कोसती रहती थी कि मेरे पापा ने हम लोगों के लिए कितना त्याग और संघर्ष किया है।"

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"नौकरी के दौरान ही मेरी तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गई। मुझे जॉन्डिस हो गया। इसके बाद मुझे वापस घर आना पड़ा। लगभग 2 महीने के इलाज के बाद मेरी तबियत में सुधार हुआ तो मैंने वापस फिर से नौकरी ज्वाइन करने के लिए सोचा। लेकिन शरीर इतना कमजोर हो गया था कि मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही थी।"
 

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"इसके बाद मैंने प्रयागराज में ही रहकर सिविल सर्विस की तैयारी का मन बनाया। मैंने प्रयागराज में सिविल सर्विस की तैयारी कराने वाली एक कोचिंग में बात किया तो वहां की फीस 1 लाख 40 हजार थी। बीटेक करने में ही पापा के काफी पैसे खर्च हो गए थे। मै कोचिंग की फीस देने में सक्षम नहीं था। इसलिए मैंने बगल में ही रहकर तीन सालों से सिविल सर्विस की तैयारी करने वाले संतोष यादव से बात की। उन्हें ही मै अपना गुरू मानने लगा। उन्होंने मेरी काफी मदद भी की।"

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"उन्ही की किताबें व नोट्स मांगकर मैंने पढ़ाई शुरू की। अभी केवल 20 दिन ही बीता था कि UPPCS की वेकेंसी आ गई। मैंने भी फॉर्म डाल दिया। उस समय मुझे सिविल सर्विस के बारे में कुछ भी नहीं पता था। फॉर्म भरने के 4 महीने बाद प्री एग्जाम्स की डेट थी। मैंने वही 4 महीने माइंड सेट कर तैयारी शुरू कर दी।"
 

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"2017 में मैंने प्री का एग्जाम दिया और मै सफल रहा। उसके बाद मानो मेरे हौसलों को पंख लग गए। मै जी-जान से पढ़ाई में जुट गया। तैयारी में संतोष यादव और मेरी फ्रेंड अंकिता ने मेरी काफी मदद की। इन दोनों लोगों ने मेरे लिए किताबें व नोट्स की व्यवस्था की। अंत में माता पिता के आशीर्वाद व भगवान की कृपा 2019 में आए रिजल्ट में मै सफल हुआ। मुझे 19वीं रैंक मिली थी।"

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