कभी पैसे की कमी से नहीं कर पाए थे MBA,अब बाप-बेटे एक ही जिले में हैं जज

करियर डेस्क। फरवरी में CBSE बोर्ड के साथ अन्य बोर्ड के एग्जाम भी स्टार्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही बैंक, रेलवे, इंजीनियरिंग, IAS-IPS के साथ राज्य स्तरीय नौकरियों के लिए अप्लाई करने वाले  स्टूडेंट्स प्रोसेस, एग्जाम, पेपर का पैटर्न, तैयारी के सही टिप्स को लेकर कन्फ्यूज रहते है। यह भी देखा जाता है कि रिजल्ट को लेकर बहुत सारे छात्र-छात्राएं निराशा और हताशा की तरफ बढ़ जाते हैं। इन सबको ध्यान में रखते हुए एशिया नेट न्यूज हिंदी ''कर EXAM फतह...'' सीरीज चला रहा है। इसमें हम अलग-अलग सब्जेक्ट के एक्सपर्ट, IAS-IPS के साथ अन्य बड़े स्तर पर बैठे ऑफीसर्स की सक्सेज स्टोरीज, डॉक्टर्स के बेहतरीन टिप्स बताएंगे। इस कड़ी में आज हम आपको कोलकाता में तैनात 2016 बैच के न्यायिक अधिकारी सिविल जज राहुल मिश्रा के संघर्षों की कहानी बताने जा रहे हैं। 

Asianet News Hindi | Published : Feb 10, 2020 7:42 PM IST

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कभी पैसे की कमी से नहीं कर पाए थे MBA,अब बाप-बेटे एक ही जिले में हैं जज
राहुल यूपी के वाराणसी के रहने वाले हैं। उनकी पढ़ाई वाराणसी से ही हुई है। राहुल एक बहन व दो भाइयों में तीसरे नंबर पर हैं। राहुल 2016 बैच के न्यायिक अधिकारी हैं। राहुल के पिता मदनमोहन मिश्रा भी कोलकाता में जज हैं। राहुल के अनुसार ऐसा पहली बार हुआ है कि पिता-पुत्र दोनों लोग दस साल के लिए एक ही जगह जज हैं।
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राहुल बताते हैं "18 की उम्र में पिता जी बीएससी के छात्र थे। उसी समय मेरी बड़ी बहन का जन्म हुआ। इसके बाद एक बड़े भाई फिर मैं तीसरे नंबर पर हूं। पिता जी बीएससी की पढ़ाई पूरी करने के बाद लॉ करने वेस्ट बंगाल चले गए। हम लोग भी उनके साथ बंगाल में रहने लगे। उनकी पढ़ाई पूरी होने के बाद वह वहीं कोर्ट में वकालत करने लगे। लेकिन उससे इतनी इनकम नहीं हो पाती थी कि सारी चीजें एडजस्ट की जा सकें। इसके बाद मां हमें पढ़ाने के लिए वापस वाराणसी आ गईं। उस समय मैं क्लास थर्ड में था। हम तीनों की पढ़ाई वाराणसी में ही हुई।"
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राहुल के मुताबिक़ "मेरा पढ़ने में ज्यादा मन नहीं लगता था। इसलिए ग्रैजुएशन के बाद मैंने MBA करके प्राइवेट जॉब करने के बारे में सोचा। लेकिन जब ये बात मैंने पिता जी को बताई तो उन्होंने पैसे की कमी की बात कहकर MBA करने से मना कर दिया। उसके बाद मैंने भी लॉ करके वकालत करने का मन बनाया।"
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"कुछ दिनों बाद ही पिता जी का सिलेक्शन पीसीएस-जे में हो गया। लेकिन उस समय उनकी सैलरी ज्यादा नहीं थी। हम वाराणसी में किराए के मकान में रहते थे। पिता जी के सिलेक्शन होने के बाद घर की हालात में कुछ सुधार हुआ मैं भी पिता जी के पास वेस्ट बंगाल चला गया और वहां लॉ में एडमीशन ले लिया। 2015 में लॉ पूरा होने के बाद वहां की कोर्ट में वकालत करने का प्लान था। उसी समय वेकेंसी आ गई। मैंने फॉर्म भर दिया लेकिन सिलेक्शन नहीं हुआ। 2016 में दूसरी बार एग्जाम दिया, इस बार सफलता मिल गई और 9th रैंक आई।
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राहुल का कहना है " मुझे मां के संघर्षों से प्रेरणा मिली। इतनी कम उम्र में तीन बच्चों की जिम्मेदारी उठाकर पिता जी से दूर अकेले वाराणसी में रहते हुए उन्होंने हमें पढ़ाया। ये बात मेरे जहन में थी कि मां हम लोगों के लिए ही पिता जी से इतनी दूर अकेले रहते हुए संघर्ष कर रही है। यही बात अंत तक मेरे मेरे दिल में रही और मेरी सफलता का सबसे प्रमुख कारण बनी "
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