मां के पेट में थे तभी हो गई थी पिता की मौत;घर चलाने के लिए मां को बेंचना पड़ा शराब, बेटा बन गया IAS
करियर डेस्क. किसी ने सच ही कहा है अगर जिंदगी में कुछ पाने के लिए पूरी ईमानदारी से कोशिश की जाए तो मंजिल मिल ही जाती है। सफलता के लिए सिर्फ जरूरी है जोश व लगन। व्यक्ति अपनी मेहनत और जोश के दम पर बड़ा से बड़ा मुकाम हासिल कर सकता है। आज कल अक्सर देखा जा रहा है कि कॉम्पटेटिव एग्जाम्स की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स अक्सर एक या दो बार असफल होने के बाद नर्वस हो जाते हैं। वह अपना संतुलन खो बैठते हैं उन्हें ये लगने लगता है कि अगर वह सफल न हुए तो जिंदगी में क्या कर सकेंगे। उन्हें आगे का रास्ता नहीं सूझता है। आज हम आपको 2011 बैच के IAS डॉ. राजेंद्र भारूड़ की कहानी बताने जा रहे हैं। जिन संघर्षों से इन्होने ये मुकाम पाया है वह एक मिसाल है।
Asianet News Hindi | Published : Mar 14, 2020 4:45 AM IST / Updated: Mar 14 2020, 10:35 AM IST
डॉ राजेंद्र भारूड़ महाराष्ट्र के धुले जिले के रहने वाले हैं। ये आदिवासी भील समाज से आते हैं। डॉ राजेंद्र बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं। जिन संघर्षों के बाद इन्होने IAS बन कर एक मुकाम हासिल किया वो सभी के लिए एक प्रेरणा है।
डॉ राजेंद्र जब मां के गर्भ में थे उसी समय इनके पिता की मौत हो गई थी। पिता की मौत के बाद इस परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। गन्ने की पत्तियों से बनी छोटी सी झोपड़ी में राजेंद्र का पूरा परिवार रहता था। परिवार के 10 सदस्य इसी झोपड़ी में गुजारा करते थे।
पिता की मौत के बाद घर में दो टाइम के भोजन के लिए भी समस्याएं खड़ी हो गई। घर चलाने के लिए राजेंद्र की मां ने शराब बेंचना शुरू कर दिया। दिन भर उनके घर में शराब खरीदने व पीने वालों का जमावड़ा लगा रहता था। राजेंद्र को इसी माहौल में रहने को मजबूर होना पड़ा। इसी घर में रहकर उन्होंने पढ़ाई की।
राजेंद्र जब चौथी कक्षा में थे , तो वह घर के बाहर चबूतरे पर बैठकर पढ़ते थे। लेकिन, शराब पीने आने वाले लोग उन्हें कोई न कोई काम बताते रहते थे। पीने वाले लोग स्नैक्स के बदले पैसे देते थे। उससे बचने वाले पैसे से राजेंद्र किताबें खरीदते थे। राजेंद्र ने10वीं 95% अंकों के साथ तथा 12वीं में 90% से पास किया। साल 2006 में उन्होंने मेडिकल प्रवेश परीक्षा दी। ओपन मेरिट के तहत उन्होंने मुंबई के सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया।
राजेंद्र साल 2011 में कॉलेज के बेस्ट स्टूडेंट बने। उसी साल उन्होंने यूपीएससी का फॉर्म भरा और पहली बार में सी सिलेक्ट हो गए। वह IAS होने के बाद कलेक्टर बन गए।
राजेंद्र के कलेक्टर बनने के बाद भी उनकी मां को कुछ पता नहीं चला। लेकिन रिजल्ट आने के बाद गांव के लोग, अफसर, नेता सभी बधाई देने आने लगे तब उन्हें पता चला कि उनका बेटा राजू (राजेंद्र) कलेक्टर की परीक्षा में पास हो गया है।