स्कूल में चपरासी थे पिता, बच्चों को पढ़ाने मां को खोलनी पड़ी दुकान... लाडली बन गई IPS
करियर डेस्क. किसी ने सच ही कहा है अगर जिंदगी में कुछ पाने के लिए पूरी ईमानदारी से कोशिश की जाए तो मंजिल मिल ही जाती है। सफलता के लिए सिर्फ जरूरी है जोश व लगन। व्यक्ति अपनी मेहनत और जोश के दम पर बड़ा से बड़ा मुकाम हासिल कर सकता है। आज कल अक्सर देखा जा रहा है कि कॉम्पटेटिव एग्जाम्स की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स अक्सर एक या दो बार असफल होने के बाद नर्वस हो जाते हैं। वह अपना संतुलन खो बैठते हैं उन्हें ये लगने लगता है कि अगर वह सफल न हुए तो जिंदगी में क्या कर सकेंगे। उन्हें आगे का रास्ता नहीं सूझता है। आज हम आपको 2018 बैच की IPS डॉ विशाखा भदाणे की कहानी बताने जा रहे हैं।
डॉ विशाखा भदाणे नासिक की रहने वाली हैं। उनके पिता अशोक भदाणे नासिक के उमराने गांव में एक छोटे से स्कूल में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी हैं। विशाखा दो बहनों व एक भाई में सबसे छोटी हैं।
विशाखा के पिता अशोक चाहते थे कि उनके बच्चे पढ़ लिख कर बड़े आदमी बने। इसलिए वह शुरू से ही उनकी पढ़ाई पर काफी ध्यान देते थे। लेकिन उनकी कमाई इतनी नहीं थी कि घर खर्च के साथ वह बच्चों को अच्छे से सकें।
आमदनी कम होने के कारण विशाखा की मां ने भी स्कूल के बाहर एक छोटी सी दुकान खोल ली। दुकान से होने वाली आमदनी से बच्चों की पढ़ाई में कुछ आर्थिक मदद मिलने लगी थी।
लेकिन इसके बावजूद भी किताबों आदि का काफी अभाव रहता था। पैसे न होने के कारण जब स्कूल की दो महीने की छुट्टियां रहती थी तब तीनों भाई बहन लाइब्रेरी में जाकर किताबें पढ़ते थे। उनकी मेहनत को देखते हुए स्कूल के अध्यापक भी उनका उत्साह बढ़ाते थे।
विशाखा जब 19 साल की थीं तो उस समय उनकी माता का निधन हो गया। घर को संभालने वाला कोई नहीं था। मां के मौत के बाद घर की भी जिम्मेदारी विशाखा पर आ गई। जिसके बाद वह घर के काम करने के बाद पढ़ाई करती थी।
विशाखा और उनके भाई ने गवर्नमेंट आयुर्वेद कालेज में बीएएमएस में एडमीशन के लिए एंट्रेंस दिया था। उसमे दोनों लोगों का सिलेक्शन हो गया। जिसके बाद उनके पिता ने बैंक से लोन लिया जिससे उन्होंने दोनों को पढ़ाया और बड़ी बेटी की शादी की।
पढ़ाई पूरी करने के बाद विशाखा UPSC की तैयारी में जुट गईं। दूसरे प्रयास में साल 2018 में उनका सिलेक्शन UPSC में हो गया। उन्हें IPS रैंक मिली।