15 महीने में 16 एनकाउंटर,64 को पहुंचाया सलाखों के पीछे,ऐसी है इस लेडी सिंघम की LIFE
करियर डेस्क. फरवरी में CBSE बोर्ड के साथ अन्य बोर्ड के एग्जाम भी स्टार्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही बैंक, रेलवे, इंजीनियरिंग, IAS-IPS के साथ राज्य स्तरीय नौकरियों के लिए अप्लाई करने वाले स्टूडेंट्स प्रोसेस, एग्जाम, पेपर का पैटर्न, तैयारी के सही टिप्स को लेकर कन्फ्यूज रहते है। यह भी देखा जाता है कि रिजल्ट को लेकर बहुत सारे छात्र-छात्राएं निराशा और हताशा की तरफ बढ़ जाते हैं। इन सबको ध्यान में रखते हुए एशिया नेट न्यूज हिंदी ''कर EXAM फतह...'' सीरीज चला रहा है। इसमें हम अलग-अलग सब्जेक्ट के एक्सपर्ट, IAS-IPS के साथ अन्य बड़े स्तर पर बैठे ऑफीसर्स की सक्सेज स्टोरीज, डॉक्टर्स के बेहतरीन टिप्स बताएंगे। इस कड़ी में आज हम आपको असम कैडर की 2006 बैच की IPS अफसर संजुक्ता पराशर की कहानी बताने जा रहे हैं। जुर्म को खत्म करने का इस लेडी सिंघम के अंदर ऐसा जज्बा है कि खुद AK-47 लेकर ऑपरेशन को लीड करती हैं।
Asianet News Hindi | Published : Feb 14, 2020 9:21 AM IST / Updated: Feb 14 2020, 03:24 PM IST
IPS संजुक्ता पराशर मूलतः असम की रहने वाली हैं। वह 2006 बैच की IPS अफसर हैं। संजुक्ता पूरे असम में आयरन लेडी के नाम से भी जानी जाती हैं। उन्होंने IAS पुरू गुप्ता से शादी की है।
संजुक्ता पराशर ने राजनीति विज्ञान से दिल्ली के इंद्रप्रस्थ कॉलेज से ग्रेजुएट किया। इसके बाद JNU से इंटरनेशनल रिलेशन में PG और US फॉरेन पॉलिसी में MPhil और Phd किया है। जिसके बाद संजुक्ता सिविल सर्विस की तैयारी में लग गईं। उन्होंने साल 2006 में UPSC में सफलता पाई और उन्हें 85 रैंक मिली।
रैंक अच्छी होने के कारण उन्हें अपनी इच्छा से अपना कैडर चुनने की छूट दी गई। लेकिन उन्होंने IPS चुना और असम-मेघालय कैडर सिलेक्ट किया। संजुक्ता समाज के लिए अच्छा काम करना चाहती थीं। इसी लिए उन्होंने IPS चुनने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई।
संजुक्ता पराशर स्कूली दिनों से ही अपने राज्य में आतंवादियों व भ्रष्टाचारियों गतिविधियों से काफी दुखी थीं। इसलिए उन्होंने अच्छी रैंक लाने के बावजूद भी IPS कैडर सिलेक्ट कर असम में ही काम करने का फैसला किया। संजुक्ता की 2008 में पहली पोस्टिंग माकुम में असिस्टेंट कमान्डेंट के तौर पर हुई, लेकिन कुछ ही महीनों के बाद उन्हें उदालगिरी में हुई बोडो और बांग्लादेशियों के बीच की जातीय हिंसा को काबू करने के लिए ट्रान्सफर कर दिया गया। उन्होंने इस ऑपरेशन को खुद लीड किया और केवल 15 महीने में ही इन्होंने 16 आतंकियों को मार गिराया और 64 से ज्यादा आतंकियों को सलाखों के पीछे भेजा ।
संजुक्ता पराशर दो महीने में सिर्फ एक बार ही अपने पति और घरवालों से मिलने के लिए समय निकाल पाती हैं। ज्यादातर आतंकी के खिलाफ चल रहे ऑपरेशन में उनकी भागीदारी से समय मिलना मुश्किल रहता है। आतंकियों के बीच संजुक्ता पराशर की ऐसी इमेज बनी हुई है, वे इनके नाम से ही भाग खड़े होते हैं।