ट्रेन की फर्श पर बैठ पहुंचे दिल्ली पढ़ने, सब्जी की गोदाम में बिताई रात...फिर भी IPS बन गया लकड़हारे का ये बेटा
करियर डेस्क. किसी ने सच ही कहा है कि सफलता किसी सुविधा की मोहताज नहीं होती। सफलता के लिए सिर्फ जरूरी है जोश व लगन। व्यक्ति अपनी मेहनत और जोश के दम पर बड़ा से बड़ा मुकाम हासिल कर सकता है। आज कल अक्सर देखा जा रहा है कि कॉम्पटेटिव एग्जाम्स की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स अक्सर एक या दो बार असफल होने के बाद नर्वस हो जाते हैं। वह अपना संतुलन खो बैठते हैं उन्हें ये लगने लगता है कि अगर वह सफल न हुए तो जिंदगी में क्या कर सकेंगे। उन्हें आगे का रास्ता नहीं सूझता है। इन सबको ध्यान में रखते हुए एशिया नेट न्यूज हिंदी ''कर EXAM फतह...'' सीरीज चला रहा है। इसमें हम अलग-अलग सब्जेक्ट के एक्सपर्ट, IAS-IPS के साथ अन्य बड़े स्तर पर बैठे ऑफीसर्स की सक्सेज स्टोरीज, डॉक्टर्स के बेहतरीन टिप्स बताएंगे। इस कड़ी में आज हम 1993 बैच के IPS रॉबिन हिबु की कहानी आपको बताने जा रहे हैं। रॉबिन ने कठिन हालातों से लड़ते हुए जिंदगी में एक मुकाम हासिल किया।
Asianet News Hindi | Published : Mar 4, 2020 9:12 AM IST / Updated: Mar 04 2020, 03:15 PM IST
रॉबिन का जन्म अरुणाचल प्रदेश में चीन की सीमा से लगे एक गांव होंग में हुआ था। वह आदिवासी समुदाय से हैं। उनके पिता खेती किसानी करते थे। घर के खर्च के लिए वह लकड़ी काट कर बाजार में बेंचने जाया करते थे।
रॉबिन बचपन से ही पढ़ने में काफी होशियार थे। उनके गांव में उस समय कोई स्कूल नहीं था। इसलिए रॉबिन अपने घर से करीब 10 किमी पैदल चल कर स्कूल जाते थे। लेकिन उनमे पढ़ने की लगन को देखते हुए उनका परिवार भी उनका पूरा सपोर्ट करता था।
इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद रॉबिन ने दिल्ली का रुख किया। उन्होंने आगे की पढ़ाई JNU से की। रॉबिन ने दिल्ली आने के लिए ट्रेन पकड़ी। उस समय ट्रेन में सीट खाली नहीं थी। इसलिए ट्रेन में सफर कर रहे कुछ सुरक्षा बल के जवानो ने उन्हें शौचालय के पास फर्श पर बैठा दिया।
वह दिल्ली पहुंचे तो उनके पास रहने के लिए कोई जगह नहीं थी। हॉस्टल में भी कमरा नहीं मिल पाया तो रॉबिन ने JNU के पास ही स्थित एक सब्जी की गोदाम में रात बिताने का फैसला लिया। रॉबिन ने वहां कई रातें बिताईं। हांलाकि बाद में उन्हें जेएनयू के नर्मदा हॉस्टल में कमरा मिल गया।
रॉबिन पढ़ाई के साथ ही सिविल सर्विस की तैयारी में लगे रहे। उन्होंने साल 1993 में पहली बार सिविल सर्विस का एग्जाम दिया। पहले ही अटेम्प्ट में उन्होंने सिविल सर्विस का एग्जाम क्रैक कर लिया। उन्हें IPS कैडर दिया गया।
IPS रॉबिन हिबु ने हेल्पिंग हैंड नाम की एक संस्था की भी शुरुआत की है, जो पूर्वोत्तर राज्यों से दिल्ली जैसे शहर में आने वाले युवाओं को मदद उपलब्ध कराती है। जो युवा रोजगार की तलाश या प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों के लिए इन महानगरों में आते हैं उनके लिए संस्था मदद मुहैया कराती है।
रॉबिन के जीवन में महात्मा गांधी का खासा प्रभाव रहा है। रॉबिन गुनी बाईडियो नाम की एक शिक्षिका से जुड़े, जो कस्तूरबा गांधी सेवा आश्रम में पढ़ाती थीं। इस अनुभव ने रॉबिन के जीवन पर खासा प्रभाव छोड़ा। रॉबिन के पास संपत्ति के नाम पर कुछ भी नहीं है। इसी के साथ उन्होने अपना लकड़ी का घर भी गांधी म्यूजियम के लिए दान में दे दिया है।