पिता ने पीटा तो बच्चे ने ठानी बड़ा आदमी बनकर ही सामने आउंगा, फिर IAS अफसर के रूप में लौटा बेटा

कर्नाटक. देश में हर साल स्टूडेंट्ट सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करते हैं। इसे देश में शिक्षा की सर्वश्रेष्ठ और सबसे अधिक कठिन परीक्षा भी कहा जाता है। इस परीक्षा को पास करने में लोगों को कई प्रयास भी करने पड़ते हैं। फिर सिविल सेवा परीक्षा को लेकर लोगों में क्रेज कम नहीं होता है। वे परेशानी और मुश्किलों को झेलकर भी आईएस बनकर परिवार का नाम रोशन करते हैं। ऐसे ही एक योद्धा की कहानी हम आपको सुनाने वाले हैं। कड़े संघर्ष के बाद उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा पास की और आईएएस बन लाखों स्टूडेंट्स की प्रेरणा बन गए। 

Asianet News Hindi | Published : Feb 18, 2020 4:44 AM IST / Updated: Feb 18 2020, 10:18 AM IST

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पिता ने पीटा तो बच्चे ने ठानी बड़ा आदमी बनकर ही सामने आउंगा, फिर IAS अफसर के रूप में लौटा बेटा
तुमकुर जिले के एक साधारण परिवार में जन्मे बालाजी डी.के. की कहानी इस मायने में बड़ी दिलचस्प है। उन्होंने अपनी कहानी और आईएएस बनने का जुनून कैसे आया सब अपने लफ्जों में बताया है। वे बताते हैं कि, आईएएस (IAS) का एग्ज़ाम क्लियर करना बचपन से ही मेरा सपना था। यह सब तब शुरू हुआ जब मैं 5वीं कक्षा में था। पिताजी मुझ पर गुस्सा हो गए थे और उन्होंने मुझे पीटा भी था। मैं रोते-रोते सिसक रहा था। तभी टी.वी. पर GK का प्रश्न पूछा गया था। मैंने इसका सही उत्तर दिया, जिससे मेरे पिताजी बहुत खुश हुए। उनका गुस्सा गर्व और खुशी में बदल गया था तभी मैंने सोच लिया एक दिन बड़ा अफसर बनकर ही दम लूंगा।
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इससे मुझे एहसास हुआ कि सामान्य ज्ञान की मदद से किसी को भी जीता जा सकता है। फिर, मैंने GK में इतनी गहरी रुचि विकसित की, जिससे कि मैं देश की सबसे कठिन GK परीक्षा (मैं इस तरह सोच रहा था) को क्लियर कर सकूं।
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फिर, मुझे बताया गया कि IAS एक ऐसी परीक्षा है, जिसमें सबसे कठिन GK आता है। मैं श्री सचिदानंद राव सर से निजी ट्यूशन ले रहा था। वे हमेशा कहा करते थे कि व्यक्ति अपना जीवन ऐसा बनाना चाहिए कि उसकी मौत के बाद लोग उसके कामों को लेकर उसे याद रखें। इन शब्दों ने IAS बनने के मेरे संकल्प को मजबूत कर दिया। इसके साथ ही, एक अन्य शिक्षक श्री जगदीशैया के.एस. सर भी सफल IAS, IPS उम्मीदवारों की कहानियां सुनाते थे। वे मुझे बहुत प्रभावित करती थीं।
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उसके बाद, जब मैंने 10वीं कक्षा की परीक्षा दी थी, मैंने गणित में 100% अंकों के साथ 93.76% से दसवीं कक्षा पास की। सभी ने सुझाव दिया कि मुझे ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा के लिए विज्ञान का विकल्प चुनना चाहिए । लेकिन, मेरे दिल ने कहा कि मुझे अपने आईएएस बनने के सपने को आगे बढ़ाने के लिए मानविकी का चयन करना चाहिए। जैसा कि आप सभी जानते हैं, साइंस स्ट्रीम रोजगार के बेहतर अवसर प्रदान करती है।
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एक मध्यम वर्गीय परिवार (मेरे पिता बहुत गरीब परिवार से हैं। मेरे दादा जी परिवार से दूर हो गए थे। मेरी दादी ने दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करके मेरे पिताजी का पालन-पोषण किया। मेरे पिताजी कई जगहों पर काम करते थे और किसी तरह उन्हें ग्रामीण बैंक में एक नौकरी मिल गई। ऐसे में मेरे लिए एक अच्छी नौकरी खोजना जरूरी था। फिर भी, मैं अपने आई.ए.एस. के सपने को आगे बढ़ाना चाहता था। मेरे माता-पिता ने मुझे पूर्ण सहयोग दिया और मुझे अपना सपना साकार करने का अवसर दिया। सभी ने मेरे माता-पिता को पागल कहा। फिर भी, वे मेरे साथ खड़े रहे।
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मेरी अंग्रेजी बहुत खराब थी जिसकी वजह से मुझे कुछ सब्जेक्ट पढ़ने में मुश्किल आती थी। मैंने फैसला किया कि IAS परीक्षा को क्लियर करने के लिए मुझे पहले इंग्लिश सीखनी चाहिए। मैंने अपनी रणनीति तैयार की। मैंने कन्नड़ और तेलुगु फिल्मों के संवादों का अनुवाद अंग्रेज़ी में करना शुरू कर दिया। जब भी मुझे किसी कठिनाई का सामना करना पड़ता था, तो मैं उस वाक्य को लिख लेता था और अगले दिन अंग्रेजी के शिक्षकों के साथ चर्चा करके उन्हें समझ लेता था। मैं हमेशा मन ही मन अंग्रेजी के वाक्यों को बनाता रहता था। इससे मुझे अंग्रेजी पर पकड़ बनाने में वास्तव में मदद मिली।
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फिर मैंने बैचलर ऑफ बिजनेस मैनेजमेंट (बीबीएम) और फिर एमबीए किया। एमबीए करने के बाद, मुझे एक सामुदायिक संगठन के बारे में पता चला जो IAS उम्मीदवारों के लिए मुफ्त बोर्डिंग, लॉजिंग और कोचिंग की सुविधा देता था। जब मैंने उनसे संपर्क किया, तो मुझे अपमानित किया गया। पर मैंने सपने को नहीं छोड़ा खुद से पढ़ाई की। आख़िरकार इंग्लिश मीडियम से सिविल सेवा परीक्षा देकर मैंने IAS सेवा में जीत हासिल की। मेरा संकल्प सफल हुआ और मैं आन्ध्र प्रदेश कैडर में आई.ए.एस. अधिकारी हूं।
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आपको बता दें कि बालाजी ने आईएएस स्टूडेट्स के लिए सिविल सेवा मुख्य परीक्षा के एथिक्स के पेपर पर एक बेहतरीन किताब भी लिखी है। वे कहते हैं कि कड़ी मेहनत से बच्चे किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं। जैसे उन्होंने गरीबी और कमजोर अंग्रेजी दोनों ही मुश्किलों पर जीत पाई।
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