तुम्हारा चेहरा हीरो लायक नहीं, ये कह अमरीश पुरी को मारा था ताना; दिल पर लगी बात तो किया एक फैसला

मुंबई। फिल्म मिस्टर इंडिया में 'मोगैंबो' का किरदार निभाने वाले मशहूर एक्टर अमरीश पुरी (Amrish Puri) अगर जिंदा होते तो 89 साल के हो जाते। 22 जून, 1932 को पंजाब के नवांशहर में जन्मे अमरीश पुरी ने 1970 में आई फिल्म 'प्रेम पुजारी' से करियर की शुरुआत की थी। बॉलीवुड में हीरो बनने का ख्वाब लेकर मुंबई आए अमरीश पुरी को उनकी किस्मत ने विलेन बना दिया। अमरीश के बड़े भाई मदन पुरी पहले से ही फिल्म इंडस्ट्री में थे और उन्होंने ही अमरीश को मुंबई बुलाया था। पहली बार एक एक्टर के लिए उनका स्क्रीन टेस्ट 1954 में हुआ था, हालांकि प्रोड्यूसर्स को वे पसंद नहीं आए थे। तुम्हारा चेहरा हीरो बनने लायक नहीं..कह रिजेक्ट कर दिए गए थे अमरीश...

Asianet News Hindi | Published : Jun 21, 2021 1:22 PM IST
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तुम्हारा चेहरा हीरो लायक नहीं, ये कह अमरीश पुरी को मारा था ताना; दिल पर लगी बात तो किया एक फैसला

350 से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुके अमरीश पुरी भी बाकी एक्टर्स की तरह ही मुंबई हीरो बनने की ख्वाहिश लेकर आए थे, लेकिन प्रोड्यूसर्स ने ये कहकर मना कर दिया था कि उनका चेहरा हीरो बनने लायक नहीं है। ये बात सुनकर अमरीश पुरी के दिल को बहुत ठेस पहुंची थी। 

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बाद में उन्होंने फिल्मों में विलेन का किरदार मजबूरी में चुना था, लेकिन तब शायद ही कोई जानता था कि नेगेटिव किरदार निभाने वाले अमरीश पुरी को एक दिन बॉलीवुड के महान 'खलनायकों' में गिना जाएगा। अमरीश पुरी भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन वो आज भी फिल्म इंडस्ट्री के सबसे मशहूर विलेन्स में से एक हैं।  
 

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अमरीश पुरी को एक्टिंग का जुनून था और यही वजह थी कि प्रोड्यूसर्स के ठुकराने के बाद भी उन्होंने एक्टिंग को नहीं छोड़ा और थिएटर की तरफ रुख किया। 1971 में डायरेक्टर सुखदेव ने उन्हें 'रेशमा और शेरा' के लिए साइन किया, लेकिन उस वक्त तक उनकी उम्र 40 साल के करीब हो चुकी थी। 

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हालांकि, फिल्म में अमरीश को ज्यादा रोल नहीं दिया गया, जिस वजह से उन्हें अपनी पहचान बनाने में और समय लगा। इसके बाद उन्होंने 'निशांत', 'मंथन', 'भूमिका', ईमान-धरम, पापी, अलीबाबा मरजीना, जानी दुश्मन, सावन को आने दो, आक्रोश और कुर्बानी जैसी फिल्मों में काम किया। 

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अमरीश पुरी को असली पहचान 1980 में आई फिल्म 'हम पांच' से मिली। इस फिल्म में उन्होंने दुर्योधन का किरदार निभाया था, जो काफी चर्चित रहा। इसके बाद 'विधाता' और 'हीरो' जैसी फिल्मों ने अमरीश पुरी को खलनायक के तौर पर स्थापित कर दिया।
 

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1987 में आई 'मिस्टर इंडिया' में उन्होंने 'मौगेंबो' का किरदार निभाया। इस फिल्म में उनका डायलॉग 'मौगेंबो खुश हुआ' काफी फेमस हुआ। इन फिल्मों में विलेन का किरदार निभाने के बाद उन्होंने कभी मुड़कर नहीं देखा और 'राम लखन', 'सौदागर', 'करण-अर्जुन', 'कोयला' जैसी सुपरहिट फिल्मों में काम किया। 

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निगेटिव रोल से शुरुआत करने वाले अमरीश ने 90 के दशक में पॉजिटिव किरदार निभाने शुरू किए थे। उनका कद काफी बढ़ चुका था और कई बार ऐसा भी होता था कि मुंहमांगी फीस न मिलने पर वो फिल्म छोड़ दिया करते थे। एनएन सिप्पी की एक फिल्म उन्होंने सिर्फ इसलिए छोड़ दी थी, क्योंकि उन्हें मांग के मुताबिक 80 लाख रुपए नहीं दिए जा रहे थे।

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अमरीश ने इंटरव्यू में कहा था- जो मेरा हक है, वो मुझे मिलना चाहिए। मैं एक्टिंग के साथ कोई समझौता नहीं करता। तो फिल्म के लिए कम पैसा स्वीकार क्यों करूं। लोग मेरी एक्टिंग देखने आते हैं। प्रोड्यूसर्स को पैसा मिलता है, क्योंकि मैं फिल्म में होता हूं। तो क्या प्रोड्यूसर्स से मेरा चार्ज करना गलत है? 

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अमरीश पुरी ने आगे कहा था- जहां तक सिप्पी की फिल्म की बात है तो वह मैंने बहुत पहले साइन की थी। वादा था कि साल के अंत में फिल्म शुरू होगी। लेकिन तीन साल बीत चुके हैं। मार्केट का भाव बढ़ गया है। अगर वो मुझे उतना पैसा नहीं दे सकता तो मैं फिल्म क्यों करूं।
 

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फिल्मों में विलेन का किरदार निभाने के अलावा उन्होंने कई पॉजिटिव और कॉमिक रोल भी किए। इनमें दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, परदेस, घातक, चाची 420 और मोहब्बतें जैसी फिल्मों में बेहतरीन किरदार निभाए। 

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