दर्द लिए घर लौट रहे मजदूर को सफर के अंतिम पड़ाव में मिली खुशी, बोला इस बुरे वक्त में कुछ तो अच्छा हुआ

बिलासपुर (छत्तीसगढ़).  कोरोना का खौफ तथा भूख और बेबसी मजदूरों की जान पर भारी पड़ रही है। घर जाने की जिद में वह सब दर्द सहते जा रहे हैं। लॉकडाउन में गरीब और असहाय लोगों की परेशानियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। वहीं एक ऐसी कहानी सामने आई है जहां इस मुश्किल वक्त में एक मजदूर परिवार के घर खुशी आई है। वह भगवान को धन्यवाद दे रहा है कि इतनी परेशानी के बावजूद भी उसकी जिंदगी में कुछ तो अच्छा हुआ।
 

Asianet News Hindi | Published : May 18, 2020 8:09 AM IST / Updated: May 18 2020, 01:47 PM IST

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दर्द लिए घर लौट रहे मजदूर को सफर के अंतिम पड़ाव में मिली खुशी, बोला इस बुरे वक्त में कुछ तो अच्छा हुआ

दरअसल, यह कहानी है बिलासपुर के रहने वाले मजदूर राजेंद्र यादव की। जो अपनी डेढ़ साल की बच्ची और गर्भवती पत्नी को लेकर भोपाल से एक ट्रेन में बैठकर अपने घर मुंगेली लौट रहे थे। जैसे ही हबीबगंज से स्टेशन से यह ट्रेन चलने लगी तो कुछ देर बाद राजेंद्र की पत्नी को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। जहां ट्रेन में बैठ अन्य महिलओं ने प्रसूता का प्रसव कराया। जब ट्रेन बिलासपुर पहुंची तो युवक ने एंबुलेंस के जरिए शहर के सिम्म अस्पताल में पत्नी को भर्ती कराया। जहां जच्चा और बच्चा पूर्ण रुप से स्वस्थ हैं।

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मजदूर राजेंद्र ने बताया कि वह कुछ सालों पहले भोपाल मजदूरी करने गया था, लेकिन लॉकडाउन के चलते उसका काम-धंधा बंद हो गया। पत्नी गर्भवती थी फिर भी मैंने घर जाने की सोचा, क्योंकि यहां रहता तो परिवार का पेट कैसे पालता। कैसे मकान मालिक का किराया चुकाता, इसलिए घर आने का फैसला किया। इतनी तकलीफ के बाद गांव पहुंचने से पहले खुशी मिली है। अब गांव में ही रहेंगे, कभी बाहर नहीं जाऊंगा।
 

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यह तस्वीर बिलासपुर शहर की है। जहां यह महिला अपने दो मासूम बच्चों के साथ एक पेड़ के नीचे छांव में बैठी हुई है। सफर बहुत लंबा है, ऐसे में जहां छांव दिखती तो यह बेबस लोग इस तरह आराम करने लगते और कुछ देर फिर अपनी मंजिल की तरफ चल पड़ते। आप देख सकते हैं कि इस संकट के दौर में एक मां अपने बच्चों का किस तरह से ख्याल रख रही है। मां की गोद में बैठे ये बच्चे एक-दूसरे को खाना खिलाते हुए यही सोच रहे होंगे कि कब हम अपने घर पहुंचेंगे।
 

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ये तस्वीर बिलासपुर में बनाए गए क्वारैंटाइन सेंटर की है। इसको देखकर अंदाजा लगाना भी मुश्किल हो रहा है कि ये श्रमिक वहां अंदर रखे गए हैं या फिर सड़क पर पड़े हैं। 

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