गजब जज्बा: ऑटो वाले का बेटा बना अफसर, कोंचिग के लिए पैसे नहीं.. लेकिन एक लाइन ने बदल दी पूरी जिंदगी

भिलाई (छत्तीसगढ़). कहते हैं अगर किसी में जज्बा और जुनून हो तो उसे कामयाब होने में कोई मुश्किल नहीं आती। तमाम परेशानियों के बावजूद भी वह सफलता के शिकर तक पहुंच ही जाता है। कुछ ऐसा कमाल कर दिखाया है एक ऑटो वाले के बेटे ने जो अपनी मेहनत की दम पर आज सेना में बड़ा अफसर बन गया है। गांव-परिवार ही नहीं पूरा जिला उसकी तारीफ करते नहीं थक रहा है। जिसके पास जूते नहीं थे, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और मोजे पहनकर ही सफलता की ऐसी दौड़ लगाई की उसके सामने सब सैल्यूट कर रहे हैं। आइए पढ़ते हैं इस होनहार बेटे की कहानी...

Asianet News Hindi | Published : Dec 23, 2020 6:49 AM IST / Updated: Dec 23 2020, 12:25 PM IST
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गजब जज्बा: ऑटो वाले का बेटा बना अफसर, कोंचिग के लिए पैसे नहीं.. लेकिन एक लाइन ने बदल दी पूरी जिंदगी


पेंट के मौटे मोजे बनाकर लगाई दौड़ 
दरअसल, यह कहानी स्टील शहर भिलाई के रहने वाले ऑटो चालक के बेटे अभिषेक सिंह की। जिन्होंने अपने बेटे के लिए  12 से 15 घंटे ऑटो चलाकर आज इंडियन आर्मी में लेफ्टिनेंट के पद पर चयन करा दिया है। जितनी मेहनत पिता ने की है उससे कहीं ज्यादा संघर्ष उनके होनहार सपूत ने किया है। पिता की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि वो उसे दौड़ने के लिए जूते दिला सकें। अभिषेक ने अपने पेंट के मौटे मोजे बनाकर दौड़ की प्रक्टिस की है।

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बेटे के अफसर बनाने के लिए पिता ने दिनरात चलाया ऑटो
अभिषेक ने दैनिक भास्कर से बात करते हुए कहा कि जब वह मोजा पहनकर दौड़ते थे उसके दोस्त मेरा मजाक उड़ाते थे। कहते थे कि ऐसा भी कोई अफसर बनता है। लेकिन जब आज मेरा चयन हुआ तो वही मेरी कामयाबी पर सलाम कर रहे हैं। इस सफलता के पीछे मेरे पिता और पत्नी का बलिदान है। अगर वह मुझे इतना सपोर्ट नहीं करते तो आज .यहां नहीं पहुंच पाता। जब मैं 5 साल का था तो मां का निधन हो गया। इसके बाद पापा ने ही मुझे संभाला, दिनभर वह ऑटो चलाते और रात में लोरी सुनाकर सुला देते थे। साथ वह अक्सर कहते थे कि तुझे एक दिन बड़ा अफसर बनाउंगा, चाहे इसके लिए मुझे    कितनी ही मेहनत क्यों ना करना पड़े। सच में उनकी बात सच हो गई।

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चार साल की ट्रेनिंग के बाद बना अफसर
बता दें कि अभिषेक ने 12 दिसंबर 2020 को चार साल की कड़ी ट्रेनिंग पूरी की है। हाल ही में वो पासिंग परेड में शामिल हुआ था। जिसके बाद उसे पहली पोस्टिंग पठानकोट में मिली है। नए साल 2021 के पहले सप्ताह में ज्वाइनिंग कर जिंदगी की नई शुरूआत करेगा। उसका कहना कि माता-पिता की सेवा और देश की रक्षा करना ही उसकी जिंदगी का उद्देशय है।
 

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पहले सिपाही बना फिर बना बड़ा अफसर
अभिषेक ने बताया कि अक्सर में तो यही सोचता था कि कोई भी हो बस सरकारी नौकरी मिल जाए। क्योंकि पापा दिन रात ऑटो चलाकर मुझे पालते थे। इसलिए 12वीं के बाद ही जॉब करना चाहता था। फिर दोस्तों की सलाह पर सेना में जाने का मन बनाया। दौड़ लगाना शुरू किया महंगे जूते नहीं खरीद सका तो मोजे पहनकर रनिंग करने लगा। कोचिंग के लिए पैसे नहीं थे इसलिए  नहीं जा सका। फिर शहर में लगने वाले विज्ञापन के पंपलेट की रफ कॉफी बनाकर उस पर लिखना शुरु किया। इसी बीच भिलाई में सेना में सीधी भर्ती का एक कैंप लगा शारीरिक परीक्षा के बाद लिखित एग्जाम पास कर लिया और इस तरह राजपूत रेजिमेंट में सिपाही की पोस्ट पर ज्वाइनिंग हो गई। राजपूत रेजिमेंट में सिपाही नौकरी मिलने के बाद मेरी पहली पोस्टिंग राजस्थान के गंगानगर में हुई। वहां पर ड्यूटी के दौरान जब मैंने  सेना के बड़े अफसर विजय पांडेय सर को देखा तो सोचा अब तो आर्मी में ही अफसर बनकर रहूंगा। इसके लिए मैने सारी जानकारी ली आखिर कैसे इसमें चयन होता है। दो साल 2013 से लेकर 2015 जी तोड़ मेहनत की और परीक्षा दी, लेकिन इंटरव्यू में मैं फेल हो गया।

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बाइिल की एक लाइन ने हार को जीत में बदल दिया
दो साल मेहनत करने के बाद मेरा मन टूट गया। इसके बाद एक दिन मैंने बाइबिल पढ़ने बैठ गया। जिसमें एक लाइन लिखी थी-''मैं तुझे पूछ नहीं, सिर पर ठहराऊंगा। तुम नीचे नहीं, हमेशा ऊपर ही रहोगे'' बस फिर क्या था इस लाइन को पढ़ने से हिम्मत आ गई और सोच लिया अब तो अफसर बनकर ही चैन लूंगा। क्योंकी कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। दोगुनी तैयारी शुरू कर दी है। इसके बाद सेना में लेफ्टिनेंट की पोस्ट निकली।  साल 2016 में एग्जाम दिया और इंडियन  आर्मी में लेफ्टिनेंट के पद पर चयन हो गया। चार साल की  ट्रेनिंगि के बाद अब एक माह बाद कमान संभाल लूंगा।

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