लाल मिर्च से होता है यहां हवन, कहते हैं इससे शत्रुओं का नाश हो जाता है

राजनांदगांव, छत्तीसगढ़. जिला मुख्यालय से करीब 35 किमी और दुर्ग से 67 किमी दूर 1600 फीट की ऊंचाई पर स्थित है मां बांम्बलेश्वरी का मंदिर। इस मंदिर का इतिहास करीब 2200 साल पुराना है। यह डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर निर्मित है। यह शब्द राजसी पहाड़ों और तालाबों के कारण पड़ा। डोंगर का अर्थ पहाड़ और गढ़ का मतलब किला होता है। इस मंदिर से कई किवंदतियां जुड़ी हुई हैं। नवरात्र में यहां भारी भीड़ उमड़ती है। यहां शिवजी और हनुमानजी के भी मंदिर हैं। मां बांम्बलेश्वरी मां बगलामुखी का ही रूप हैं। उल्लेखनीय है कि मां बगलामुखी के ही दरबार में भगवान राम ने रावण पर विजयी हासिल करने का आशीर्वाद लिया था।

Asianet News Hindi | Published : Oct 20, 2020 11:34 AM IST

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लाल मिर्च से होता है यहां हवन, कहते हैं इससे शत्रुओं का नाश हो जाता है

डोंगरगढ़ में मां बांम्बलेश्वरी या बम्लेश्वरी के दो मंदिर हैं। बड़ा मंदिर पहाड़ी पर स्थित है। नवरात्र में यहां लाखों की संख्या में भक्त आते हैं। 
 

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डोंगरगढ़ को कामाख्या नगरी और डुंगराज्य के नाम से जाना जाता था। इन मंदिरों की निर्माण शैली को देखकर इन्हें 12वीं-13वीं सदी का माना जाता है।

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यह जगह प्राकृतिक रूप से बहुत खूबसूरत है। यहां छोटे और बड़े कई तालाब हैं। जैसे पश्चिम में पनियाजोब, उत्तर में ढारा और दक्षिण में मडियान नामक जलाशय।

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इस मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढ़ियों के अलावा रोपवे का इंतजाम है।
 

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डोंगरगढ़ धार्मिक सद्भाव का कस्बा है। यहां हिंदू मंदिरों के अलावा बौद्ध, सिख, ईसाई और जैन मंदिर भी हैं।

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मां बम्लेश्वरी के मंदिर को छत्तीसगढ़ में तीर्थ स्थल के रूप माना जाता है। 1964 में खैरागढ़ रियासत के भूतपूर्व नरेश राजा बहादुर और वीरेन्द्र बहादुर सिंह ने मंदिर के संचालन का दायित्व मां बम्लेश्वरी ट्रस्ट कमेटी को सौंप दिया था।

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