14वीं शताब्दी के इस शिवमंदिर के कुंड में 2 कुएं हैं, किवदंती है कि एक कुआं सीधे पाताल लोक को जाता है

भिलाई, छत्तीसगढ़. ये दुनिया अजीबो-गरीब रहस्यों से भरी पड़ी है। कुछ रहस्य साइंस से परे हैं, तो कुछ किवंदतियों में ही जीवित हैं। सच क्या है? यह कोई नहीं जानता। ऐसा ही एक रहस्यमयी शिव मंदिर है रायपुर से करीब 22 किमी दूर दुर्ग मार्ग पर देवबलौद मंदिर। इस मंदिर के नाम पर यहां का गांव पुकारा जाता है। यह भिलाई के नजदीक है। इस मंदिर को 12-13वीं शताब्दी की माना जाता है। इसे कलचुरी राजाओं ने बनवाया था। कहते हैं कि इस मंदिर के निर्माण के लिए 6 महीने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। लेकिन जब ऐसा संभव नहीं हुआ, तो इसे अधूरा छोड़ दिया गया। यह मंदिर बलुवा पत्थरों से बना है। पुरातत्व विभाग के अधीन यह मंदिर लॉकडाउन के चलते बंद था। अब सावन सोमवार से इसे खोल दिया गया है। इस बार भक्त इस मंदिर में विराजे शिवलिंग को हाथों से नहीं छू सकेंगे। वहीं, सोशल डिस्टेसिंग के साथ मास्क लगाना भी अनिवार्य होगा। जानिए इस मंदिर के बारे में कुछ अन्य जानकारियां...

Asianet News Hindi | Published : Jul 6, 2020 5:38 AM IST
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14वीं शताब्दी के इस शिवमंदिर के कुंड में 2 कुएं हैं, किवदंती है कि एक कुआं सीधे पाताल लोक को जाता है

इस मंदिर में करीब 3 फीट नीचे गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। वहीं, मंदिर के बाहर कुंड बना है। कहते हैं कि शिल्पी इसे अधूरा छोड़कर चले गए थे। इसलिए मंदिर का गुंबद नहीं बन पाया।

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मंदिर के कुंड के बारे में कहानियां प्रचलित हैं कि इसमें दो कुएं हैं। एक कुएं से पाताल लोक को रास्ता जाता है। दूसरे कुएं से एक गुप्त सुरंग है। यह रायपुर जिले के आरंग कस्बे में खुलती है। सच क्या है, यह रहस्य है। वैसे गर्मियों में भी यह कुंड नहीं सूखता।

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यह मंदिर खजुराहो शैली पर बना है। मंदिर की दीवारों पर नक्काशीदार प्रतिमाएं उकेरी गई हैं। दीवारों पर देवी-देवताओं-पशु-पक्षियों और रामायण के प्रसंगों को भी दर्शाया गया है।
 

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मंदिर के अंदर जो शिवलिंग है, उसका रंग भूरा है। माना जाता है कि यहां जो कुछ मन्नत मांगी जाती है, वो पूरी होती है। हर साल सावन और शिवरात्रि पर यहां भव्य मेला लगता है। लेकिन इस बार कोरोना के चलते भीड़ नहीं रहेगी।
 

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कहावत है कि मंदिर का निर्माण कर रहा शिल्पकार शिवभक्ति में इतना लीन हो गया कि उसे कपड़े पहनने तक का होश नहीं रहा। एक दिन भोजन लेकर उसकी पत्नी की जगह बहन आ गई। जब शिल्पी ने बहन को देखा, तो उसे शर्मिंदगी हुई। इसके बाद शिल्पी ने मंदिर के ऊपर से ही कुंड में कूदकर आत्महत्या कर ली। इसके बाद बहन भी भाई के वियोग में तालाब में कूद गई।

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