ठंड का समय था, आंगन में जल रही थी आग, तभी खेलते हुए पैर जला बैठी बच्ची

सुकमा, छत्तीसगढ़. साहस उम्र से नहीं आता। साहस हम सबके अंदर होता है। कुछ लोग उसे जुटाकर असंभव को भी संभव बना लेत हैं। वहीं ज्यादातर लोग भाग्य भरोसे बैठे रहते हैं। यह कहानी ऐसी ही बहादुर बिटिया की है। इस लड़की का नाम है सोड़ी भीमे। नाम से ही समझा जा सकता है कि यह बच्ची आदिवासी है। एक ऐसे माहौल में जन्मी, जहां विकास धीमी गति से हो रहा है। इस बच्ची के एक पैर नहीं है। लेकिन अब एक पैर ही इसका संबल है। यह लड़की बहुत अच्छी डांसर है। स्कूल के अलावा आसपास के प्रोग्राम्स में भी यह अपने डांस से लोगों का दिल जीत लेती है। बात तब की है, जब इसकी उम्र महज 3 साल की थी। इसी ठंड का मौसम था। घर के आंगन में आग जल रही थी। अचानक खेलते-खेलते भीमे आग में जा गिरी। इस हादसे में उसका एक पैर पूरी तरह जल गया। इसके बाद मानों इसकी जीवन कठिन हो चला था। लेकिन इसने हिम्मत नहीं हारी और आज सबको हैरान कर रही है।

Asianet News Hindi | Published : Dec 17, 2019 5:30 AM IST
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ठंड का समय था, आंगन में जल रही थी आग, तभी खेलते हुए पैर जला बैठी बच्ची
भीमे के परिवार में कोई इतना पढ़ा-लिखा नहीं है, जिसे दुनियादारी की बहुत समझ हो। न ही इतना पैसा कि भीमे के इलाज पर खर्च कर पाते। हालांकि उनसे जो बन सका किया, लेकिन भीमे तब तक अपना पैर खराब कर चुकी थी। इस घटना के बाद बच्ची की जिंदगी ठहर-सी गई थी। वो एक जगह खामोश बैठी रहती। न खेलती और न ठीक से खाती। लेकिन धीरे-धीरे बच्ची ने फिर से अपना हौसला जुटाया और आज एक अच्छी डांसर है। पढ़ाई में भी अव्वल है।
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भीमे इस समय 11 साल की है और चौथी क्लास में पढ़ती है। भीमे को डांस का शौक रहा है। हालांकि शुरुआत में उसे बड़ी दिक्कत आई। स्कूल के कार्यक्रम में जब उसने डांस करने के लिए अपना नाम लिखवाया, तो टीचरों को भी हैरानी हुई। हालांकि किसी ने भी उसे हतोत्साहित नहीं किया। बल्कि उसकी मदद की।
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सोडी 2018 से जिला दिव्यांग पुनर्वास केंद्र में रह रही है। इस केंद्र की स्थापना 2017 में की गई थी। सुकमा एक नक्सल प्रभावित एरिया है। यहां के बच्चों के विकास के लिए जिला प्रशासन ने यह केंद्र स्थापित किया है।
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इसी केंद्र में आकार आवासीय संस्था भी है। यह संस्था दिव्यांग बच्चों के लिए आवास मुहैया कराती है। वहीं उनके टैलेंट को भी निखारने में मदद करती है। सोडी के माता-पिता गरीब किसान हैं। लिहाजा वे सोडी की पढ़ाई-लिखाई का खर्चा उठाने की हैसियत उनमें नहीं थी। साथ ही उसका एक पैर भी नहीं था। ऐसे में उसे अकेले घर पर कैसे छोड़ते, स्कूल कैसे भेजते..लिहाजा उसे इस केंद्र में भर्ती कराया गया।
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शुरुआत में सोडी को केंद्र में अच्छा नहीं लगता था। वो खामोश रहती थी। लेकिन बाद में सबमें घुलमिल गई। ताज्जुब की बात है कि सोडी एक मूकबधिर टीचर से डांस सीखती है। संस्था के विजय धवले कहते हैं कि सोडी बड़ी होनहार है।
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