सक्सेस स्टोरी: कभी दो वक्त की रोटी को परेशान थीं ये किसान महिलाएं, आज अमेरिका तक पहुंच

जांजगीर, छत्तीसगढ़. 'जहां चाह-वहां राह!' इस समय देश में किसान आंदोलन कर रहे हैं। उन्हें आशंका है कि नए कृषि कानून से उनकी फसल का मूल्य ठीक से नहीं मिलेगा। यह हुई किसानों की एक समस्या। हम आपको मिलवाते हैं ऐसी महिला किसानों से जिनकी फसल की अमेरिका, आस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों में डिमांड है। ये महिलाएं जैविक खेती से मशरूम उगाती हैं। यह कच्चा मशरूम और उसका पाउडर 2000 रुपए किलो तक में बिक रहा है। एक समय था, जब ये महिलाएं दो वक्त की रोटी को परेशानी थीं, लेकिन आज खुशहाल हैं। यह कहानी है जिले के बलौदा ब्लॉक के बेहराडीह ग्राम पंचायत की। यहां स्व सहायता समूहों के जरिये महिलाएं मशरूम उत्पादन से जुड़ी हैं। जिले में करीब 7 हजार स्व सहायता महिला समूह काम कर रहे हैं। यहां के मशरूम की क्वालिटी इतनी बेहतर है कि उनकी डिमांड बड़े होटलों में अधिक है। आगे पढ़ें इसी सफलता की कहानी...

Asianet News Hindi | Published : Nov 30, 2020 6:17 AM IST
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सक्सेस स्टोरी: कभी दो वक्त की रोटी को परेशान थीं ये किसान महिलाएं, आज अमेरिका तक पहुंच

बेहराडीह के दीनदयाल यादव बताते हैं कि उन्होंने 1998 में दिल्ली के नेहरू युवा केंद्र में मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण लिया था। इसके बाद उन्होंने गांव की महिलाओं को प्रशिक्षित किया। अब तक वे 100 से ज्यादा समूहों को प्रशिक्षण दे चुके हैं। आगे पढ़ें-46 एकड़ में फैला है MS धोनी का फार्महाउस, जानिए इसकी खूबियां और देखिए तस्वीरें कैसे खेती करते हैं माही

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रांची. टीम इंडिया के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी सफलता और लोकप्रियता दोनों के ही शिखर पर हैं। अब क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद माही वह अपना सारा समय खेती और डेयरी के साथ-साथ मुर्गा पालन पर ध्यान देंगे। कुल मिलाकर अब माही फुल टाइम खेती करेंगे। हाल ही में वह अपनी फार्महाउस में कड़कनाथ मुर्गा लेकर आए हैं, जिसकी उन्होंने की फार्मिंग की भी योजना बनाई है। इसके लिए उन्होंने  मध्य प्रदेश के झाबुआ में दो हजार चूजों का ऑर्डर दिया है। आगे पढ़ें यही कहानी...

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दरअसल, महेंद्र सिंह धोनी का यह फार्महाउस रांची के सैंबो में है। जिसको लोग इजा फार्महाउस के नाम से जानते हैं। जहां पर माही करीब 43 एकड़ जमीन में सब्जी और फलों की खेती करते हैं। साथ ही यहां पर डेयरी भी बनी हुई है। बताया जा रहा है कि इस फार्महाउस पर वह मुर्गों की फार्मिंग भी करेंगे। आगे पढ़ें इसी के बारे में...

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माही ने अपने इस फार्महाउस में बड़े पैमाने पर स्ट्रॉबेरी, पपीता और अमरूद की खेती कर रहे हैं। इसके लिए वह उन्नत किस्म की बीज देश के अलावा विदेश से लेकर आए हैं। वहीं धोनी के एग्रीकल्चर कंसलटेंट रोशन कुमार ने बताया कि माही का खेती बड़ी दिलचस्पी है। वह समय-समय पर यहां आते रहते हैं और खुद काम करने लग जाते हैं। फलों के अलावा धोनी के इस फार्महाउस में बड़े पैमाने पर सब्जी की भी खेती करते हैं। बताया जाता है कि करीब दो एकड़ जमीन पर उन्होंने सिर्फ मटर लगाया हुआ है। वहीं टपक विधि से गोभी, आलू और टमाटर के अलावा अन्य कई सब्जियां लगाई गई हैं। आगे पढ़ें इसी के बारे में...

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धोनी  पत्नी साक्षी और बेटी जीवा को भी अक्सर फार्महाउस घुमाने के लिए ले जाया करते हैं। जिसकी फोटो आय दिन सोशल मीडिया में वायरल होती रहती हैं।  बता दें की धोनी का इसके अलावा एक और फार्महाउस है जिसका नाम 'कैलाशपति' है। यह करीब 7 एकड़ जमीन पर बना हुआ है। आगे पढ़ें इसी के बारे में...
  

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टीम इंडिया के पूर्व कैप्टन महेंद्र सिंह धौनी रांची के सिमलिया स्थित अपने फार्म हाउस में मप्र के झाबुआ का प्रोडक्ट कड़कनाथ मुर्गा पालेंगे। धौनी ने इसके लिए थांदला(जिला झाबुआ-मप्र) के पास रूंडीपाड़ा में आशीष कड़कनाथ मुर्गीपालन सहकारी संस्था के विनोद मेड़ा को 2000 चूजों का ऑर्डर दिया है। इसकी डिलीवरी 15 दिसंबर को होगी। विनोद ने बताया कि इस सिलसिले में वे 3-4 महीने से रांची के डॉ. एसएस कुल्डु के संपर्क में थे। वेटनरी डॉक्टर कुल्डु धौनी के पारिवारिक मित्र हैं। बता दें कि इससे पहले कृषि केंद्र झाबुआ ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और विराट कोहली को पत्र लिखकर डायट में कड़कनाथ शामिल करने को कहा था।

यह है कड़कनाथ की खूबी..
विनोद बताते हैं कि कड़कनाथ का एक चूजा 130 रुपए में बिकता है। धौनी ने कड़कनाथ पालने की इच्छा जताई थी। बताते हैं कि डॉ. कुल्डु के एक मित्र झाबुआ कृषि विज्ञान केंद्र में हैं। उनके जरिये ही यह डील हुई। कड़कनाथ हाईप्रोटीन वाला मुर्गा माना जाता है। इसमें वसा कम होते हैं। इसकी ओरिजनल ब्रीड सिर्फ झाबुआ में पाई जाती है। बता दें कि कृषि विज्ञान केंद्र झाबुआ ने कुछ समय पहले भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और कप्तान विराट कोहली को डायट में ग्रिल्ड चिकन के तौर पर कड़कनाथ खाने की सलाह देते हुए पत्र लिखा था। हैदराबाद के राष्ट्रीय मांस अनुसंधान केंद्र ने भी एक रिपोर्ट में कड़कनाथ चिकन को उपयोगी बताया था।

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