CM केजरीवाल या बीजेपी, दिल्ली को किसके हवाले करेंगे पूर्वांचल और पंजाबी मतदाता?

नई दिल्ली: दिल्ली में विधानसभा चुनाव की घंटी कभी भी बज सकती है। चुनाव आयोग किसी भी तारीखों का ऐलान कर सकता है। ऐसे में दिल्ली चुनाव के तीनों मुख्य दावेदारों; आम आदमी पार्टी (आप), भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस मतदाताओं को लुभाने के कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं।
 

Asianet News Hindi | Published : Jan 6, 2020 10:04 AM IST / Updated: Jan 06 2020, 03:49 PM IST

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CM केजरीवाल या बीजेपी, दिल्ली को किसके हवाले करेंगे पूर्वांचल और पंजाबी मतदाता?
लोकसभा चुनाव 2019 के चुनाव आयोग के रिकॉर्ड के अनुसार, दिल्ली में कुल 1.43 करोड़ मतदाता हैं। सभी मतदान ब्लाकों में पूर्वांचल, पंजाब और मुस्लिम मतदाताओं का बोलबाला हैं। अनुमान है कि पूर्वांचल मतदाताओं में पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के लोग जो दिल्ली के मतदाताओं का करीब 25-30 प्रतिशत हैं।
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पूर्वांचली मतदाताओं का गणित:- पूर्वांचली मतदाताओं को पहले कांग्रेस समर्थकों के रूप में माना जाता था, जब स्वर्गीय शीला दीक्षित सत्ता में थीं और कांग्रेस ने दिल्ली में महाबल मिश्रा जैसे नेताओं को प्रमुख स्थान दिया था। भाजपा को तब ऊंची जाति, दिल्ली निवासियों और बनिया समुदाय का पार्टी माना जाता था।
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लेकिन जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एक शक्तिशाली भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की पृष्ठभूमि पर दिखाई दिए, तो पूर्वांचल के मतदाताओं ने अपना रास्ता बदल लिया, जिसके दम पर 'आप' ने दिल्ली में दो बार सरकार बनाई जिसमें पहली सरकार केवल 49 दिन चली थी।
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वर्तमान में पूर्वांचल के मतदाता लगभग 25 निर्वाचन क्षेत्रों में किसी भी पार्टी की सरकार बना या बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं। इसका मतलब साफ है कि अगर पूर्वांचल के मतदाताओं ने एकजुट होकर जिस किसी पार्टी को वोट दिया उसे 70-सदस्यीय दिल्ली विधानसभा में बहुमत से जीत दिला सकतें हैं।
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दिल्ली में जिन सीटों पर पूर्वांचल के मतों का दबदबा है उसमें आदर्श नगर, बदरपुर, बादली, बरारी, कुंडली, करावल नगर, किरारी, लक्ष्मी नगर, मुस्तफाबाद, पटपड़गंज, पालम, रिठाला, त्रिलोकपुरी, संगम विहार, उत्तम विहार शामिल हैं जहां पर पूर्वांचल के वोटर्स एक अहम भूमिका निभाते हैं।
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2011 की जनगणना के अनुसार दिल्ली में मुस्लिमों की आबादी करीब 12-13 प्रतिशत है। मुस्लिम मतदाता सीधे सीधे 10 सीटों के परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं। दिल्ली के पांच विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाता कुल मतदाताओं का 40 प्रतिशत हैं जो चांदनी चौक, मतिया महल, बल्लीमारान, ओखला और सीलमपुर में दबदबा रखतें हैं। इसके अलावा दिल्ली में पांच अन्य निर्वाचन क्षेत्र मुस्तफ़ाबाद, बाबरपुर, सीमापुरी, शाहदरा और रिठाला है जहां मुसलमान कुल मतदाताओं का 30-40 प्रतिशत हिस्सा हैं।
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वहीं, पंजाबी मतदाता दिल्ली के वोटर्स का करीब 35 प्रतिशत है। लेकिन वों पूरे शहर में बिखरे हुए हैं। पंजाबी लगभग 28-30 सीटों पर चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं। करीब दिल्ली में 20 विधानसभा क्षेत्रों में पंजाबी मतदाताओं का प्रतिशत 20 के आस पास है। अन्य आठ निर्वाचन क्षेत्रों में पंजाबी मतदाता संख्या में 20 प्रतिशत से ज्यादा ही हैं। इसका मतलब यह है कि पूर्वांचलियों की तरह पंजाबी मतदाता भी दिल्ली चुनाव पर लगभग समान प्रभाव डाल सकते हैं।
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इसके अलावा, चार निर्वाचन क्षेत्र ऐसे भी हैं जो दिल्ली में सिखों के प्रभुत्व वाले माने जाते हैं। माना यह भी जाता है कि ये AAP के मतदाता हैं। ये राजौरी गार्डन, हरि नगर, कालकाजी और शाहदरा हैं जो कुल मिलाकर दिल्ली के 15-18 निर्वाचन क्षेत्रों में असर डाल सकते हैं।
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दिल्ली के मतदाता सूची में ऊंची जाति के हिंदू मतदाता लगभग 40 प्रतिशत के साथ सबसे बड़ा वोट बैंक है। CSDS (सेंटर फॉर स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसाइटीज़) की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन वोटरों में ब्राह्मणों की आबादी लगभग 12 प्रतिशत है, जिसके बाद पंजाबी खत्रियों और राजपूतों की हिस्सेदारी 7 प्रतिशत, जैन और बनिया या वैश्य की 6 प्रतिशत और शेष की 8 प्रतिशत है। इसलिए दिल्ली में सत्ता पाने का लक्ष्य रखने वाले राजनीतिक दल उन उम्मीदवारों को चुन सकते हैं जो संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों के प्रमुख जाति और समुदाय के हों। पार्टियों की रणनीति
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भाजपा सिख और पंजाबी वोटरों को लुभाने के लिए हरदीप पुरी और पूर्वांचली मतदाताओं को आकर्षित करने गायक-अभिनेता से राजनेता बने मनोज तिवारी को आगे किया है। मनोज तिवारी दिल्ली बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भी हैं और उन्हें मुख्यमंत्री पद का तगड़ा दावेदार भी बताया जा रहा है।
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दिल्ली विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ AAP लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी की उम्मीद के साथ गरीब, मध्यम वर्ग, पूर्वांचली और मुस्लिम मतदाताओं के बड़े हिस्से पर अपनी पकड़ बनाए रखने की पुरजोर कोशिश कर रही है। दूसरी ओर कांग्रेस जिसका पिछले चुनाव में सूपड़ा साफ हो गया था वो युवा वोटर्स के सहारे मैदान में उतरने की कोशिश कर रही हैं। देखना होगा विधानसभा चुनाव में पार्टियों के हिस्से क्या कुछ लगता है।
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