लॉकडाउन में बड़े काम आई यह देसी जुगाड़, ये तस्वीरें आपके दिमाग की भी बत्ती जला देंगी

हजारीबाग, झारखंड. कहते हैं आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। ये मामले यही दिखाते हैं। लॉकडाउन के दौरान हजारों मजदूर पैदल घरों की ओर जाते दिखाई दिए, लेकिन कुछ ने खुद या अपने बच्चों को पैदल न चलना पड़े, इसलिए देसी जुगाड़ से गाड़ियां बना लीं। ये तस्वीरें कुछ समय पुरानी हैं, लेकिन यह एक सबक हैं। इस तरह की जुगाड़ से हम अपनी परेशानियां कुछ हद तक दूर कर सकते हैं। पहली तस्वीर बिहार के रहने वाले एक परिवार की है। यह आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में काम करता था। लॉकडाउन में घर वापसी के लिए कोई साधन नहीं मिला, तो दिमाग दौड़ाया। इन लोगों ने अपनी मोपेड में एक एक्स्ट्रा स्टैंड लगाया और कुछ दिनों में अपने घर पहुंच गए। वे रोज करीब 200 किमी गाड़ी चलाते थे। इस देसी जुगाड़ ने इस परिवार को पैदल चलने से बचा लिया। आगे पढ़िए इसी कहानी का शेष भाग..

Asianet News Hindi | Published : Jun 8, 2020 8:20 AM IST
17
लॉकडाउन में बड़े काम आई यह देसी जुगाड़, ये तस्वीरें आपके दिमाग की भी बत्ती जला देंगी

यह तस्वीर बिहार के कैमूर के रहने वाले मिथलेश, उनकी पत्नी और दो भाइयों की है। ये लोग विशाखापट्टनम में आइसक्रीम बेचते थे। लॉकडाउन में घर वापसी के लिए कोई साधन नहीं दिखा, तो उन्होंने आइसक्रीम के ठेले में काम आने वाली मोपेड को परिवार गाड़ी बना दिया। इसमें अतिरिक्त स्टैंड लगाकर चार लोगों के बैठने का इंतजाम कर दिया। इस तरह वो आसानी से अपने घर पहुंच गए। आगे पढ़ें बालाघाट में मिले ऐसे ही मजदूर की कहानी..

27

यह तस्वीर मप्र के बालाघाट में सामने आई थी। यह मजदूर परिवार हैदराबाद से 800 किमी का सफर करके जब मप्र के बालाघाट अपने गांव पहुंचा, तो रास्ते में उसे देखकर पुलिसवाले भी हैरान रह गए। मासूम बेटी को पैदल न चलन पड़े और सामान न ढोना पड़े, इसलिए मजदूर ने यह जुगाड़ की गाड़ी बनाई। मजबूर पिता ने दिमाग दौड़ाया और बाल बियरिंग के जरिये लकड़ी की एक गाड़ी बना ली। उस पर बच्ची बैठाया..सामान को रखा और चल पड़ा। आगे पढ़ें इसी कहानी के बारे में...
 

37

रामू नामक यह शख्स हैदराबाद में मजदूरी करता था। काम-धंधा बंद होने से जब खाने के लाले पड़े, तो वो अपनी गर्भवती पत्नी और 2 साल की बेटी को लेकर घर से निकल पड़ा। लेकिन उसने जुगाड़ की गाड़ी बनाकर अपने सफर को कुछ सरल बना दिया था। आगे पढ़ें इसी कहानी के बारे में..

47

रामू के मुताबिक, 800 किमी का सफर सामान और बच्ची को उठाकर पूरा करना आसान नहीं था। गर्भवती पत्नी भी सामान कब तक उठा पाती? इसके बाद रामू ने बांस-बल्लियों और बाल बियरिंग की मदद से एक गाड़ी बनाई। आगे पढ़ें इसी कहानी के बारे में..

57

रामू ने गाड़ी पर सामान रखा और उस पर बच्ची को बैठा दिया। इसके बाद दम्पती सफर पर निकल पड़े। 
इस दम्पती को हैदराबाद से बालाघाट तक पहुंचने में करीब 17 दिन लगे। बालाघाट बॉर्डर पर जब पुलिसवालों ने इस दम्पती को देखा, तो बच्ची के लिए बिस्किट और उनके लिए चप्पलों का इंतजाम किया। आगे पढ़ें इसी कहानी के बारे में..

67

लांजी के एसडीओपी नितेश भार्गव ने कहा कि बालाघाट पहुंचने के बाद पुलिस ने एक निजी गाड़ी का इंतजाम किया और दम्पती को उनके गांव तक पहुंचवाया। आगे पढ़ें दो पिताओं की देसी जुगाड़ के बारे में..

77

पहली तस्वीर यूपी के गोरखपुर के रहने वाले मजदूर की है। उसने ट्रेन में सीट बुक कराई। लेकिन जब निराशा हाथ लगी, तो बच्चों को पालकी में बैठाकर निकल पड़ा। उसका घर 1000 किमी दूर था। दूसरी तस्वीर आंध्र प्रदेश के कडपा जिले की है। यह मजदूर 1300 किमी दूर दूर छत्तीसगढ़ ऐसे अपने बच्चों को पालकी में बैठाकर निकला था।

Share this Photo Gallery
click me!

Latest Videos

Recommended Photos